SUPATHEYA KAVYA SARITA
1 विषयसूची2 अनंत 3 अहे!चक्रवर्ती ક્ષत्रिय 4 अट्हास करता इतिहास 5 अंधा दौड़ रहा आंधी के आगे 6 अंधकार 7 आईना 8 आग 9 आर्थिक विषमता 10 आराधना 11 आशीर्वाद गीत 12 आर्थिक विषमता 13 =आंसू पोंछ तू अपनी हिंदी 13.1 इंसान बनकर देख 13.2 इतिहास रो रहा था? 13.3 इंसान बनकर देख 13.4 ईश वंदना 13.5 उजाले को आने दो 13.6 उठो जागो 13.7 "ॐ" (भजन) 13.8 ओ! मुसाफिर 13.9 कमल वासनी? 13.10 कवि 13.11 कवि-कविता 13.12 कब अइबू महरानी 13.13 कर्म का बंधन 13.14 कल्प 13.15 कल्पनाएं 13.16 कसक 13.17 "कहने तो दो" 13.18 करमवा 13.19 कलंक 13.20 कांधा रगरी 13.21 काशी का चातुर्मास 13.22 कालीदह (सोहर) 13.23 कुछ कर दिखला दे 13.24 कुंडली मारि बैठे? 13.25 कुनैन की गोली 13.26 कैसे आऊँ तोहरी सेजरी 13.27 काँव काँव 13.28 कृष्ना 13.29 कृष्न लाल आइके 13.30 खास बताया नहीं जाता 13.31 ख्याल करो 13.32 गरुणगान 13.33 गम्? 13.34 गणतन्त्र दिवस? 13.35 गंगा महिमा 13.36 गाओ गान 13.37 गंदगी 13.38 चलते चलो-चलते चलो 13.39 चना 13.40 चौथ का चांद 13.41 चिराग जलना चाहिए 13.42 चिन्हित ना हनुमान 13.43 चिरिया 13.44 जगमग 13.45 जतन कर रहा हूँ 13.46 जागो नारी 13.47 जागो नारी! 13.48 जेठ 13.49 जीने दो 13.50 जंग जहाँ में? 13.51 झाड़ू 13.52 झूला 13.53 ड्योढी दईतरा बाबा का 13.54 तंद्रा 13.55 तुलसी 13.56 तेल का, शादी में गीत 13.57 "धरती धिक्कारती" 13.58 दर्शन 13.59 दु:ख,सुख आते-जाते 13.60 देवी वंदना 13.61 दिखावे के होई 13.62 दिन-रात्रि रहें कैसे 13.63 3=दिलवर 13.64 दीप जलने दीजिए 13.65 नन्दलाल (गारी) 13.66 नदियों मे गंगा 13.67 नारी का सम्मान करो 13.68 निरानन्द दृष्टि 13.69 नियम बदलते रोज? 13.70 न्यारी भाभी 13.71 परछाइयाँ 13.72 पावस पर्व 13.73 पीताम्बर बड़थ्वाल 13.74 पुकार 13.75 पाठक जी 13.76 पान 13.77 पिचकारि 13.78 पीपल की छाहं 13.79 पुष्टि करता 13.80 प्रेमी माँ लीन 13.81 प्रेम 13.82 पैजनियाँ 13.83 पोटली गिफ्ट की? 13.84 पंडित 13.85 फूल का रंग 13.86 बचपन में गाँव 13.87 बरसात करा के न जाइए 13.88 बरात विदाई गीत 13.89 बारात परिछन- गीत 13.90 बारिश 13.91 बाजारू होली= 13.92 बहिनों की पुकार 13.93 बहिनों की पुकार-2 13.94 बदरंग 13.95 भद्र 13.96 भारत हमारा प्यारा 13.97 भारत महान 13.98 भुतात्मायें 13.99 भूलो बीती बात 13.100 भ्रष्टाचार एटम बम हो गइल? 13.101 भ्रष्टाचार एटम बम हो गइल?(-2) 13.102 माँ की ममता 13.103 माँता-पिता 13.104 मर्यादा 13.105 मिशन के ठीकेदार 13.106 मुखड़ा नीक लागे 13.107 मौसमी मन 13.108 मंडप-गारी 13.109 यक्षमा निवारन 13.110 रजनी 13.111 राखो चुंदरिया संवारि 13.112 "राधा- राधा" 13.113 राम जन्म 13.114 राम आइलैं बन से? 13.115 रात 13.116 राष्ट्र भक्त झाँक रहा? 13.117 "रीढ़ मानें" 13.118 रंग जमादे? 13.119 लाज मोरी राखा 13.120 ला गाओ जी 13.121 वक्त 13.122 "वासंतक गुलाल" 13.123 विकाश 13.124 विकाश पुरुष-शास्त्र सम्मत मोदी 13.125 वोटऱ 13.126 शहर में अंधेरा है ? 13.127 शंख बजे 13.128 स्नान गीत 13.129 सजल 13.130 सावन की फुहार 13.131 सितारे सारे रूठे? 13.132 सिवार 13.133 सुधाकर[संपादित करें] 13.134 सूरज के मनाय लिया जाय 13.135 सूनी लागे नगरी(कजरी) 13.136 सेहरा 13.137 स्वप्नदल 13.138 हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी 13.139 हरिबाना 13.140 हम जानिला (निर्गुण) 13.141 हल्दी का गीत(हरिद्रा) 13.142 हरिद्रा गीत 13.143 हुँकार कर 13.144 हंसि देहै बीरा 13.145 हुँकार भरो हिंदी 13.146 हिंदी 13.147 हिंदी विश्व गुरु 13.148 होली-बोली 13.149 होली की बोली 13.150 होली की बजार 13.151 श्री गुरु चरणों में नमन् 13.152 श्रीपति स्वामी 13.153 श्री कृष्ण 13.154 भाषा साहित्य और हिंदी भाषा 13.155 व्रह्मचर्य के महत्व को पहिचानें? 13.156 काशी की पुत्री:वीरांगना लच्छमीबाई 13.157 काशी से कश्मीर तक सद्भावना यात्रा 13.158 साहित्य में वेदों की सार्थकता 13.159 धर्म की आस्था पर हम सभी एक हैं! 13.160 भारत में चन्द्रवंश ક્ષत्रिय-शाखा 13.161 "सुपाथेय" 13.162 आपके बनाये पृष्ठों सम्बंधी चर्चा 13.163 भरत चरित्र चिंतन पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.164 काशी से कश्मीर तक सद्भावना यात्रा पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.165 किरनावली मचलने लगी पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.166 हिन्दी विकि-सम्मेलन पर आपके विचार प्रकट कीजिए 13.167 मई 2014 13.168 श्री मान् शुभम कनोडिया जी नमस्कार, 13.169 न्यारी भाभी पृष्ठ का हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकन 13.170 पुरातन काल से विद्याका केन्द्र-काशी पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.171 भारतीय भाषा हिंदी और राजननीति पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.172 नमस्कार संजीव कुमार जी, 13.173 हिंदी और तेलगु का साहित्य सम्बन्ध,साहित्यकार पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.174 नमस्कार श्री संजीव कुमार जी 13.175 हिंदी और तेलगु का साहित्य सम्बन्ध,साहित्यकार पृष्ठ का हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकन 13.176 सद्भावना कविता सुखमंगल सिंह की पृष्ठ को शीघ्र हटाने का नामांकन 13.177 भारतीय भाषा हिंदी और राजननीति पृष्ठ का हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकन 13.178 धन्यबाद श्री संजीव कुमार जी 13.179 रક્ષાबंधन त्यौहार विषयसूची विषय पृष्ठ
काव्य/लेख,यात्रा वृत्तांत
कविता- अ- अनंता, अहे! चक्रवर्ती ક્ષत्रिय, अट्हास करता इतिहास,आग, आइनें,अंधकार , आ- आर्थिक विषमता,आँसू पोछ तू अपनी हिंदी। इ- इतिहास रो रहा है?, इंसान बन कर देख। ई- ईश वंदना। उ- उजाले को आने दो,उठो जागो। ऊ-'ऊँ'भजन। आ-आर्थिक विषमता। ओ- ओ! मुसाफिर। क- कलंक,कसक,कल्प,करमवा,किवाड़, कल्पनाएँ,कुछकर दिखला दे,कब अइबू महरानी,
कैसे आऊ तुहरी सेजरी,कवि, कवि-कविता,कर्मवंधन,कल्प, कहने तो दो,काली दह सोहर,काँधा रगरी,काँव-काँव,कृष्ना,कृष्ण लाल आइके, कुण्डलिनी मारि बैठे?,कुनैन की गोली।
ख- खास बताया नहीं जाता,ख्याल करो। ग- गणतन्त्र दिवश,गरुणगान,गम्,गाओ गान,गंगा महिमा, गंदगी। च- चना,चलते चलो-चलते चलो,चिन्हित ना हनुमान,चिरिया, चिराग जलना चाहिए,चौथ का चाँद। ज- जगमग, जतन कर रहा हूँ, जब पुष्प खिल जाएगा,जेठ,जीने दो, जंग जहाँ में। झ- झाड़ू, झूला। ड- ड्योढ़ी दइतरा बाबा का। त- तेल का-शादी में गीत,तुलसी,तन्द्रा। द- दर्शन,दिलवर, दिखावे के होई, देवी वंदना,दीप जलने दीजिए,दु:ख सुख आते जाते। ध- धरती धिक्कारती। न- नन्दलाल,नदियों में गंगा, निरानन्द दृष्टि, नियम बदलते रोज, नारी का सम्मान करो,न्यारीभाभी। प- परछाइयाँ,पण्डित।,पाठक जी,पावसपर्व,पान,पीपल की छाहं,पीताम्बर बड़थ्वाल, पुकार,पुष्टि करता,प्रेम,पैजनियाँ,पोटली गिफ्ट की? फ- फूल का रंग। ब- बचपन में गाँव, बदलौनी,बदरंग,बरसात कराके न जाइए,बहिनों की पुकार,बहिनों की पुकार-2, बाजारू होली,बारिस। भ- भद्र,भारत हमारा प्यारा,भाषा, भुतात्माएँ,भूलो बीती बात,भ्रष्टाचार एटम बम हो गया? म- मर्यादा,माला माँ अम्बे की, माँ,मिशन के ठीकेदार, मुखड़ा नीक लागे,मंडप-गारी,मौसमी मन। य- यક્ષमा निवारण। र- रजनी, राखो चुनरिया संवारि,राम जन्म, रात, राष्ट्र भक्त झाँक रहा,राधा-राधा,राम आइलैं बन से,
रीढ़ मानें, रंग जमादे?
ल- लाज मोरी राखा,ला गाओजी। व- वरसात कराके न जाइए,वक्त,वहिनों की पुकार,विकास,विकाश पुरुष शास्त्र संमत मोदी, वोटर। स- सजल,सावन की फुहार,सूनी लागे तोहरी सेजरी,सितारे सारे रूठे,सिवार,पं0सुधाकर, सूर्य, सूर्य के मनाय लिया जाय,
सेहरा,स्नान गीत,स्वप्नदल।
ह- हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी, हम जानीला,हरिबाना,हरिद्रा गीत, हल्दी गीत, हिंदी,हिंदी विश्व गुरु, होली-बोली, होली- कीबोली,होली की बजार,
हुँकार कर, हुँकार भरो हिंदी,हंसि देहैं बीरा।
श्र- श्री गुरु चरणों में नमन्, श्री पति स्वामी,श्रीकृष्ण।sukhmangal singh 03:14, 23 जून 2014 (UTC)
अनंत तू ही एक अनन्ता दाता, बाकी सब कुछ माया॥ तुम को सब कुछ अर्पित,मंगल शिर झुकाने आया॥ हे प्रभो आनँद दाता,प्राणियो की आर्त सुन। प्रभु आयेगा द्वार गुन॰ कर मनुज विश्वास तुम॥ करू सदा कल्यान जगत में,गाथा गा-गा पग-पग पे। शिव सर्व अंत ,सब में, प्राणिओं की आर्त नभ में॥ जनम् सफल तेरे चरणों मे,तु सत्य सनातन सब में॥ तू एक अनंत रब में, मंगल सीस झुकाता सब में॥sukhmangal singh 04:09, 23 जून 2014 (UTC) शव्दार्थ:- अनंत-जिसका अंत न हो। सीस-सिर। सनातन-प्राचीन परंपरा,व्रह्मा,विष्णु। ँँ==सयाजी राव गायकवाड़ ग्रन्थालय==
केन्द्रीय ग्रन्थालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी-221005
डा0 अजय कुमार श्रीवास्तव विश्वविद्यालय पुस्तकालयाध्यક્ષ(मुख्य)
दिनांक-30/9/2014
सुखमंगल सिंह जी की सुपाथेय काव्य सरिता भारत देश भूमि के गंध को विदेश में रहकर काव्य स्वरूप पंक्तियों में व्यक्त करने की महारत भाई सुखमंगल सिंह जी में है। उनकी स्वयं की कविता:-
कवि कुछ तान सुनाने का उथल-पुथल मच जाने का सच मांग सदा जमाने का दूर महानाश भगाने का को कौशल पास छुपावे तो वह कविता कह जावे कवि को राज बतावे।।
सुखमंगल सिंह के काव्य की कविताओं में संहर्ष और अंधेरा से लड़ने का साहस दिखता है। जैसे:-
उजाले को चुराया अंधेरों ने उन अंधेरों में मेरा घर बसेरा है।
आज के संत्रस्त समय जीवन में जहां मनुष्य के सामने संघर्ष का पहाड़ खड़ा हो बेरोजगारी का आलम ये हो कि युवा के हाथ में रोजगार की जगह कट्टा दिखाई पड़े ऐसे में एक नई रोशनी की तलाश कवि की कविताओं में दिखाई पड़ता है।
एक टिमटिमाते दीपक से सूर्य सा रोशनी प्राप्त करने का प्रयास संघर्ष की कल्पनाओं का प्रतीक है। उनकी ये कविताएं सार्थक हैं:- काम कितना भी कठिन हो मनुष्य जो चाह दे पथ पर पड़े कांटे जटिल पल भर में ढ़ाह दे। भोजपुरी कविताओं में भी अंधकार से लड़ने का साहस जुटाने का काम किया है। ग्रामीण अंचल की सांस्कृतिक भूमि में
लोक साहित्य रचने का प्रयास सराहनीय है। आप की कविताओं में प्राकृतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और आगे आने वाले कल की पुकार है जहाँ सामाजिक चिंतन की बात कवि अपनी मातृ भाषा में करता है वहीं हिन्दी को राष्ट्र की बिन्दी बनाने का प्रयास कवि ने किया है जैसे:-
आँसू पोछ तू अपनी हिन्दी ओझल आंखें क्यो टोकेंगे विश्वव्यापी तू इतनी हिन्दी अमीर आंगन वाले क्यों रोकेंगे। ये उपरोक्त पंक्तियाँ अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भ में भी लिखी जानी चाहिए क्योंकि आज भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में उद्बोधन कर विश्व को चकाचौंध कर दिया।
कुल मिलाकर कवि सुखमंगल सिंह की काव्य सरिता गंगा की तरह निर्विवाद स्वच्छ बहती रहे और साहित्यकारों व हिन्दी
सेवियों को तारती रहे।
मेरी बधाई स्वीकारें हस्ताક્ષर (डा0 अजय कुमार श्रीवास्तव) (चकाचौंध જ્ઞાनपुरी) वाराणसीsukhmangal singh 00:32, 3 अक्टूबर 2014 (UTC)
अहे!चक्रवर्ती ક્ષत्रियसृस्टि से द्वापर तक चक्रवर्ती राजे ।
मैन्युपनिषद इतिहास कहे राजे रजे ॥
ક્ષत्रिय इક્ષ્वाक वंश हरि कृपा से ।
पृथवी पालन निमित्त अश्वत्व तरूसा ॥
बढी संतान धारा प्रवाह जब ।
चन्द्रवंश सूर्यवंश दो वंश हुए तब ॥
धर्म तप पालन पले सब तपका ।
सप्त द्वीप दो राजे राज रहा अजसा ॥
तप बल प्रताप से नृप लोचत ।
बहुत राजे जम्बू द्वीप पर लखत ॥
कछु राजा रजे राज भारत ऊपर।
कछुक राज दंतसा दुहिता रहत॥
द्वय चक्रवर्ती द्वय मण्डलेश्वर ।
वर्णन करता मंगल परमेश्वर ॥
अश्वपति अम्वरीष अनगण्य ।
अક્ષसेन इन्द्रद्युम्न पौवनाश्व॥
कुलाश्व ययाति शर्य्याति ।
ननक्तु बध्याश्व भूरिदुम्न॥
सुदुम्न शशबिन्द हरिश्चन्द्र ।
मरुत भरत युधिष्ठिर ठाकुर ॥
मण्डलेश्वर राजे रजे अगाध ।
परीક્ષિत जनमेजय अश्वमेध ।
द्वितीय राम छत्रमल आदि ।
सौ दो वर्ष राजे रजे राज्य ।
अन्तिम राजा थे पृथ्वीराज ।
शासन का मनमानीपन ताज ।
छल छन्द में कैद हुआ राज ।
गोरी औ शहावुद्दीन के हाथ ॥
दिल्ली ऊपर था चढा साज ।
मुसलिम छ: सौ इक्कावन वर्ष राज ।
पुनि ता ऊपर अंग्रेजी राज ।
उनका का! दो सौ वर्ष था भाग्य ।
तब भी साथ थे ક્ષत्रिय राजे ।
बड़े-बड़े खड़े-पड़े साज-राज बाजे ।
सौ पाच और अनु राजा राजे ।
पर पराधीन जन बन सो सब साज ।
बड़े तालुकेदार रहे दो जमींदार ।
सौ-सौ साल का वंशवाद किश्तवार ॥sukhmangal singh 12:52, 5 जनवरी 2014 (UTC)
अट्हास करता इतिहासविपुल वीर बहिना बलिदानी सुहृद सुताएँ मरते देखो ।
ओ बलशाली बलहीन वीर लो खड़े-खड़े गिरते देखो ॥
शिर शशि ताज सोहरत सारी बगली झाँक फड़कते देखो।
मातृ तुल्य जिसकी पर नारी गली- गली लड़ते देखो ॥
किले टाप को नीचे औंधे बिगड़ी बात बढ़ते देखो ।
विद्रोही तीखे तेवर सिरफिरे सर ऊपर चढते देखो ?
सूरत पर हुई मलिन कीचड़ में सना यवन बच्चा देखो ।
रौदे गये 'मंगल'-जंगल को संहर्ष सभी होते देखो ॥
सूर सूबेदार औरंग की आवाज पग-पग गिरते देखो।
उड़ते पहाड़ बदसूरत इतिहास इ अट्हास करते देखो॥
भूखा बालक मरता पेट स्वर्ण-रजत गुन मढते देखो ।
निर्धनता का भूत भगे उ कूद कुलाचे मारते देखो ॥
शून्य शहर का कोतवाल लड्डू भरे पिटार उप्पर देखो।
भरे मुख कटार खजाने हथियार रणभेरी भरते देखो ॥
चला जमाना पुचकारी के सनमुख ख्वाब मचलते देखो।
चहल-पहल सड़कों गलियों में रणभेरी द्रोंड़ बजते देखो॥
उन अपनों का चरण छू-छू लो बड़े-बड़े बढते देखो ।
हृदय को काला कल्लू कबका को जग जगमग करते देखो॥sukhmangal singh 15:22, 2 जनवरी 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- विपुल-बृहद,अगाध। शशि-चंद्रमा,इंद्र। मंगल-शुभ, कल्याण,सुखमंगल सिंह का 'उप' नाम।
अंधा दौड़ रहा आंधी के आगेअंधा दौड़ रहा जाने क्यों आँधी के आगे। गलियों के कुत्ते भौचक जाने क्यों जागे॥ बगुले बैठे पेड़ की डाली डाली ले धागे। ममता मोह मोदक मानो सभी थे त्यागे॥ संयम तोड़ कनक-कनक स भागे। गाँव शहर टूट छुट रहे कोई तो जागे॥ संचय टूट रहे टूटते श्रृंग बहुत अभागे। कलरव करने वाली पક્ષી,वालक बढेंआगे।। पिछड़े ना साहित्य सिथिल ना होवें राजे। मौलिकता गुम हो ना मनबढ को जागे॥ गलियों के कुत्ते भौचक जाने क्यों जागे। अंधा दौड़ रहा जाने क्यों आँधी के आगे॥sukhmangal singh 03:22, 30 नवम्बर 2013 (UTC) शव्दार्थ:- मोदक-लड्डू,गुड़,औषध आदि से बना हुआ लड्डू।
अंधकारओसरवा से माई करेले पुकार । दलनिया दरके खटिया खसके हमार ।। बिचे बलमा आँगना ओढ़नी ओहार । बड़के ओसरवा आवे बबुआ पुकार ।। आँगनवा से सटल सजीला ओसार । माई की ले लेता खबरिया मेहार ।। ओ ही कहीं रहेली मेहरिया तुहार । तनिक बबुनी से बबुआ करता गुहार ।। आह- आह बुढ़िया माई भरे हुँकार । माई के आइलबा जड़ईया बुखार ।। बबुनी विशाली ले ला खबरिया हमार । महामति होइहैं तोहरा उपकार ।। माई उदास करतीं ओसरिया पुकार । सजीले ओसरवा से बोले चटकार ।। खाँव-खाँव बूढा कइसन करलू पुकार। अबहिन तो पहर दोई हउअय अंधियार ।। हमरी रतिया राउर दिहली बिगार । न!जानिब जग्गू जागि जइहै बचवा हमार ॥ बोलवै तो जागि जइहै बचवा तुहार । बड़के ओसरवा आवै बबुआ पुकार ॥ हो! टटिया टूटी आवेला बौछार । टपक-टपक मड़इया चूवेला हमार॥ हो-हो-हो बहुरिया कितनी दीदार । तनिक बचवा तू लेता खबरिया हमार ॥sukhmangal singh 01:47, 10 जुलाई 2013 (UTC)
अाँगन खुद-खुद धात्री आयो'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, कह खुद-खुद इत आय गये हैं। मानव तू उत ध्यान लगाये, आँचल- धात्री ले आयो हैं। जहाँ डम-डम बाजे डमरू, वहाँ खन-खन की आवाज है। ढ़ोल-मजीरा साथ बजता, रिम-झिम-रिमझिम बरसात है। उत! दनादन पाप ढ़हते कहते, कह खुद-खुद इत आय गये हैं॥
मानव इत-उत अपना करले, आँचल- धात्री ले आयो हैं। धर्म को धारण करने वालों, कह खुद-खुद इत आय गये हैं। इतो जयेतो खुद-खुद आयो, मरीमृशम् का ध्यान लगायो हैं। मानव तू उत ध्यान लगाये, अप्रपाना वेशन्ता रेवाँ। 'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, उत जियरा को अकुलायो हैं! 'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, कह खुद-खुद इत आय गये हैं॥
इत को बादर इन झोकों में, झंकृत झाँझ-झाल सुनायो हैं। मनुआँ उत जहँ उलझो उलटो, गीत गाते इत-उत आयो हैं। आ!आ! तू खुद-खुद को जानें, अापन ईश इत पहिचानो है। शत बार सत् नमन इत-उत 'मंगल', खुद-खुद इतो आय गये हैं। 'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, कह खुद-खुद इत आय गये हैं॥sukhmangal singh 02:01, 15 अक्टूबर 2014 (UTC) शव्दार्थ:-इत-इधर,इस ओर,यहाँ। इतो-इतना,इस मात्रा का। जयेतो-उधर,सभी तरफ। मरीमृशम्-हिंसक मायावियों को नष्ट करो।
अप्रपाना-कृपण। तेवाँ-धनवान। बादर-बादल,मेघ, आनंदित,प्रसन्न। जहँ-जहाँ। मनुआँ-मन,मनुष्य,एक प्रकार की कपास- नरमा। शत-दस का दस गुना,सौ। सत्-ब्रह्म,सत्य, विद्वान,सभ्यतापूर्ण,धर्म।
नोट-अथर्ववेद के मंत्रों,वेदामृतम् अथर्ववेद सुभाषितावली के मंत्रों से काव्यांतरण किया हूँ। और-
अाँगन खुदखुद धात्री आयो-2धरनी खुद-खुद कह्यो भरमायो,अाँगन खुद वह मेरो आयो। गरज्यो गर्जन भरत सा तेरा,साधो काहें आज पुकार्यो॥ मानव मन જ્ઞાन न જ્ઞાनी हो,जीवन कंटक सारा हमारो। साधु संत ॠषि साथ नहीं तो,व्यर्थ जीवन हमारा तुम्हारो॥ काष्ठ की नैया चली तलैया,दैव-दैव- दिग- दिक् पुकार्यो। मंगल मगन मन-भावन मौसम,साधो काहें आज पुकार्यो॥ गरज्यो गर्जन भरत सा तेरा,साधो काहें आज पुकार्यो। धरनी खुद-खुद कह्यो भरमायो,अाँगन खुद वह मेरो आयो॥
खुद दे दो दुर्वासा दूर्वा द्रव्य,करनी-धरनी-घरनी सहारा। म्हार इष्ट इत वास-सुवास,जन-मन धन्य वेग योग सारा॥ मै मन को मोहन मा छाड़्यो,जीवन जगमग ज्योति उजाला। अद्य अन्तस्तल अदम्य अपना हो,खुद खुद हिय खिलाहमारा॥ गरज्यो गर्जन भरत सा तेरा,साधो काहें आज पुकार्यो। धरनी खुद-खुद कह्यो भरमायो,अाँगन खुद वह मेरो आयो॥sukhmangal singh 03:23, 16 अक्टूबर 2014 (UTC) शव्दार्थ:-छाड्यो-छोड़ो। अद्य-आज। अन्तस्तल-अंत:करण,हृदयकमल। अदम्य-विजई,प्रभावशाली। म्हार-हमारा।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीग्राम अगोना था शुक्ल का, बस्ती में थे जन्म लिए। सरयू सुन्दर तट बारू का, सद्व्रत सत्वगुण सदा लहते।।
ठमक-ठनक ठाट-वाट का, झीने-झीने वसन थे गहते। पुरखोंं की पोथी घर की, पढ़ते क्रीड़ा कर-कर उछलते।।
જ્ઞાन-मान-सम्मान हृदय में, पूण्य ध्यानभाव विश्वको लहते। नर थे नारायण भाव मान था, सद् ग्रंथ साहित्य सदा गहते।।
उस अतीत के अंचल से, संग राग में और स्त्रोत लहे। जगकर जगमग पक्ति प्रबल, भक्ति लहर सी जहां गहते।।
वह जो उनके चमक चाव थे, सोंधे मिट्टी के गंध भाव थे। जनजन दिक् दिक हियमें लहते, आशा आकुल किरण पद गहते।।
भरत-खंड की भूमि धन्य, जो दिया जन्म रामचन्द्र को। कोटि-कोटि नमन'मंगल'का, साहित्य सुधा प्रियजन लहते।।sukhmangal singh 01:42, 11 अक्टूबर 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- बस्ती-शुक्ल जी का जन्म का जिला। बारू-बालू। वसन-वस्त्र,तन ढ़कने,ओढ़ने का कपड़ा।
आईनाजो न माने ईश्वर की सत्ता, क्या जैन धर्म है? मानते तीर्थकर को, गिने चुने चौबीस, जगत अनादि , अविरल चले। नियम-कर्म बतलाते हैं? अहिंसा उत्तम गुण, द्रब्य छ: मुक्ति के कहते हैं, सम्यक दर्शन, सम्यक જ્ઞાन कहलाते हैं , सम्यक चरित्र का रखिये ध्यान । सुनाते वे 'मंगल'मानो ॥sukhmangal singh 04:11, 12 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:- आईना- आरसी, दर्पण,शीशा,स्पष्ट।
आगतेरी सेवा से अग्ने रोग मुक्त बालक,
नहीं करते अनिष्ट पिशाचादि वॄद्धा तक?
मित्र द्रोह मित्रवत माता सा रક્ષक बन,
देवमित्र! वरून! मति दे बृद्हा प्राप्त करें।
देवाह्नन सब देवों से जीवन दीर्घ करें मेरी,
सौ वर्ष जियें नभ धरनी पर विनती मेरी।
तू सबके स्वामी अग्ने!मंगल विनय करे कैसे,
वीर्यवान बालक हों सब गुण सम्पन्न जैसे।
संतति सुखी रहे वैसे जैसे अदिति देती वर वैसे।।sukhmangal singh 01:49, 17 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:- बालक-लड़का,पुत्र। संतति-बाल बच्चे,औलाद,रियाया,
आर्थिक विषमताफैलायें विद्रोह विषमता? उपयोगी और पूर्ण नहीं, मानव शास्त्र अपूर्ण सही। समरथ को नहि दोष। दासो चिंतन भूले एथेंस, मानव की अवधारना देखो, अनुक्रमण भेदभाव में वृद्धि , समता न्याय बदलते रहे।, आय का स्तर हो गया ठीक॥ हुई विषमता बंटवारे में आदर्श मूलक विधि और नीति शास्त्र अपनाया सार। जिससे विकसित राष्ट्र। कर तुलना जन-जन से, तुलना पुनि-पुनि ना करें, तुलना एक ही वार ॥sukhmangal singh 16:19, 20 अगस्त 2013 (UTC) शव्दार्थ:-अवधारना-विचार पूर्वक धारण करना,ग्रहण करना। पुनि-पुनि-बार-बार। वार-ક્ષण,अवसर,वाण,वारी।
आराधनाभगवान की भक्ति करना
गुणगान करना ध्यान कर।
मुक्ति का है मार्ग प्रशस्त
न अभिमान करना मानकर॥
शक्तिराधना होती रहेगी
युग! युगों तक मानकर।
द्वापर सतयुग त्रेता युग में
हनु आराधना मानकर॥
कलयुग में प्रत्यક્ષ प्राप्य
शिव श्लोक ध्यान कर।
चरण प्रथम कलयुग का
अति भ्रष्टाचार मानकर।
नैतिकता प्रेम राष्ट्र में
निराश होता ध्यान कर?sukhmangal singh 18:05, 17 जुलाई 2014 (UTC)
आशीर्वाद गीतकोहबर आनन्द -आनन्द सारी दुनियाँ जी, पापा के चरन छू के चढ़ि जा बाबू डोली जी। मम्मी के आशिस लेकर चढ़ि जा बाबू डोली जी। कोहबर आनन्द- आनन्द सारी दुनियाँ जी॥ चाचा के चरन छू के चढ़ि जा बाबू डोली जी। चाची के चरन छू के चढ़ि जा बाबू डोली जी। कोहबर आनन्द -आनन्द सारी दुनियाँ जी॥ बुआ के आशिस लेकर चढ़ि जा बाबू डिली जी। कोहबर आनन्द -आनन्द सारी दुनियाँ जी॥ शव्दार्थ:-आशिस-आसीस,आशीर्वाद,दुआ। कोहबर- वह स्थान या घर जहाँ विवाह के समय कुल देवता स्थापित किए जाते हैं।
डोली-एक प्रकार की सवारी जिसे कहार कंधों पर लेकर चलते कैं।
नोट-शादी हेतु दूल्हा घर से निकलते समय का गीत।sukhmangal singh 23:33, 16 जून 2014 (UTC)
आर्थिक विषमताफैलायें विद्रोह विषमता? उपयोगी और पूर्ण नहीं, मानव शास्त्र अपूर्ण
सही। समरथ को नहि दोष, दासो चिंतन भूले एथेंस। मानव की अवधारणा देखो, अनुक्रमण भेदभाव में वृद्धि। समता न्याय बदलते रहे आय का स्तर हो गया , ठीक? हुई विषमता बटवारे में, आदर्श मूलक विधि और, नीति शास्त्र अपनाया सार । जिससे विकसित राष्ट्र, कर तुलना जन-जन से, तुलना पुनि-पुनि ना करें, तुलना एक ही बार ॥sukhmangal singh 16:19, 20 अगस्त 2013 (UTC)
ओ! मुसाफिरऑ! मुसाफिर सुनो तेरा, स्वागत द्वार मेरा। धन्य काशी परम्परा, आये आप विचारि, गुनगुन कियो बिहार। अजनवी आहट सुधार॥ झंकृत स्वर कानो मे, मानो करता गान। अवधपुरी हम बासी, काशी आया साथी। काशी संकृति केन्द्र, शिव घट-घट देवेन्दर। संस्कृति केन्द्र पुरी सदा, लूट ठगी यदा कदा। नगर गाव की गलियाँ, स्वागत करता साथी। काशी प्राचीन मान। भोला करता दान? अवध पुरी की शान, देख सुन ग्यानजान। आयो जायो जु काशी, लिख देना एक पाती। पास आयो साथी, लिखनाजी एक पाती॥sukhmangal singh 05:50, 13 जून 2013 (UTC) नोट:-यह कविता वार्सीलोना यात्री के भारत भ्रमण पर उसके सम्मान में लिखा और दिया था।sukhmangal singh 03:12, 18 जून 2014 (UTC)
आंसू पोंछ तू अपनी हिंदी=आंसू पोछ तू अपनी हिंदी, ओझल आंखे क्यों टोकेगी । विश्व व्यापी तू इतनी हिंदी, अमीर आंगन वाले क्यो रोकेगे। तू तो सागर खुद हो हिंदी, नाले-नाली क्यो कोसेगे । अंजन-अंज सार - अंज तू, कण-कण मे हिंदी खौजेगे । अमी असम अमरीकन हिंदी, गृह-गृह कण- कण मे देखेगे । हिंदी तू हिन्दुस्तान की भाषा, वह बोले है कन की भाषा। वह बोले बड़ वार की भाषा, हिंदी हिंद हिंदुस्तान की भाषा । हिंदी तू दीदार की भाषा, हींदी तू परिवार की भाषा । हिंदी तू वान की भाषा, हिंदी भक्ति काल की भाषा। हिंदी ना तलवार की भाषा, हिंदी तू हरिद्वार की भाषा। हिंदी ना बस मेवाड़ की भाषा, हिंदी तू जन-जन की भाषा। हिंदी तो है प्यार की भाषा, हिंदी तो सत्कार की भाषा । हिंदी तू उद्गार की भाषा, सुना था सबमे प्यार की भाषा । जन-जन के उद्धार की भाषा।। निर्भय निर्मल प्रेम की भाषा , हिंदीतू प्रग्या की भाषा । हिंदी ही है शक्ति की भाषा , हिंदी तू शिव-शक्ति की भाषा। हिंदी तू जन- गण की भाषा, हिंदि त तन-मन की भाषा । विश्व विदित विजयी तू हिंदी, वारि बार सब देखे हिंदी । हिंदी ना तु राज्य की भाषा, हिंदी ना तू राष्ट्र की भाषा। हिंदी ना तू सरकार की भाषा , हिंदी तू जन-मन की भाषा।। हिंदी तू संग-संग की भाषा, कण-कण में करूण की भाषा। विस्व में वरूण की भाषा। भाई -भाई में प्यार की भाषा , मातु पिता सत्कार की भाषा। गुरु जन में तू જ્ઞાन की भाषा, नारायण में नाम की भाषा। समरसता जीवन की भाषा, हिंदी तू उद्गार की भाषा।। नीचे ऊपर दायें बायें, जहाँ भी देखो होगी हिंदी।।03:21, 26 जून 2013 (UTC)sukhmangal singh 09:59, 23 सितंबर 2013 (UTC)
इंसान बनकर देखखंजर भी बदल जाता, मंजर को देख। तू नहीं बदला भला, सिकंदर को देख॥ अरमान बहुत तुझमें,अंजान बहुत देख। सुनशान में खड़ा,इंसान बहुत देख॥ काटों से भरी वाट आंखों से देख। भક્ષक बना कौन ,रક્ષक बन देख॥ लोहा बना कहीं ,सोना होकर देख। मरनेके बहाने बहुत,ठिकाना जीकर देख॥ उदास विश्वास कर, आदमी बनकर देख। अंधा बहरा आदमी, सहारा बनके देख॥ बरबाद ना हो मंजर, समन्दर बन देख। बहनें सभी तुम्हारी संस्कृति पढ़कर देख॥sukhmangal singh 06:21, 23 जून 2013 (UTC)
इतिहास रो रहा था?=प्राची! इतिहास रो -रो कर शांत हो रहा था। बेटी-बेटों के फर्क में का देश सो रहा था॥ दुधमुहें तड़पते भटकते आँखों के आगे जल रहे। रंगमहल मखमल लगल नयन प्रखर चल रहे॥ क्या माता से भी तुझे सरोकार नहीं रहा है। दूध सा वह खून से भी प्यार नहीं हुआ है॥ तेजाबी लोगों की वातों की जलन में जल रहे हैं। लोग सर झुकाये ? नजर छुपाए ? चल रहे हैं॥ क्यों शान्ति के नगर में विघ्न घुली जा रही है। कोई! शहर अफवाहों के रंग में रंगी जा रही है॥ बागियों के हौसले मजहवी रंगी जा रही है। वह खामोशी थी गावों में ठगी जा रही है॥ कौन जानता था दुश्मन गले मिला करते हैं। ओ! आप के खातिर आतंक किया करते हैं॥ देखा भारत हौ इहै भारत को गांन कहा करते हैं। इहाँ बड़े-बड़े अपराधी खुद को महान जहाँ कहते हैं॥sukhmangal singh 01:22, 3 जून 2014 (UTC)
, 23 जून 2013 (UTC)
इક્ષાएँमै मर जाऊँ, मुझे दफन करना। याद रहे बस इतना, दिल वह निकाल लेना। जिसमें वसीं यादें उसकी? उस दिल को संभाल रख लेना॥
अगर जलाया जाऊँ, याद रहे बस इतना। जलाने से पहले मुझको, तन-मन से पूर्ण जला देना। और हरे दरख्त की लकड़ी, जंगल से काट- काट मत लाना॥sukhmangal singh 12:21, 20 जुलाई 20
ईश वंदनाआप का भाव ही आप की वंदना । साधना रस में मन रमा लीजिए ॥ मन भटक न जाये विषय भोग में। राह पर फूल कांटे बिखरे हुए॥ भक्ति सरिता धवल बही धार बन। उष्ण मन के विचारों को शीतल करे।। अर्चना की कडी़ भावना में बधी । हृदय वाटिका में मज्ज्जनकरा लीजिए॥ तब धुलेगी मन की कालिख सभी। सुमन की कली हृदय मेंखिला लीजिए॥ भक्ति की मोंतियों को जुटाते रहो। मन सागर का द्वार खिला लीजिए॥ मन के भावों में कमल नाथ पद । हृदय सुमन से निज को मिला लीजिए॥sukhmangal singh 14:13, 21 अक्टूबर 2013 (UTC)
उजाले को आने दोथकने दो तूफान को,
कुछ मौसम मन भावन आये।
बहने दो पसीना सकल,
सावन मात खा जाये।
यदि पानी हो खारा तो,
आदमी नहाना सीख जाये ।
सब मूरत बने बैठें तो,
मन को भाना सीख जाये ।
मै चाहता हूँ उजाला,
निज जमाना सीख जाये।
परिवर्तन ही यदि उन्नति,
हम बढते जाते तुम आ ओ।
लेकिन मुझको सीधा सच्चा,
पूर्ण भाव ही भाता ला ओ ।
चित्रकूट की वादी में भी,
खग मृग गुंजन गीत सुना जाये।
सदियों से आस लगी,
राम राज कब जब आये ।
हर बार दशहरे में,
रावन पुनि-पुनि मारा जाये ।
घर-घर का रावण पुनि,
जन -जन में दुदकारा जाये ।
आरुणि धरा पर लाल रहें,
फिर उगना ना कोई आये ॥sukhmangal singh 15:51, 8 दिसम्बर 2013 (UTC)
उठो जागोउठो देश के स्वाभिमानी? सावघान हो जा सेनानी। कब तक मौन प्रवास करोगे? दुष्शासन का दुराचार सहोगे। भूख से व्याकुल जनता है? सलिल सरकता सर से ऊपर। उलटी गंगा वह निकले ना। उठो देश के स्वाभिमानी॥ कब तक पानी ઽ आस करोगे। कब तक यह व्यभिचार सहोगे? कब तक सुहाग लुटता देखोगे। कबतक उनका अत्याचार सहोगे? कब तक वह हाहाकार सहोगे। उठो- उठो देश के स्वाभिमानी? सावघान हो जा सेनानी। उठो देश के स्वाभिमानी ।।sukhmangal singh 00:39, 28 अप्रैल 2014 (UTC) शव्दार्थ:-सलिल-पानी,जल। आस-आशा,लालसा, भरोसा।
"ॐ" (भजन)जग में जीना है थोडा भजन करा हो । ना कौडिन - कौडिन माया बटोरय ॥ संग में नाही अधेला भजन करा हो । जग में जीना है थोडा भजन करा हो ।। ना संग में जइहै बैला गैया । ना संग में हाथी घोड़ा भजन करा हो ॥ जग में जीना है थोडा भजन करा हो । ना संग में जइहै बेटी बेटा ।। ना संग जइहै जोड़ी जोड़ा भजन करा हो। जग में जीना है थोडा भजन करा हो ॥sukhmangal singh 13:15, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
कमल वासनी?कमल वासनी व्याघ्र आसनी,
भव भावन हारणी हो तूँ।
मतंग मुनि पुनि किये तपस्या,
तरण तारण तारिणी माँ तूँ॥
हम भी अर्पण करने आये,
श्रद्धा स परिवार तुझे।
वास करो तू पास रहो,
उद्धारक,अधियार बुझे॥
माँ नूतन गीत सुनायें,
ममता मय, माता गायें।
हम भजन हैं करने आये,
सुख शांति का गीत सुनायें॥sukhmangal singh 02:27, 26 जुलाई 2014 (UTC)
कविकवि कुछ तान सुनाने का। उथल पुथल मच जाने का । सच माँग सदा जगानें का। दूर महानाश भगाने का । प्रलयंकार हटाने का । को कौशल पास छुपावे । तो वह कविता कह जावे। कवि को राज बतावे ॥sukhmangal singh 03:19, 11 दिसम्बर 2013 (UTC)
कवि-कविताकविता ने जग के काज को सहज कराया ।
क्रोध कोलाहल कठिन काटि सुहृदय बनाया॥
करुणा कारण सुचि सागर शांति का गोता खिलाया ।
निरा कुतूहल बाल भाव बन चमक धमक दिखाया ॥
मोह लोभ लालच चंचलता चपल हृदय नीद न लाए ।
कलह द्वेष स्व अनुचर ला जहाँ तहाँ बसाया ॥
सदाचार सौरभ संदेश देश में ला यहाँ- वहाँ फैलाया ।
सौन्दर्य चकित जग अंचल अगनित ललक दिखाया ॥
चित्त उचटन पर प्रकृति छटा मनोहक दिखी निराली ।
सुख दु:ख आनन्द क्लेश में करती सबकी रखवाली ॥
विस्मय भरे नैन से कल्पना की छाया करे रखवाली ।
सागर जल भीतर भारत बिच अनुपम छटा निराली ॥
चमत्कार की चाह चातुर्ता की कविता करती रखवाली ।
अंत: करण की कोमलता सुर सुन्दरता की करे सवारी ॥
भक्ति भाव की भक्तों में भक्ताई भरके भलाई करती भारी ।
कवि के कोमल कर कमलों को सुगम सच्चाई भरती सारी ॥
मन भावन छाया दिखलाकर कुटिल भाव भगाती ।
वन पर्वत नदी नाद नव पल्लव दे दे मन भरती ॥
चित्रकूट के रम्य छटा का गुणगान मनोहर करती ।
गिरते न्याय से ऊपर उठ भूखे को जल पान कराती॥
दु:ख दारिद्र का भान कराकर જ્ઞાन की सरिता बरपाती ।
झोपड़ी झरोखे रम्य वादियों किसानों का सद्गुन गाती ॥
हित साधन अन्याय-न्याय मंदिर-मस्जिद महात्म सुनाती ।
लाभ कराती-हानि दिखाती वातमंडल सुरम्य बनाती ॥
मृत्यु नहीं होती कवियों की विचलित होना स्वाभाविक है ।
कविता निज प्रिय सरिता श्रोत से गोता खाती जाती है ॥
उसमें जो कुछ रहेगा मनोहर वही हमारे जग काम का है ।
उससे ही होगा निज गौरव अपने सपने नाम दाम का है ॥
कवि के स्वर में प्रकृति की रहती सदा ही नूतन- तान है ।
निज वाणी बल विद्या विदित बात बनाती मान धनवान है ॥ॐ ॥sukhmangal singh 15:24, 10 दिसम्बर 2013 (UTC)
कब अइबू महरानीकब अइबू हमरी बखरिया, हे दुर्गा महरानी !
सब निर्धन के धन दे देहलू, हमहूँ के दे दा तब हम जानी, हे दुर्गा महरानी ! कब अइबू हमरी बखरिया,
हे दुर्गा महरानी ! सब अंधन के आँख दे देहलू, हमहूँ के दे दा महरानी ।
हे दुर्गा महरानी ! कब अइबू हमरी बखरिया,
हे दुर्गा महरानी ! दब लंगड़न के पैर दे देहलू , हमहूँ के दे दा तब जानी । हे दुर्गा महरानी !
हे दुर्गा महरानी ! कब अइबू हमरी बखरिया,
हे दुर्गा महरानी ॥sukhmangal singh 02:48, 8 अप्रैल 2014 (UTC)
कर्म का बंधनकर्म बन्धन में पड़ा
नर भोगता बांड सदा ।
प्रीत प्रभु पावन पायो , क्रीड़ा # यदा-कदा॥
श्याम सुन्दर सांवरो
शुद्धा सबका सदा-सदा ।
मेघ मोहन घबरा उठा
ऊसर सिंच यदा-कदा॥
स्वान सांतत ले जुदा
मंगल प्रीति लो खुदा ।
मंगल हृदय सुधा-सुधा
ક્ષय छाव पुरी सुदा ॥
आ-आभा नैना प्रिया
त्रिजटी त्रिशूल शिवयदा।
मंगल नद नंद नंदिनी
छिन तिन ढि़न गावत सदा ॥sukhmangal singh 15:18, 7 दिसम्बर 2013 (UTC) शव्दार्थ:-त्रीजटी-शिव। पुरी-काशी।शुद्धा-अमृत। सांतत-दंड,सजा। स्वान-घड़घड़ाहट,शब्द। आ-लક્ષ્मी। नद-मंगल।नंदिनी-गंगा,ननद,कन्या,पुत्री,सुरभी जो कामधेनु से उत्तपन्न छिन तिन ढिन। आभा-किरण। नैना-नम्रता। प्रिया- बल्लभी ॥sukhmangal singh 03:37, 25 जून 2014 (UTC)
कल्पसुरज चन्दा ना बदला
पवन पुनर्नवा जहाँ-तहाँ
हम बेरिआ बेरिआ बदले उतने
स्वप्न नये जब आते इतने॥
कहाँ गवा वह आम महुअा
कहाँ गवा कटहरिया कटहल।
शीशम सेमल कहाँ-कहाँ
बड़हल गूलर क पुष्प यहाँ
अब तो केवल हरा भरा
ऊसर नित दे दरस खरा।
अतरे-अतरे यहाँ वहाँ हरा
चन्दा सा सौन्दर्य बिखेरें॥
बुढ़े बच्चे बुढि़या बापू
गुठली देख खिसियात राजू।
सरसो के खेतवा का रंग
चपला के अधरन चमकल।
बदल गया मंगल ना बदला
खइले के चिन्ता केकरे
स्वस्थ रहे की आस जेकरे।
जाड़ा अति दाऊरौले जाला
कपड़ा पहिने के शौक गयल।
डाक्टर इहय कहत रहेन
मिट्टी में ना पांव पड़े
अलसी सरसो तन ना छूवे
डराप्सी कय भरमार भयल॥sukhmangal06:09, 14 जून 2013 (UTC)
कल्पनाएंसीने में हमनें जितनें जख्म सजोया। उन्हें तय करेंगी तुम्हारी योजनाएँ। लड़की है बैठी जो कसक दबाये। तय कहीं कल करेंगी बीरांगनाएँ। दौलतमंद कितने अपराधी बनाये? तुम्हारी शख्सियत तय करेगी संवेदनाएँ। मुल्क के खुद्दार जावाज चुप लगाये। इतिहास रचायेंगी शहीदों की चितायें। दिन-दिन आपाधी रात्रि को चिंताएं। मिटा देगी उन्हें जन-जन की कल्पनाएँ ।।117.199.180.218 (वार्ता) 12:34, 12 दिसम्बर 2013 (UTC)
कसकलज्जा से काँप रही धरती? नद कूप कराह रहे कोकिल॥ नैनो के आँसू आनंद वन। सूखे प्रियतम अंग- अंग॥ दवा धरा पे खरे नहीं। नहरों नीर कही नहीं॥ नारी की लाज बचाने को! लश्कर मैखाने अड़ा नहीं॥ शरन लिए जो छले जाते। प्रणव छोड़कर पराण बचाते॥ अपने ही घर अन्तर्दाह कराते। लज्जा से कांप रही धरती?॥singh 03:47, 14 June 2013 (UTC)
"कहने तो दो"आम की डाली है । कहने तो दो ॥ पीपल के पेड़ को। श्वास लेने तो दो ॥ जिसने बना रखा॥ झोपड़ी और महल । दिल है अपना । ठहरने तो दो ॥ वह बोला तो अमृत। हम बोलें तो जहर । उसे अपना मरम । कहने तो दो ॥ कितनी प्यास लिए। खूँटों से बंधे हम । बढ़ा घना अंधेरा । बात अपनी कहने तो दो ॥ कच्चा मकान हूँ मै । गिरने ना दो । गर्दिश में शिर छुपाने को । उसे रहने तो दो ॥sukhmangal singh 00:30, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
करमवाहमरे करम मे लिखल बुढवा भतार , हाय रे करमवा? सोलह-सोलह रोटी अपने बुढवा के खिलावनी--॥ बुढ़वा के खिलवनी, हाय रे करमवा? तबो नाहीं बुढवा मोटाय, हाय रे करमवा॥ सोलह सोलह बुकवा(उपटन)बुढ़वा के लगवननी, तबो नाहीं बुढवा मोटाय, हाय रे करमवा॥sukhmangal singh 14:38, 12 जून 2013 (UTC)
कलंकजोरू गणिका का एक समान ? नाचे गावे तोरे तान || छली लली शिर चढि बोलै? नई सुसभ्य़ता पनही डोलै || उमगि उमगि उमङी जो भीङ | ताली दै- दै लूटै पीर || नाचै और नचावहि धीर | टप टप टपकत शिर ते नीर || साक्षी होवहु गगन के सारे तारे | दबी भूमि भार सो आज पुकारे || बीच बीच माँ रजत सी आभार धारे | मानो मिलिके इहै कहै सारे तारे || तङफङात माँ ममता को मीत | लखि सबहिन मिलि गाय़ो गीत || मंगल महल मध्य गरग पतंजलि | मनु भृगु कृष्ण गंगा अंजलि || देवी उदा सुचिता सैटिन कपिल | मूलमती गुन्ती कमला लीला अखिल || झँकृत भूमण्डल नारद को तान | अजीजनवाई अग्रेजो का गौरव गान || लक्ष्मीवाई लाखों में एक महान | गावत नाचत जग सारा गान || वही वासना वही विलास ? ऋषि मुनि पुण्य कोटि को आस || बोवहु कलंक माथे मन रासी | भटकत फिरत बन मधुरा काशी ||singh 04:27, 14 June 2013 (UTC)
कांधा रगरीराजा बाटे बङा रगरी,अरे!साँवरिया | काँधा उठै बङे भोर,जाऩै जमुऩा की ओर ! काधा फोङै मोरी गगरी,अरे!साँवरिया | काधा उठै बङे भोर,जाऩै जमुऩा की ओर || काधा चुराबै मोरी चुनरी,अरे!साँवरिया | काधा उठै बङे भोर,जानै वृन्दावन की ओर || काधा रोके मारी डगरी,अरे!साँवरिया | काधा बाटे बङा रगरी,अरे!साँवरिया ||singh 15:08, 15 June 2013 (UTC)
काशी का चातुर्मासमांगो न और काहू से याचक बन काशी में। चातुर्मास बिताय रहतु ना एकै द्वार। लेत नहाय वहाँ
सब तीरथराज देवगण॥ मांगो--
चरबन लेत चबाय
चहुँओर महिमा काशी में।
पंचाક્ષरी मंत्र पढ़ महिमा तन की काशी त्रिलोचन ઽ लोचन- कर्णघंटा घंटा बजत। गिरिजानंदन हम
शिव याचक बनिहौं काशी में॥sukhmangal singh 17:50, 17 जुलाई 2014 (UTC) =विश्व में काशी-
विश्व जगत में पुनि काशी, का परचम अब लहराएगा। अमितशाह की अगुआई है, मंगल गीत सुनाएगा। मोदी मानवता का रક્ષक, सकल एशिया गायेगा। विश्व बना दर्शक प्यारा, जन जन खुसी मनाएगाsukhmangal singh 01:32, 20 अगस्त 2014 (UTC)
किसके साथ चलोगेचारो तरफ मुझे, गोपियों ने घेरा वर्ना, जाने कब के मैं, खुदकुशी किया होता। चुन-चुन के हमने, चम्पा चमेली कल्पवृક્ષ, आँगन में लगाए, पुष्प पेड़ पर न आए, पेड़ तो खड़े रहे, पत्ते पलास के आए। टूट रहा चारो सिरहाना, कब तक मचान पर रहेंगे, पहले था आया अकेला, तुम किसके साथ चलोगे!sukhmangal singh 00:01, 2 सितंबर 2014 (UTC)
कालीदह (सोहर)गंगा जमुनवा कै बिच तरुखवा कदम कै! बहिनी कहै तोरे ठाढे श्री कृष्ण त गेंदवा उखेलै न! उछ्डै ला गेंदवा आकाशे जाला अउर पाताले जाला ॥ श्री कृष्ण जी कूदेलै कालीदह गेंदवा के कारण! नाग सुतेला नागिन जागैले बेनिया डोलावै ले! श्री कृष्ण कवर धइलै ठाढ नागिन हस पुछैले! केकर हउआ बालक केकर दुलारल । बाबू कहवा तोहार बसों बास कहवा तोही जाला! जसोदा के है हम बालक नन्द कै दुलारल ॥ नागिन मथुरा में हमार बसों बास जाइला गृह गोकुल! घूमी जाओ ए बाबू घूमी जाओ जाओ घूमी के घर जाओ । बाबू नाग छोड़ीहै फुफकार संवर होई जाबा । नागहि के हम नाथब नाग पीठ फूल लादब । नागिन नाग फन पर होइबै असवार जाइब गृह गोकुल । नागिन बिनती से बोलै दसो नह जोड़ के । बाबू बकसौ मोरि यहवात यशोधरा जी के बालक ||117.201.188.201 (वार्ता) 12:53, 11 सितंबर 2013 (UTC)
कुछ कर दिखला देसाहित्य वह मशाल जो, आगे चला करता सदा । सामंत शाही राजनीति को, धकिया के चलता सदा ।
नेता ऐसा बने कि जो , नारी की रક્ષા करे सदा । बेरोजगारी दूर करे जो, श्रृजन रोजगार करे सदा ।
दुष्कर्मी देश में बढ़ते हों , उन सबको समझा दे । गुण्डा गर्दी राज में बढ़ती, हो छुटकारा करवा दे ।
आतंकी आश्रम ना पनपे, कुछ ऐसा काम करा दे । भ्रष्टाचार मुक्त समाज हो, विकास की अलख जगा दे । पीने का पानी गंदा जो, स्वच्छ जल तो पिला दे ।
बहता शहरों से गंदा पानी, शोधित नदियों में गिरा दे । युवा शक्ति भरमे जो हो , शिક્ષા उच्च दिला दे ।
स्वास्थ सेवा गिरता स्तर, आगे बढ़ अलख जगा दे । शोसल आडिट हो अपना, विश्व में बढ़ नाम करा दे ।
अपना देश बना दे कोई, अपना देश हवा दे । अपना देश बना दे कोई, अपना देश हवा दे ।sukhmangal singh 02:42, 9 अप्रैल 2014 (UTC)
कुंडली मारि बैठे?जाने कब अनजाने बाज, का झुंड-झुंड चला आया । पूर्वांचल का राज छुपाये, कालोनी-कालोनी छाया । हिम्मत किसकी उसे टटोले, मन माफिक मिलती माया। एक से बढचढ एक साज, दूर देश तक जिसकी छाया । कुंदली मारि बैठे वर्षों से, शासन निज लाचारी गाया । दूर दराज का खेल खेलते, जहाँ तहाँ आतंक छाया । मौजी बस्ती बलवानों सी, अनजानोंं की भारी माया । अखवारी दरबारी गाथा, जानें क्योंं खास सुनाया ॥sukhmangal singh 16:30, 26 नवम्बर 2013 (UTC)
कुनैन की गोलीस्वाती बरसे पपिहा हरषे। पी -पी की आवाज कहाँ॥ कोयल बागों में कू-कू करते? बिनु कोयल ज्योंं दिल तरसे॥ चौपालों का दौर कहाँ। नीम पीपल के पेड़ कहाँ॥ पथिक बबूल की छाँव में। थक करते विश्राम वहाँ॥ पेड़ों की सफाई होती। जनता में लड़ाई होती॥ जाड़े में मन भाते जहाँ। सूखी लकड़ी ठाँव कहाँ॥ महुआ महमह फूल नहीं। जन जन कैसी भूल रही॥ वह कुनैन की गोली गायब? जो मलेरिया को करती घायल॥sukhmangal singh 00:12, 28 अप्रैल 2014 (UTC)
कैसे आऊँ तोहरी सेजरी(कजरी) डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी। सावन भदउवा में पण्डित पुकारे? कजरी के बोल धनिया नु अइतु सेजरी। कइसे के आऊँ रजऊ तोहरी नगरी॥ डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी। सावन भदउवा में पण्डित गावे कजरी॥ ससई मोरी जागे बनल बा गठरी। चलि नु अइतु धनिया हमरी सेजरी॥ सावन भदउवा में पण्डित गावे कजरी। डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी॥ कइसे के आऊँ पिया तोहरी सेजरी। जागे ननदि मोरा ठनके ला गगरी॥ कइसे के आऊँ रजऊ तोहरी नगरी। डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी॥sukhmangal singh 23:26, 19 मई 2014 (UTC)
काँव काँवमुसहर बन बेच रहे, लोग ठाँव-ठाँव । बेंच रहे बन को, अवने- पवने दाम । बज रहे नगाड़े, बजा गाँव- गाँव ॥ कौवा भोरहरी, दुबके आया पाँव । चढि़ मुडेर पे, बोला काँव- काँव । गिद्ध गिलहरी नहीं, उनका नहीं ठांव । अल्हड़ सुबह, निकियाया चाम ।।sukhmangal singh 13:53, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
कृष्नाकृष्ना कृष्ना मै पुकारूँ | हर बसर के सामने || कृष्णजी इस दास की, विनती सुनलो आनकर | तेरी ख्वाइस है फकत, मोहन तेरे दीदार की || इस लिये धूईं रमाई , तेरे दर के सामने | हम तुम्हारे सामने औ, तुम हमारे सामने || कृष्णजी इस दास की, विनती तो सुनलो आनकर |sukhmangal singh 13:03, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
कृष्न लाल आइकेछोरा हमरे आँगन में आइके, हर दम नंगे वदन श्यामल, रंग गलियन में शोर मचाइके , दम हर दम मिट्टी में लेटे ला । दरस दिखायके, शोर मचायके ।। हंसि-हंसि लोगन मां , किलकारी मारिके, कनियां में दौडेके, सोवेला आइके।। निष्ठुर जियरा हंसावे ला जाइके, गलियन में बंसी बजावे ला भाइके, मटकी का मक्खन गिरावे ला ढ़ायके, मथुरा की छोरी लुभावे ला जायके, ठुमुक-ठुमुक नाचे ला पैजनिया बजाय के।। मनवा लुभावे ला कनिया में आइके , करे रथ की सवारी सारथी कहाय के , मानव रूप धारण किये, कृष्ण कहाय के, जगत का कल्याण किये, ग्वाला कहाय के। गीता का उपदेश दिये, कृष्ण लाल आइ के।।sukhmangal singh 15:53, 18 जून 2013 (UTC)
खंडहरभूख ने व्याकुल किया। खंडहर होता वह दिखता रहा।। पेट खाली कर कोई। तन-मन रंगोलियाँ सजाता रहा।। वे ख्वाबें सजोये ता उम्र। ओ ओर छोर मुस्कराता रहा।। पैदल चला मै। वह स्पलेन्डर से जाता रहा।। विश्वविद्यालय की ड्योढ़ी। पर जाकर मै शीश झुकाता रहा।। झोली खोली मंनतों, की वह दर बदर ठुकराता रहा।। अक्ल का ताला बंद पर। गीत फलक पर लाता रहा।। कल की ओर निहारे बठै? रात-दिन ज्यों बिताता रहा।। समय सत्य निहारता। कौन!नभ तक जाता रहा।। अपनेंअपनेंसपनें जीनेके। रह-रह स्वयं बतलाता रहा।। आँखें धुधली उतरा ऐनक। घोर अंधेरा पर मुस्कराता रहा।। अमावस की घिरी रातें। को बढ़कर दीप जलाता रहा।। स्वर नें इन्साफ किया। मुखरित हो गीत गाता रहा।।sukhmangal singh 11:31, 20 जुलाई 2014 (UTC)
खास बताया नहीं जाताकुछ बात राज खास, याद दिलाया नहीं जाता । लासें टंगी दरक्त की़, दिखाया नहीं जाता । टुप-टुप रिसता लहू, कभी बताया नहीं जाता। आजादी का खटमिठा दंश, दिखाया नहीं जाता। हिंदू मुसलिम संग-संग, समझाया नहीं जाता । सिखों का दिया साथ, गाथा गाया नहीं जाता । इसाई का प्यारा प्यार, सुनाया नहीं जाता । दर डालर देख- देख, इंसान क्यों कुचला जाता । हिन्दू मुसलिम बांट- बांट, कर इंसान खरीदा जाता ? मिश्रित सभ्यता सम्पन्न देश़, अमन चैन से रहता । अर्थ व्यवस्था उत्तम मन, आतंक वाद से लड़ता । फूल फलों से लदा दरख्त, खग- मृग का मन भरता । बलिदानी बलशाली सारे, जत्था-जत्था लड़ता ॥sukhmangal singh 16:07, 26 नवम्बर 2013 (UTC)
ख्याल करोकलम बद्ध बाधौ लाले लाल। धरती धुर आयेगा भूचाल॥ फिसल जायेगी सारी चाल। होगा चारो चुर धमाल॥ ओर छोर चहुं ओर जो जाल। उल्लास नृत्य का होगा ख्याल॥ संसकार संस्कृति आचरण साल। मातु पिता गुरुजन को कर ख्याल॥sukhmangal singh 00:54, 7 अगस्त 2014 (UTC)
गरुणगाननेत्र पसार अपार उलूक, हे!मित्र बताते गरुण कहानी। देखि-देखि ढूढो़ मम रूप, आनंद के घर घनघोर घुमानी। रूप अनेक अपार अकार, रिद्धि-सिद्धि सुन्दर सुमेर सुमानी। 'मंगल' बहु विघ्न हरन वाले, शुद्ध बुद्धि वाली उलूक कहानी। गज सा मुख देवो में देव, अंगार सो पूज्य सरन रखवारे। 'मंगल'खान सुमंगल जान, गणनायक सहायक उलूक हमारे। दानी में दानी कर वानी में बानी, सुधारस शानी वेद रूप रखवारे। नेत्र पसार अपार उलूक, हे!मित्र बताते गरुण कहानी॥sukhmangal singh 03:46, 29 मई 2014 (UTC)
गम्?मुहब्बते गम को, न भुला सकेगे आप। आज हम हैं, आप के साथ॥ कल नहीं होगे हम, न रहेगी मुहब्बत, न होगे गम॥16:20, 3 जून 2013
गणतन्त्र दिवस?पाँव बधे होने पर भी चलना पड़ता है ? जानें क्या क्या जीवन में सहना पड़ता है । गणतन्त्र हमारे जीवन में नव सीख दिलाता। पर थाने का हथियार जाने क्यों धूम जाता ।। हलचल करता सारे शहर में धूम मचाता । वर्षों से जो बन्द कमरे की शोभा बढ़ाता ।। अमला हलकान धुधली तस्वीर दिखाता । हत्याओं का बढ़ा सिलसिला वह गीत गाता ? डाक्टर व्यापारी अधिकारी सबकी नींद भगाता। कोई काण्ड हुआ होता वह कब का भग जाता॥ ताबड़ तोड़- तोड़ घर वह सब कुछ ले जाता। जलती रहे अपनी दुनियाँ वह सारी गाता ।। वह कौन था थानेदार जो हथियार ले गया। वर्षों से जो हत्या का व्यापार बढ गया ॥ कालोनी सारी कैद कौन पुकार- पुकारे ? अमला सारा मौन मन जी कर भी दुत्कारे ॥sukhmangal singh 07:46, 15 जून 2014 (UTC)
गंगा महिमाआह! कहें क्या तुझे भगीरथ इसी लिये धरती पर लाये,
युग -युग तक मानव का दु:ख सहती ही जाये। मानव को तरने को पुनर्जन्म ना धरने को, गंगोत्री से चले तुझको ले अपने साथ। जगह-जगह रुक जाते मन मे लेकर आस, खुद तो विश्र्शाम करें तू हाहाकार मचाती।
नींद ना आये सो न सकी कितने हुये बेदर्दी, तेरे अविरल धाराओं का नहीं रहा आभास। उत्तर-दच्छिण पूरब-पश्चिम ले जाते थे वे, तू ना पूछती थी उनसे कितना तुझको मोड़ेगे।
गावों नगरो शहरों धारावो से जोड़ेगे, नीचे ऊँचे पर्वत खाड़ी समतल करने का काम दिया। गड़ी सड़ी व पड़ी लाश को तरने का काम लिया , उजड़ी बस्ती ऊँचे नीचे पापी का तू साथ दिया। जितने पापी आये धरती पर हरने का काम किया , नर नारी बच्चे-बच्ची मठाधीश पीताम्बर धारी। वे निर्जन से ही ले जाते थे धनवानो के बीच , खोई-खोई अबिरल लट जनमानस रही समेट।
इससे भी जब नही अघाये दिया शम्भु को भेंट, काग भुसुन्डी बत्तख तीतर गौरये ने पान किया । भैस गाय हाथी ऊटो ने समय पाय अपमान किया, सांप और बिच्छू गोजर ने समय-समय पे पिया।
कुत्ता बिल्ली खरगोशो ने समय-समय पे छेड़ा, ज्यों-ज्यों बढ़ती चली तू निर्मल मैले तुझे किये हैं।
काना कोढ़ी लंगड़ लोभी भी आते तेरे पास, राजा योगी भोगी भी तुमसे करते फिरते प्यार।
सुन्दरियो के भोग काल में भूपति तेरे साथ, बड़े-बड़े राजर्षि राजे भी चूसे तुझको आय । नाम पे तेरे ठग विद्या करते रहेंगे लोग, गमगीनी में नहीं तूने किया कभी भी सोच। इतने से भी नहीं अघाये लिया है तेरा नीर, जब- जब किया परीछ्ण निकला निर्मल नीर ।
जब विवेक से मानव तुझको कुछ देना चाहा, भावातुर होकर उसने पुष्प दीपही ढाया।
स्वर्ग लोक से लाकर तुझको करते सभी मान, ईंट पत्थरों से मानव करता आया सम्मान। जन्म मृत्यु का भय उन्हें जब बहुत सताये , हाड़ मांस बचे जो उनसे तुझमें ला बहाये।
राम नाम का सत्य कह दावानल दहकाये, ता पर भी संतोष नहीं दरिया में डहकाये। जगह-जगह ऊपर तेरे पुल का निर्माण किया, ईंट पत्थरो से समय समय तेरा अपमान किया। नाले नलकूपों से तेरा शोषण किये निचोड़े, मित्र मंडली ने भी तुझको बार बार झकझोरे। तेरे तट पर विषय हस्तिनी ने भी किया रहना,
पा ना सकी जीवों का सुख केवल दु:ख सहना? ढोल मजीरे और नगाड़े शहनाई कीआहट, तासा! विद्वत जन भी नहीँ छोड़े गाये अविरल गाथा।
तट पर तेरे वृच्छों में लदे फूले फलो के ढेर, होगी आशा तेरी भी खायेगे मां हम बेर। तूने मां इस लोक में किया बहुत अन्वेषण,
जन-जन मिल जुल किये तुम्हारा शोषण । कभी तो उन पर सोच गंगे जिसने दर्द दिये , हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई सबने तुझे पिये । साधु संत मौलवि मुल्ला कठ मुल्लाओं को सहते जा,
तूने प्रण का किया पालन मंगल धन्य कहते जा।।sukhmangal singh 02:42, 20 जून 2013 (UTC)
गाओ गानकुछ कहो पहलवान। सुनने वाले कद्रदान ।। कहने वाला अनजान । देखने वाले मेहमान ।। बड़े-बड़े श्री मान । हो गये वे इमान ।। बचाओ अपनी जान । गाओ मिल गान ।। आते जाते तुफान ? ना घबरा तू इंसान ।। 117.199.182.26 (वार्ता) 17:50, 7 जुलाई 2013(UTC)
गंदगीजिन्दगी में स्वास लेना भी कठिन बंदगी! जब अपने आप से कह रही जिंदगी। सिर पर भारी बोझ था जो आ पड़ा, सोच मे ब्याकुल खड़ी का जिंदगी ? विसरे दिनो के ख्वाब का सपना कहाँ, वो उमंगे चाहतें चपला ठिठोली जिंदगी॥ देख कर चारो तरफ काली घटा , शहर डूबा सोच मे कब हटेगी गंदगी॥sukhmangal singh 13:49, 8 जून 2013 (UTC)
चलते चलो-चलते चलोबसर वाजीगर व्यवसाइयों से पटा, तुम क्रान्तिवीर मचलते चलो चलते चलो । मारामारी मौका परस्त जग सारा, खुद्दारों का नगर ढहते चलो चलते चलो ।। शहर सुघर संक्रमित झुग्गियों में खड़ा, न्याय अन्याय सब्र चलते चलो-2। नाहक नौनिहालों पर लगी जो बंदिशें,फन्दा समेटे बंदा चलते चलो चलते चलो।। सच को सच बकते-बकते बिफरे जहाँ, झूठ का बंडल खुला चलते चलो चलते-। मंदी और बेकारियोंं का दौर दौरा,लेकर कटोरे चलते चलो - चलते चलो।। आज अपने आप से अंजान मंगल, साँय-साँय बद चलते चलो- चलते चलो। ओ ही कटीली झाड़ियां अस्तित्व में, अनवरत कतरते चलोब चलते चलो।। अलसाई महुआई आंखों की थकन, डीठ आँखें मचलते चलो चलते चलो । पुरवइया गुमनाम चाँदनी चमकेगी, धमकेगी चलते चलो चलते -चलते चलो।। मारामारी मौका परस्त जग सारा, खुद्दारों का नगर ढहते चलो चलते चलो । जब जिंदगी तपकों में तपकर तय हुई, लप लपेटे बहुत चलते चलो -2 ॥sukhmangal singh 04:14, 28 जुलाई 2013 (UTC)
चनामेरा चना बना है कनखिया; ऊपर चले रेल का पहिया' नीचे चले हजारो नइया । नीचे बहतीं गंगा मइया ! जिसपर बैठे मंगल भइया, चना जोर गरम॥
मेरा चना बना है खर्र, पुडि़या बाँधा है कसकर। लेके जाना भाई अपने घर, खाना भाभी से मेलकर। पूछेंगी कहाँ से लाए देवर, बताओ चनेवाले का घर । चना खरीदेगी बढ़कर , चना जोर गरम ॥
मेरा चना बना है ओझा, पतोहिया खोल के आई झोटा। देवर तड़ी में खोला लंगोटा, बाबूजी उठाय लिए सोटा। बहुरिया खीच के मारे लोटा, चना जोर गरम ॥
मेरा चना बना दिलवाला, जिसको खाते शाली-शाला। उसमें डाला मिर्ची काली, चना जोर गरम ॥
टन टन टन टन घंटा बोला, चपरासी बढ़ फाटक खोला । लड़के पढ़ने गये स्कूल, मास्टर मारे खींच के रूल! लड़के गये भाग बिलकुल, चना जोर गरम ॥sukhmangal singh 23:44, 7 मई 2014 (UTC) शव्दार्थ:-कनखिया-तिरछी नजर,इसारे से देखना,तीखा।
चौथ का चांदमाघ महीना क कृष्ण पક્ષ मे,पहला पક્ષ दिखबा आइलबा। पुतवन के कल्याण के खातिर, सिसिर सर पर चढ़ल आइल बा। सखियन चला मिलि करी तपस्या, तिजियै के हम खाइब ना अब । होत भिनहियाँ चौथ लगी जब, भूखे पेट ला बिताइब तब । दिन भर हम उपवास करब जब, गौरी गणेश के भाइब तब । गणपति बाबा आशिष ले तब, गौरी माँ जाय मनाइब जब । सांझ ढलत हम नहा धोयके, कंचन थाल सजाइब हम तब । गौरी गणेश राउरै को भोग कन्ना गुण अच्छत चढाइब तब । घी दीप नैवद्य माला पुष्प, तिल गंगा जल ले मनाइब हम । चन्दा मामा देखल विनु सखी, कछु तुहके नाहि चढाइब हम । साક્ષી रहिहै चन्दा मामा , सखियन संग गितिया गाइब हम । अरसे बरस भर भला रखिहा,दूसरो बरस भल अइबा पुनि। अइसे दरसन दिल मा रहि हा ,कंचन थाल ला सजाइब पुनि ।।
माघ महीना---।।।sukhmangal singh 02:16, 26 जून 2013
चिराग जलना चाहिएसी लिए हों होठ तो भी गुन गुनाना चाहिए । अब पिटारी से कोई खुसबू निकलनी चाहिए॥ बदबू नुमा शहर सारा शाम ढलनी चाहिए । खट्टे मीठे स्वाद बहुत कुछ बदलना चाहिए॥ रहनुमें सारे किनारे फिर मचलना चाहिए । ठूठी सियासत बहुत बदरी अब सम्हलना चाहिए॥ विद्रोह की ज्वाला न भड़के जतन करना चाहिए । जनता सारी समझ रही खुद समझना चाहिए ॥ बुझ चुके वस्ती के चिराग पुन: जलने चाहिए । दीपक जलते महलो में दिल में भी जलना चाहिए॥ गाँव के सारे शहर को फिरअन्न मिलना चाहिए । अमन हो परदेश सारा रहमों करम होना चाहिए ॥sukhmangal singh 07:2 (UTC)
चिन्हित ना हनुमानना तुम्हे देखिले बाबा जनक द्वारे| तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| ना तुम्हे ऋषि मुनि के सहारे | तुम्हे त हम चिन्ही ला हनुमान| ना तुम्हे देखिले नग्र अयोध्या में| ना हो सरजू जी के तीरे तुम्हे | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| केकर पुत्र, केकर हया पायक रामा| केकर पढौले यहाँ आयो है रामा | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| अंजनी के पुत्र लक्ष्मन जी के पायक रामा| मुनि के पढौले यहाँ आये | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| काढ मुद्रिका सिया के आगै फेकले रामा| अरे परि गई सिया खुश भइनी रामा | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान||sukhmangal singh 14:31, 9 सितंबर 2013 (UTC)
चिरियाचिरिया ले गइनै चुरायके, मुरारीहमरे राम।। चीर चुराय कदम चढि बैठे, जलवा मे सखी सब उघारी , हमरे राम ॥ चिरिया ले गये चुरायके, मुरारी हमरे राम॥ हाथ जोरि के राधा विनवै, दे दा तु चिरिया हमारी, हमरे राम॥ चीर तुम्हारी तबै हम देबै, हो जा तू जलवा से न्यारी, हमरे राम॥ पुरइन पात पहिनि राधा निकलयनी,कॄषन बजावै लगनै तारी, हमरे राम॥ चिरिया ले गइनै चुरायके, मुरारी हमरे राम॥14:22, 8 जून 2013 (UTC)
जगमगहृदय के गति को गतिमान करो। धरती मां का सम्मान करो।।(मुक्तक) एक पताका छोड़ जाता हूं निशा के पास। भू धरा शमा जले दीप बन कर हर हाथ।।
शिव- शंकर शम्भु शशिन्द्र रहे पास। जन-जन जगदीश्वर दिल हर्षायें साथ।। जहां कण-कण रमते रहते हिल मिल हाथ।
वह दीप धरा पर रंग लाये जगमगाये पास।। यहां कैसा छाया अंधेरा घनेरा मध्य रात्रि। प्यारा जगमग तारा बन छायें धरा के पास।।(हिंदी कविता)sukhmangal singh 17:02, 24 जून 2013 (UTC) ीण
जतन कर रहा हूँतुम्हें क्या बताऊं क्योंं सहन कर रहा हूँ। सुबह-शाम मिल जुल आचमन कर रहा हूँ॥ यह संबंध दिनों दिन बहस में टगे हैं । निकलने का इससे जतन कर रहा हूँ॥ थकन नें हमें तोड़ डाला बहुत है। उसी का दिनों दिन स्मरण कर रहा हूँ॥ अंधेरे में सारी जिन्दगी होम कर दी। उजाले में थोड़ा भजन कर रहा हूँ॥ शख्त दरवाजे इतने कि खुलते नहीं हैं। तोड़ने का बराबर जतन कर रहा हूँ॥sukhmangal singh 03:25, 13 मई 2014 (UTC)
जप मालाईश का विधान जैसो, वाही विधि रहियो। मानव तन धरियो, ईश्वर के तुम कहियो। उसका सब विधान, सुन्दर निधान कहियो। मुग्ध मगन मान्यो़, तू भी मुग्ध रहियो। सेवा ही कार्य अपना, सेवा सदा करियो। हृदय नें नाम जपना, अपना ई जपियो॥sukhmangal singh 16:24, 30 सितंबर 2014 (UTC)
जागो नारीभूल जाओ गुजरा कल का,
वह तमाशा साल का । आइए चलें स्वागत करें, सभी नये इक काल का ॥ + + +
कमर में करधनी तोड़, पाँव में पायल मोहे। हाथ जोहे कुण्डल, नारी लક્ષण सज्जन, ना होगी नारी मंगन॥" + + +
जब पुष्प खिल जायेगाएक पुष्प देश में क्या वह निखार लाएगा? बढे़ भ्रष्टाचार जो दूर ओ भगाएगा॥ 'माँ गंगा' को गंदगी बोट साफ कराएगा? विश्व में फैले भ्रम को बढ़ आगे मिटाएगा॥ शिક્ષા में भ्रष्टाचार को दूर वह कराएगा? नौजवानों को श्रृजन कर कर्मी बनाएगा॥ ई टेन्डरिंग कर देश को आगे बढ़ाएगा? भ्रष्टाचारी देश न हो हुछ ऐसा कर जाएगा॥ सुविधा शुल्क राज्यवार कौन-कौन मिटाएगा? काज के साथ प्रचार-प्रसार कौन कराएगा॥ राज्योंं में टैक्स समान हो नीति बनाएगा। मिडडे आँगनबाड़ी पर नियंत्रण आएगा॥ विद्युत व्यवस्था,जल सबको सुलभ करायेगा? बलात्कार को देश से दूर वह भगाएगा॥ संस्कृति-सभ्यता का सुन्दर पाठ पढ़ायेगा। दैहिक दैविक भौतिक तापोंसे पूण्यमुक्ति दिलाएगा? ऐश्वर्य की धारा कान्ति युक्त का फिर से आयेगा? सूर्य उदय हो शत्रुओंं का तेज हर जायेगा॥ स्त्री-पुरुष में प्राण और अपान शक्ति बढ़ाएगा? वह प्रतिसर मणि फिर एक पुष्प लाएगा॥ दर्भ मणि विश्व देश का कल्याण करायेगा। भ्रष्टाचारियों का धन क्या देश में आयेगा? क्या त्रिभुज में फिर से आत्मा आयेगा? जो काले और धारीदार नागों को प्रणाम करायेगा॥ पुष्प स्व लालिमा से कृत्रिम चमक को हटायेगा? आओ मिलजुल कर देश खुसहाल बनाया जाएगा॥ राष्ट्र रક્ષાर्थ सुशासन हेतु यજ્ઞ कराया जाएगा? सत्कर्मोंकी जननी मातृभूमिपर यજ્ઞ कराया जायेगा॥ अग्नि और चन्द्रमा को हव्य दिलाया जायेगा। मनरेगा की मन्द गतिसे धरती को मुक्ति दिलाएगा॥ पंच द्वार से होता शोषण पुष्प सर्वेક્ષक को लाएगा? लूट -पाट की बनी अट्टालिका धरोहर बन पाएगा॥ बड़ बौली मनमानी को भी अंकुश लग पायेगा? धरती माँ माला माल होगी जब पुष्प खिल जायेगा॥sukhmangal singh 16:05, 19 मई 2014 (UTC) शव्दार्थ:-प्रतिसर मणि-इस मणि से इंद्र ने वृत्त नो मारा और वे पृथ्वी को जीते।
दर्भ मणि- विश्व कल्याणार्थ।
जेठदमखम दमकत चमकतहसि,समिधा उष्ण महि। द्रष्टा दर्शक दुति गति सद्य,अग्नि तीछ्ण लहि।। अंग-अंग तरंग उमसि उठि जहं, तहंआली लखि। छैल छबीले छन-छन छके,भृगुटी भेद वहि।। नैन नचावत बैन बजावत,गुरूमुख गारि रहि। ग्रीश्म गजब धुनि लौ आनंद,जेठ सो ठेठ महि।। मलय पवन आँगन छवि लोचत, बन वसंत मही। नैन बैन चैन नहि आँखिन,उर उन्माद लखि रहि।।sukhmangal singh 01:52, 18 जून 20
जीने दोदर्द समेटे दिल में अपनें, अपने सपने टूट न जायें। जिसको जिसको समझा अपना, अपना सपना ले वे आये॥ सगरे अगर मगर डगर-डगर, जगर मगर रहे वा जाये। सपना अपना- अपना अपना, अपना उफनाते ही जाये॥ चुक चुक चटक चमक चमन में,दामन में डर दाग न आये। सुबह हो सबेरे साम सरहरी, दोपहरी में मन मुरझाये॥ लपट लह लहाती लम्बे लमहे, लानत तानत शूल सताये। तृण- तृण तूल तलातल तल, तपकर शूल मूल बन जाये॥ लमहे बीते लघु इतनें ना, वर्तमान रीते से आये। स्वाती की आस लिए बूंदें, नद नव सीप खुले रह जाये॥ जटिल कटीले कंटक पथ-पंथ, प्यारी-प्यारी नींद न आये। मन मुस्काता पुनि घबराता, दिल की आस प्यास बुझाये॥ दर्द समेटे दिल में अपनें, अपनें सपने टूट न जाये। समुझावत बहलावत जियरा, मीत बेर बहु बंदा लाये॥sukhmangal singh 05:20, 28 जुलाई 2013 (UTC)
जंग जहाँ में?जहाँ भी देखो वहीं जंग जारी है । क्यों पिस रही सारी जनता हमारी है।।
लूट की दौलत फितरत जो तुम्हारी है। जातियों में बटता देश की लाचारी है ॥
गर गुलामी की गजब दिल में खुमारी है। तो यह सियासत में कैसी दीनदारी है ॥
आजाद अपना देश यह सब मानते हैं ? रोटी के वास्ते लोग कफन बाँधते हैं ॥
आस्तीन में वह कौन कटार छुपाए है । सर जमी पर हरક્ષण लाखों शिरमुड़ाए हैं॥sukhmangal singh 02:58, 11 मार्च 2014 (UTC)
झाड़ूकूचा का खेल निराला, घर बाहर सब साफ करा ला ।
मनमानी कानून बना ला, गली मुहल्ला साफ करा ला॥
राज-राज को साफ करा ला,राज! कचहरी साफ करा ला ।
मास्ट र साब झाड़ू मग वाला,कालेज कचरा साफ करा ला ॥
कोर्ट कचहरी झाड़ू वाला,कोना अतरा सफा करा ला ।
रखा निज मकान में झाड़ू ,चलता घर-घर झाड़ू वाला ॥
झाड़ू बडा़ ही काम वाला, घर संवारे झाड़ू वाला ।
सड़क बहारे झाड़ू वाला,गली निखारे झाड़ू वाला ॥
कोना अतरा झाड़ू लाला ,आस-पास भी साफ करा ला॥
दफ्तर में भी झाड़ू वाला,फाइल-फाइल साफ करा ला ॥
दूकानों पर झाड़ू वाला, गहना सिक्का साफ करा ला ।
गली मुहल्ला झाड़ू वाला़,मेहनत से सब काम करा ला ॥
काबा औ काशी चम का ला , अमन -चमन का झाड़ू ला ला ।
नीच दुआरी झाड़ू वाला, ऊँच अटारी झाड़ू वाला॥
दुर व्यस्था हो झाड़ू वाला , सुव्यवस्था ने झाड़ू वाला ।
नाली नाला साफ करा ला़, जग जगमग! झाड़ू लगाला ॥
झाड़ू देश का करे कल्यान ,उलटा प्रदेश ना हो हलकान ।
मेल करा ला झाड़ू वाला , जेल करा ला झाड़ू वाला ॥
हवा बह रही झाड़ू वाला ,बच-बच चलना झाड़ू ला ला ।
बेकारी हो झाड़ू ले लो, डगर नगर सब साफ करा लो ॥
कूटनीति का झाड़ू वाला, नीति बनाता झाड़ू वाला ।
जाति पाति ना झाड़ू वाला ,जन- जन का का झाड़ू वाला ?
गाव नगर का झाड़ू वाला , मन भावन सुख पालन वाला ।
लूट बचाता झाड़ू वाला , सब बतलाता झाड़ू वाला ॥
गुन्डा घटाता झाड़ू वाला , न्याय करा ला झाड़ू वाला ।
बेगारी !मिटा झाड़ू वाला , निज विश्वासी झाड़ू वाला ॥
उठल-पुथल का झाड़ू वाला,संकल्प सकल झाड़ू वाला ।
जन्म का साथी झाड़ू वाला, मृत्यु समय में झाड़ू वाला ॥sukhmangal singh 14:47, 11 जनवरी 2014 (UTC)
झूला झूला झूल रहे नंद के कुमार सखी | कदमों के डार सखी ना || झूला बना अलबेला, झूलै नंद के गदेला | हीरा मोती लगल रेशम की डोर सखी | कदमों के डार सखी ना ।| एक तो घेरे घटा काली | दूजे बुन्द पङे प्यारी| तीजे पुरूआ कै बहेला बयार सखी | कदमों की डार सखी ना ।| झूल झूल रहे नंद के कुमार सखी | कदमों की डार सखी ना ||sukhmangal singh 13:04, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
ड्योढी दईतरा बाबा कादिल से दईतरा बाबा के, ड्योढी पर शीश झुकाना होगा। कच्ची घानी का तेल, माथे पर मन से लगाना होगा । केहू खिलावे हलवा पुवा, जमके भोग लगाना होगा। जग्गू के माई का कहली, दारू मुर्गा चढाना होगा । वर्षों बीत गइल पूजा के, पंडित लेकर जाना होगा । माथे दर दउरी भरकर के, दउरल फूल सजाना होगा । बेटवन भूखे पेट बितावें, बाबा को दुलराना होगा । गाँव मुहल्ला हल्ला बोल, गीत बाबा का गाना होगा । शिखर चढि़ जब बोले दारु , झगडा़ तुम्हें छुड़ाना होगा । मुर्गा खा के तोंद तनी तो, हकीम तुम्हीं को लाना होगा। पंडित पोंगा पाले पड़ी तो, मंत्र वेद तुम्हें सुनाना होगा। लड़ी पंडित पावे बदे पैसा , लबदा लेकर दौड़ाना होगा। दिल से दईतरा बाबा के, ड्योढी पर शीश झुकाना होगा॥sukhmangal singh 15:12, 21 अक्टूबर 2013 (UTC)
तंद्राजब कभी भी शहर में मै बाहर आता यार। चील कौआ मुजिरिमो क़ा अदालत दिख जाता॥ जऩता जरजर जग जाहिर हाला हलाहल पी पीकर। भहरात फहरात हहरात ढ़हनात गते सार ॥ कमनीय कला कामना कोमल तंद्रा तारतार। भ्रष्टाचार ब्भिचार वलात्कार बलासे खिल जाता॥ बोझिल वालायेंबड़कन बकवाश बहार। अनगित अंगार झंझार भंभार धूआधार ॥ लंपट चंचल थहरत कुस काश अधियार । चमचमाती चूड़ियॉ कलाइयॉ बेजार ॥ मँगल मनमोहक मुक्ता मचली मनुहार । सो संवादों से संसद सिहरत सरमसार ॥ तरनि तरल तरंग तप्त जग मेंआग जलाकर । कलकल छलछल छवि छनती छनछन छनकर॥ झरझर झरझर झरते निर्झर अगनित हार । जब कभी भी शहर में मै बाहर आता यार ॥sukhmangal singh 14:25, 7 जून 2013 (UTC)
तुलसीकवि काशी कबीर पधारे, तुलसी तुला तस्वीर निखारे। रामानन्द रहीम पुकारे,मंगल मातु ममता निहारे। काशी कण-कण तुलसि पुकारे,तुलसी जीवन ज्योति हमारे। आशन ऊंचो ग्यान पसारे,तुलसी देव मतिराम पधारे। सौ!कविता कवीर निखारे, रविन्द्र! रोम रोम कवीर प्यारे। पलट पातीकबीर विचारे, तुलसी वेद पुरान विचारे।sukhmangal singh 14:56, 18 जून 2013 (UTC)
तू और मैंतुम्हें चाहिए गहने कपड़े,
हमें कलम और कागद।
तेरे महल सजे-धजे हैं,
मेरे गागर में सागर।
तू नौबत खाने में जा
जाकर हो जो सजती।
ठिकाने की बात भी,
सुहृद कभी ना करती।
टका पास ना होता गर,
फिर भी जी हो भरती।
छटा हुआ मैं कवि जो,
ठहरा चहल-पहल पहरा।
बड़े-बड़ों के छक्के छूटते,
जब चलता लहरा।
ठंढ़ा लोहा गरम निकला,
जब फौलादी ककहरा।
गांव-गांव नामઽदुगदुगी पीटना काम ना अपना। ठूठा सपना ! तू-तू मैं-मैं धाम ना अपना। तेवर बदल गया देख थाह लगाना काम अपना। कान फूकना कामन अपना कागजी घोड़ा सपना। दूर की बात जब कोई करता,
पानी-पानी कर पानी भरवाता।
कलयुग में मैं भी भरत नहीं,
जो राम-राम कहता जाता।sukhmangal singh 01:36, 21 सितंबर 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- नौबत खाना- माँगलिक वाजा,दुर्दशा, योग,हालत। कागद- पत्र,कागज। टका पास ना होता- पैसा पास न होने पर।
तेल का, शादी में गीतके मोरे बोआला लाली सरसोइया! के हो पेरावे कड़ुआ तेल। केकरि ककहियाँ मै मंगिया संवारबों! केकरे ही सेनुरे वियाह। बाबा मोरे बोवेलें लाली सरसोइया! सइयाँ पेरावें कड़ुआ तेल। भउजी ककहिया मैं मंगिया सवरबों! हरि जी के सेनुरे वियाह॥ (यह कार्यक्रम शादी के तीसरे दिन पहले होता है परन्तु कुछ जगह पाँचवें दिन पहले होता है इस शुभ सगुण दिन को पूर्वी भारत में मटमंगरा कहा जाता है )sukhmangal singh 15:12, 14 जून 2014 (UTC)
"धरती धिक्कारती"धरती माता हैं धिक्कारती? वह पुनि-पुनि उठ पुकारती। सभी नेक इंशानों धरा हों। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
बढ़ने लगा विलास वेग सा। आगे आओ !बचा लो मुझको। तुन्हें रहि-रहि कर ललकारती। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
जल नमक से रहती आच्छादित? हानि नहीं देती उपवन देती हूँ। नीचे जल ऊपर हिमतर रहती हूँ। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
विकरण को रोक तुझे जीवन देती। उत्तर-दક્ષિण विकशित अमरीका। पूरब उत्तर भारत देव सदृश महान। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
ग्रीकलैंड अटलांटिक पश्चिम में। मौन नाश विध्वंस घना अंधेरा। जल निधि में बन जलती रहती। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
शोभा, कीर्ति दीप्ति आनंद अमरता। विकल वासना में पलती रहती हूँ। क्रुद्ध सिंधु कपटी काल में रहकर। धरती पुकारती और धिक्कारती॥sukhmangal singh 01:56, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
दर्शनदु:खमय संसार सदा, सदा वौदॢ पुकारे? अन्त: ग्यान , चार ही सम्प्रदाय बनाये, वाह्य सत्ता के अधीन , दु:खमय है सन्सार सदा, निर्माण अवस्था ही काटे॥sukhmangal singh 04:31, 12 जून 2013 (UTC)
दर्द रोटी कारोटी का दर्द बढ़त जात बड़े बड़े लोक पाल, छी छी छी छी करैं लोग छाती उकसी जात।
बार बार पाप का घेरा दु:ख धरे हे रहि जात, छोरि छोरि बंधन फेकत नैन मेरो तनि जात॥
धू धू धू धू जरि लोक रहिहैं ऐसो गर बिचार, चमक चादनी चुरैहैं चित बरखा न अधियार।
मुँह की लाली कामी- कामिनी- विजित- नर, थूकत खेखारत हौ बिचारत सगरो सकल संसार॥आगे-sukhmangal singh 02:19, 28 जुलाई 2014 (UTC)
दु:ख,सुख आते-जातेसंकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते जाते हैं। अवसाद जब जीवन भर देता,सम्बंधी भी घबराता है॥ निज गुस्सा शिर चढ़ बोले, घर-घर में कलह कराता है। मानों नींद को पर लग जाते, बैठे-बैठे खाना आता है॥ बातेंं अपनी मनवाने मेंं, जानो जीवन भर जाता है। संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥ घर मुहल्ला रूठा-रूठा सा, अपने में मन मद खाता है। कुछ भी अपने पास नहींं ज्योंं,जी अन्दर-अन्दर घबराता है॥ कभी-कभी मन में पल जाता, कौन पाप हमको खाता है। भव भूत-प्रेत को चाव चढ़े, भाव अच्छत चंदन बढ़ जाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥ मन में नव अभिलाषा झिलमिल, झंकृत काया कर जाती है। शोक युक्त निर्जन नव पथ पर,खिल खिल विकल हंसी आती है॥ रजनी किस कोने छुप बैठी, मधुर जागरण लुट जाता है। संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,शीतल प्राण बल खाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥ कपटि व्याकुल आलिंगन करते,जीवन की चंचलता जाती है। आशा कोमलता तन्तु सा दिखता,नारी अपनी कह जाती है॥ वह नीड़ बना छुट जायेगा, आकुल भीड़ छट जाती है । मन परवस हो जाता क्यों,माना ईश्वर रुठ जाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥ फिर भी रहता वह सर्वत्र सुलभ,स्थिरॐप्रतिष्ठा वैसे दे जाता है। माता-पिता स्व कर्मों के फल,हार उदार हृदय पहनाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,शीतल प्राण बल खाता है। संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥sukhmangal singh 13:12, 12 मई 2014 (UTC)
देवी वंदनातेरे द्वार खङा एक योगी | लेकर खप्पर खङा वह भोगी || मंगल से बना वियोगी | तेरे द्वार खङा एक योगी || तू शांत पङी क्यों भोली मैया | तेरे द्वार आया है कऩ्हैया ? भर दे अब तू झोली मैया | तेरे द्वार खङा एक योगी || तू तो माँ ममता की जनऩी | सभी की माँ तू ही भरणी || जन्म धन्य हो जाये तरणी | तेरे द्वार खङा एक योगी || जोगी को भी भाये शरणी | अन धन पुष्प चढाऊ जननी || मधुर गीत गुन गाऊ तरऩी | तेरे द्वार खङा एक योगी ||singh 04:15, 14 June 2013 (UTC)
देश के खातिर लड़ने वालोंउठो- उठो! देश के रखवालों? कलम उठालो हिम्मत वालों॥ उलझी गुत्थी सुलझाने वालों। जीवन हो धन्य बनाने वालों॥ देश की लाज बचाने वालों। माथे माटी लगाने वालों॥ माता पर मर मिटने वालों। इतिहासमें नाम लिखाने वालों॥ नव जीवन को जगाने वालों। शिर रहे ऊँचा उढाने वालों॥ दुश्मन को मात दिलाने वालों। देश का नाम बढ़ाने वालों॥ सीना चौड़ा करना होगा? बुराई से बढ़! लड़ना होगा॥ देश के खातिर लड़ने वालों। नाम देश लें मरने वालों॥ बढ़ो जवानों बख्तर वालों। सुन्दर साफ मैदान बनादो॥ दुश्मनकी छाती चढ़कर हिलादो॥ मुझ से पंगा मतलो जा डोलो। बन्द पड़ा़ मुख अब मत खोलो॥sukhmangal singh 04:10, 27 सितंबर 2014 (UTC)
देश की लाज बचा-नाम देश का बढ़ाने वाले, माँ का गौरव गाने वाले।
दिखावे के होईबढ आगे जहां को दिखावय के होई । देश के बहादुर देश बचावे के होई ॥ सब मिलकर झंडा फहरावे के होई । झंडा आपन जहां में लहरावे केहोई ॥ बुजुर्गन की बात पिर लावे के होई । खर पतवार साफ करावे के होई ॥ आपन आंगन बहुत बड़ा दिखावे के होई । नागफनी व जूही फूल सुहांवे के होई ॥ का इ ठहरनै देश रક્ષक बतावे के होई । मंगल का इनहू के का सिखावे के होई ॥ लसल लाल लंगोटी लस्कर भगावे के होई। लहल लंगोटी टंगल झंडा फहरावे के होई ॥ धोवल धोती मुर्री बाध खुटियावे के होई । झंडा आपन तिरंगा जहां में फहरावे के होई॥ बढ आगे जहां को दिकावे के होई । देश के बहादुर देश बचावे के होई ॥sukhmangal singh 13:10, 6 दिसम्बर 2013 (UTC)
दिन-रात्रि रहें कैसेरघुनाथ रहो तू साथ हमारे। हृदय में तेरा वास रहे माँ पर नित आस रहे माँ का नित साथ रहे। रघुनाथ रहो तू साथ हमारे। दरख्त सभी रहे गृह में रघुनाथ रहो तू साथ हमारे। + + + सूर्य शौर्य लिए लालिमा भजन यजन नित होता हो। नियम बद्ध हम रहें सदा रिद्धि- सिद्धि नित साथ रहे। भोले मेरे पास सदा रघुनाथ रहो तू साथ हमारे। + + + पवन पुष्प संग-संग बहे चिड़िया चह-चह करें सदा किलकारी करतल ध्वनि हो नन्हें बच्चे साथ सदा। हनुमत रક્ષા करें सदा 'मंगल' रघुनाथ के साथ रहो॥sukhmangal singh 02:48, 19 जुलाई 2014 (UTC)
दुर्गा जी का मेला बा(कजरी)पियवा रेक्सा मँगायदा, अबहिन बेला बा।। दुर्गा जी का मेला बा ना॥ गइनी देवी जी के थान, लेहनी रोरी अच्छत पान, देवी कुशल से राखा, पियवा घर अकेला बा। दुर्गा जी का मेला बा ना॥ पियवा रेक्सा मँगायदा, अबहिन बेला बा।। गइनी देवी जी के थान, लेहनी रोरी अच्छत पान, देवी कुशल से राखा, बचवा घर अकेला बा। दुर्गा जी का मेला बा ना॥sukhmangal singh 15:09, 15 जुलाई 2014 (UTC)
दिलवरकाम कितना भी कठिन हो़, मनुज जो चाह दे! पथ पर पड़े काँटे जटिल, पल भर में ढाह दे । दुनिया दागी गमगीन , जि़न्दा दिलवर ला दे ।। है कोई इन्सा जहाँ में, आइना! मुहब्बत की गीत सुना दे। दिल पे पत्थर रख बैठा जहां, महौल खुशनुमा बना दे। शहर आइना निहार बैघा, कोइ तो चिराग जला दे। शान्ति बीरान हुई जुल्म बहुत, यारी पक्की करा दे। सूख गई स्याह गुलशन की, महफिल का रंग जमा दे॥sukhmangal singh 23:22, 4 अगस्त 2014 (UTC)
दीप जलने दीजिएजाति पाति से ऊपर अपना धर्म प्यारा । अनजानो के हाथ लगा खिचा किनारा ।। जाने कैसे- कैसे परदेश में आ गये । जैसे शेर के बच्चे देश में आ गये ॥ दूरंगी दुनिया ऐसा इकरंग में ढल गई । घूघट के नकाब डगर पर जा खुल गये।। सूखी रोटी भी जिसे खाने को ना मिली । तानजेब की धोती उसको किस काम की ॥ पाल पोष जिसको पहुचाया सड़क पार था । लुटेरे डाकू की भाति व्याकरण ले खड़ा था ॥ गाव जले शहर जले देश जले परदेश जले । गलियों में आज कल इ जलाशय हो गया ॥ नगर गढे शहर गढे देश गढे परदेश गढे । गली मोहल्ला कबका छतीशगढ हो गया ॥ बुझते दीप को तेजी से जलने दीजिए । तिलक नया ! उजाले को मचलने दीजिए॥sukhmangal singh 03:14, 6 दिसम्बर 2013 (UTC)
नव गीत सुना देंगेजापान की वादी में,उन्हें घुमाय देंगे। आने दो फरमान,आस्ट्रेलिया दिखा देंगे।। आज तो देखो छठ,दो प्रेमपूर्वक अर्घ। मनोकामनाएं पूर्ण,सूर्य भगवान करेंगे।। शांति सम्मान लेखे,वैજ્ઞાनिक ક્ષमता देखें। दुनिया की ताकत मुझमें समाधानડ देखें।। सूर भेष सो शूर नहिं,सिंह स्यार नहिं देखें। बाघ सिंहक छाड़िके,छाग बलिदान सबदेते।। बचन संवारे बोलियो,नव गीत सुना देंगे। जापान की वादी में,उन्हें घुमाय देंगे।।sukhmangal singh 23:50, 28 अक्टूबर 2014 (UTC)
नन्दलाल (गारी)तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी! सब तो कहला तोहरे घरिला भरले आवै रामा! भरले घरिलवा जगती पै पटकी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी॥ तब तो कहेला तुम्हरी नैया पार लगैबे रामा! डूबत नैया बिचवा में नैया त अटकी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी। तब तो कहेला तोहरा अंग नाहीं छुइबै रामा? बारी उमरिया मोरी झुलनिया में उलझी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी। जनम लिये देवकी जी की कोखिया रामा! जाय के जसोदा के गोदिया में समटी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी॥sukhmangal singh 14:20, 7 दिसम्बर 2013 (UTC)
नदियों मे गंगानटवर नागर नंदा भजा हो मन, गोविंदा।।2॥
तुम हो नागर तुम ही नन्दा, तुम ही परमान्दा। भजा हो मन,गोविन्दा॥2॥
सब देवन में कृष्ण बडे़ हैं, तारो बिच चन्दा, भजा हो मन गोविन्दा॥2॥
सब सखियन मा राधा बडी़ हैं, जैसे नदियन मा गंगा, भजा मन गोविन्दा।2॥sukhmangal singh 04:32, 8 जून 2013 (UTC)
नारी का सम्मान करोनारी जाति का जहां में करना होगा सम्मान । तन को कष्ट भले हो सह लीजै अपमान॥ सह लीजै अपमान माँ का रखना है सम्मान, सुन्दर सफल जीवन माँ करतीसब कल्यान ।। मान और सम्मान बचाना हम सबकी जिम्मेदारी । ममता का पावन आँचल गाता गीत पुकार हमारी ॥ मनमानी माथे बढी- चढी जनता की का लाचारी । सह लीजै अपमान शहर ज्यों -त्यों स्वेच्छाचारी ॥ नारी को का समझ बैठा स्वेच्छाचारी बलवान । दहल उठेगी माँ की ममता जबकैसे होगा कल्यान॥ कैसे होगा कल्यान जहां को कौन किसे बतावे । मर्यादा मिट! मरी मानवता! जहां को कौन सिखावे ॥ वही फलक वही झंकार वही शक्ति मां की प्यारी । दुश्मन को निज मात दिखाती शिव की है कल्याणी ॥ शिष्ट शराफतशान बढी-चढी कोलाहल का भारी । अनगिन अधिकार भोग का लोलुप अत्याचारी ॥ नाहक नारी पर जहाँ जब जो कोई हाथ उठायेगा । मा की ममता दहल -दहल कर मानव गिर जायेगा ॥sukhmangal singh 03:36, 7 दिसम्बर 2013 (UTC)
निरानन्द दृष्टिआलोक अप्सरा तन-मन-धन ,धरा धर नाहक ना मर जाओ ।
जन जीवन मानव मानवता ,मन से परिपूर्ण बनाओ ॥
विधु वदन खिले जीवन जीवन्त ,जनम नेकु ना इसे गवाओ ।
मिटि मिथ्या प्रगति प्रचार मादक ,न हत्या के परचम लहराओ ।।
उड़ते अंकुर अधखिली कली ,न कस्तूरी चितवन पर जाओ ।
मोहित महोत्सव मनभावन ,आवरण अकिन्चन न टकराओ ।।
धन काले कलकी कठिन कमा ई,जाच साल तीस पर न जाओ ।
कानूनी बदलाव बढ़ल बिगड़ी बहुरंगी बाजार बनाओ ॥
हम भी लुटते तुम भी लुटो ना अपने-अपने अंकुश लाओ ।
जो! हो! आसमान आँचल आँगन रबड़ी रेवड़ी बाँट-2 खाओ॥
ठेकेदारी ठगी ठठोली ,रहजन रहबर बन दिखलाओ ।
चिन्ता दूर करो तुम मनकी , जीवन का पथ सुगम बनाओ ॥
वारूदों पर नीव जो उनकी , तूफानो में उन्हे उड़ाओ ।
वक्त को भाँपो और बदलकर ,और संभलकर नींद उड़ादो ॥sukhmangal singh 05:07, 12 जनवरी 2014 (UTC)
नियम बदलते रोज?अफरा तफरी मची जहां में, जंग जन जन चली जुबानी। वे जो दिल आया कह जाते, जोखिम जो भी हो सह जाते। रोज बदलते नियम नयेपुराने। नई सभ्यता नये जमाने। मंत्री- संत्री मिल जुल नाचे। जा हिल जंग जेल खाचे। मिल बंदर वाटे धन खजाने। लूट मची ઙ तहखाने।।sukhmangal singh 08:56, 22 जून 2013 (UTC)
न्यारी भाभीअंग ना लगिहा भंग न हो, संग रहें सब होली में। विहुआ विछड़े नीरव पिछड़े, साथी साथ हो होली में॥ ૠतु वसंत को राग रंग हो,रति पति तीर चले होली में? रूठ चली अलवेली तनमन,खड़ी पड़ी अकेली होली में॥ नारि नवेली मधु ૠतु झेली अकेली खड़ी सहेली होली में। जीजा- साली फफती भरते, संगीत सहेली सुरीली होलीमें॥ देवर भाभी भौचक भाँपत, सूरमा-पुरखे- पुरवा होली में। दिनभर देवरानी की आँखें देखी,भाभी न्यारी लागे होली में॥ भाभी भक्त भाव भाँप बोली सुनो विहुआ नीरव सब होली में। लाल गुलाल की होली हो हो! सद्भभाव प्रेम फैलाओ होली में॥sukhmangal singh 05:07, 21 जून 2014 (UTC) शव्दार्थ:- विहुआ-साथ चलने वाले। रति-प्रेम, अनुराग। पति-दूल्हा,स्वामी,मर्यादा,प्रतिष्ठा,सूरमा-योद्धा,वीर।
परछाइयाँदे रही पलके प्रपन्चों से भरी तनहाइयाँ। आँख आसुओं से लबालब बन्धु परछाइयाँ। वह कौन कब समझेगा हृदय की गहराइयाँ। आग सी ज्वाला लिये मीत की तनहाइयाँ। पारखी हीरे जवाहर की रही परछाइयाँ। गीत बोया नही आकाश की गहराइयाँ काग चुगते चख्ते दाने शेर की तनहाइयाँ शानों शौकत में खड़े बेड़ा गड़क अमराइयाँ॥sukhmangal singh 04:04, 13 जून 2013 (UTC)
पावस पर्वतपो भूमि जो धरा विमल, वहीं कहीं अमृत धारा। किंचित कुछ कलुसित मानव, बहता नया किनारा। पतित पावनी तह, अनगिन ॠषि मुनि सारा। कर्म सुकर्म मुक्ति दिलाती,बड़बुद्धि सुबुद्धि सहारा। विद् विश्वविदित धरा धवल,ललित ललामसे लथपथ। लोक लाज लपझप आंगन,मन माँग मधुमय सत्पथ। सत् सास्वत संकल्प सजीव, साहित्य सरल सहारा। मुदित मनोहर मंगल छवि, कर कवि लेखन इसारा। पावस पर्व पुनीत पीयूष, हरिहर हरषि निहार। बौद्ध बंद सुखद सम्मोहन, पावस पियूष पुकार।।sukhmangal singh 16:38, 24 जून 2013 (UTC)
पीताम्बर बड़थ्वाल=क्यों देश इतना आज हलकान हो रहा है। एक छोड़ दूजे के वास्ते कुर्वान कर रहा॥ जिन्दगी तो एक सी सबकी हुआ करती। फिर भेद भाव ले क्यों मुल्तान हो रहा॥ संकीर्णता में हमने खुद खोया बहुत है। संत साहित्य का शिषर बीरान हो रहा॥
+ + + हिंदी का मान बढ़ाने,निकला संत पीताम्बर। विद्या प्राणायाम पारखी,तंत्र - मंत्र साधना कर॥ झेला झंझावातों को पर,हिंदी का मान बढ़ाया। विश्वम्भरड पीताम्बर अम्बर , साहित्य सुझाया॥ अंग्रेजी - अंग्रेज देश पर, नौकरी ना भरमाया॥ नहीं काम 'निर्गुण' पे होता,'सगुण' सबका सहारा। भारत अंग्रेजों की दासी,संत साहित्य में छाई उदासी॥ गढ़वाली आया ललकारा,अमर कोश का જ્ઞાन निखारा॥sukhmangal singh 16:49, 31 जुलाई 2014 (UTC)
पुकारउठो बहादुर उठो समर सुनशान पड़ा है। लुटते देखी माँ की लाज बलिदानी बलिदान खड़़ा है। उठो बहादुर उठो-------॥ कुर्बानी की जंग है लड़़नी दुश्मन तो ललकार रहा है। फौलादी जंगी बेड़़ा को तुम भी तो तैयार करो, अड़ा है। उठो बहादुर उठो------ ।। खड़ा शहीदी जत्था भी तुमको आज पुकार रहा है। त्याग तपस्या बलिदानोंं का यहीं रहा है केन्द्र बिन्दु? मंगल आज पुकार रहा है। उठो बहादुर उठो ------॥ चारो तरफ बिछी देख लाशों की जब ढे़र झुकने देना कभी ना अब भारत माँ का शीश। उठो बहादुर उठो -------॥ तपो भूमि हर ग्राम हमारे कवि की वाणी गाती है। लोरी गाती शाम को माता गाय हमारी प्यारी है। कहाँ सिंह बने खिलौने, बलिदानी बलिदान खड़ा है। उठो बहादुर उठो------- ।।sukhmangal singh 15:47, 20 अगस्त 2013 (UTC)
पाठक जीपाठक जी को हुआ शक, अपनी ही पत्नी पर, पत्नी हमारी है? गम हुआ,बी एच यू चले।। जाने क्यौ हम पहुच गये, मिलन हुआ हमारा सपरिवार, पाठक जी से॥ हमने कहा पाठक जी प्रणाम! पाठक जी सहमे बोले प्रणाम? हमने कहा हमे पता है,पाठक जी! डी एन ए कराने आप आये है ? पाठक जी झल्लाये मन ही मन मुस्कराये, का सारे बच्चे आप के हैं। पाठक जी को होश आया, मोह हुआ भंग, पाठक जी आए संग-संग ॥05:39, 12 जून 2013 (UTC)
पानखुद खाते हो पान- मसाला पान से होता है अभिमान पान में पड़ा केशर लाला पान जान सांसत में डाला॥ थुकता बारम्बार निराला ज्यों जीवन करता मतवाला। खुसी छिन रही ओ काला। सुर-सुर मागे हर दिन आला॥ पान बढ़ावत मान-शान जन-जन जानत अજ્ઞાन-જ્ઞાन रोश से शीश तन तन जाला करता है अभिमान नादानी॥ घर घर में जब सब फटकारें राही बटोही बृद्ध जब ललकारें आफिस-आफिस सब दुदकारें पीच पड़ी ऊपर तो पोछए काल बुलाते बुत का प्यारा, पान चबाता खुद को सारा मंगल कर लो थोड़ा ध्यान। वर्ना बच्चा होंगे बे जान॥sukhmangal singh 14:20, 18 जून 2014 (UTC)
पिचकारिहोली खेलै रघुबीरा अवध में, होली---॥2॥ होली खेलै रघुबीरा। केकरे हाथ कनक पिचकरी, केकरे हाथ अबीरा॥ अवध में होली खेलै रघुबीरा॥ होली खेलै रघुबीरा। राम के हाथ कनक पिचकारी , लछिमन के हाथ अबीरा । अवध में होली खेलै रघुबीरा॥ होली खेलै रघुबीरा ---॥2॥sukhmangal singh 23:41, 4 अगस्त 2014 (UTC)
पीपल की छाहंजानें कहाँ चला दिल,
खुले आसमान में । आना पड़ेगा एक दिन, पतझड़ की ठाँव में । लगता नहीं अब दिल, उजड़े बिरान में । मिलता जहां था दिल, पीपल की छाँव में ॥sukhmangal singh 02:47, 12 अप्रैल 2014 (UTC)
पुष्टि करताक्रिमि नाशक शिला पट्ट में जिसे इन्द्र की कहते हैं। चक्की में चना चूर होता क्रिमि का नाश करू वैसे।।-1 रक्त प्रभावित जाल समान अदृश्य दृश्य कृमि नाश करता।-2 सभी नष्ट हो सूख मंत्तौषधि ते क्रिमि कुप्रभावी।-3 आँत सिर पसलियों के क्रिमि मंगल मंत्रो के बल नष्ट।-4 जैसे भी प्रविष्ट कृमि पर्वत बन औषधि पशु में। पुष्टि रोग नष्ट किया मंगल मंत्रोषधि से।।-5{ कविता)sukhmangal singh 02:44, 17 जून 2013 (UTC)
प्रेमी माँ लीनजन्म जग में जगदीश्वर दीन्ह। भूल गये पूजा पाठ ज्यों मीन ॥ आशा त्यागें नेकु बन दीन । प्यार भटकि पथ हींन ।। प्रीयतम सेवा छोड़े प्रेमी मा लीन । आकुल-ब्याकुल उन्माद बाजे बीन ।। कानाफूसी नई नवेली कीन । चिन्ता निज चिता भला छेम हीन ।। कल्पना छन-छन छलकती જ્ઞાन दीन । आभा अधर पर मंद मुस्कान लीन ।।sukhmangal singh 15:44, 7 सितंबर 2013 (UTC)
प्रेमतू सुन्दर, तेरा दिल सुन्दर, तेरा मन सुन्दर हो जाये। तू कुछ कर जाये॥2॥ प्रेम मुहब्बत की, अबिरल धारा बरसाये, तू बरसाये, तो तू, कुछ कर जाये-2।।sukhmangal singh 14:56, 18 जून 2013 (UTC)
पैजनियाँमातु पिता व वन्धु सखा जब । मृत्यु लोक में रह नाम करें सब॥ लोक कर्म हेतु देह धरे जब। शक्ति रूप गायत्री पूजो तब॥ सूर्य श्रृष्टि सावित्री पूजो अब। ब्रह्म राघव भवभार मिटायेंगे॥ कमलनैन माँ को रिझायेंगे॥2॥ उद्धव जी को योग व्रज भावत ना जब। निर्गुण ब्रह्म की बतिया सुनावत न तब॥ प्रेम रस में भीगे तैयार योगिनियाँ सब। बाँध बाँधि पैजनियाँ बजाइबे ना अब॥sukhmangal singh 15:00, 19 अगस्त 2013 (UTC)
पोटली गिफ्ट की?घुला जहर जो जाति- पांति का समझाएगा कौन ? हो हो तो नाम विकाश का ठेगा दिखाएगा कौन । हवा हवाई बातें गर जो महगाई घटाएगा कौन ? हकीकत खूटी टंगी मुजिरमों को रिझाएगा कौन। आरક્ષण का लाभ किसको मिला बताएगा कौन ? आम खास होते हैं तो समझाएगा कौन । हो! भ्रष्टाचारी घोड़ा दौड़ा दौड़ कराएगा कौन ? आम का खजाना सारा गिफ्ट लुटाएगा कौन । बेकारी मुह बाए खड़ी बचपन खिलाएगा कौन ? मीडिया पर सब बरसते तो भान कराएगा कौन । भटके ना राजनीति राजनीतिજ્ઞ कोसिखाएगा कौन ? माई मना कइलीं भाषण सुनेके पाठ पढाएगा कौन ।sukhmangal singh 03:28, 4 मार्च 2014 (UTC)
पंडितपँडित वही जो જ્ઞાन को जाने।
જ્ઞાन जो जानि विधान को मानै॥
पॅडित वही जो धर्म कर्म को जानै।
व़ह्म जानि परमारथ ठानै॥ singh 03:57, 14 June 2013 (UTC)
प्रीति होता मितवाअरे! नृत्य होता रहा मितवा।
वह सोहर होता रहा मितवा॥
उस दौर में यह यकी मानो।
न छलका मदिरालयमितवा॥
नव गीत होता रहा मितवा।
वह प्रीत होता रहा मितवा॥sukhmangal singh 11:49, 20 जुलाई 2014 (UTC)
फूल का रंगआओ तन-मन से 'मंगल', मिल-जुल कुछ उपाय करें। बदबू दार गलियों में, ले फूल गुलजार करें। रंग रचें रच फूलों से, केमिकल किनार करें। फूल से ही प्यार करें, देश पर विचार करें। भाई-भाई मिल कर, होली में प्यार करें॥ आओ तन-मन से मंगल, मिल-जुल कुछ उपाय करें॥ sukhmangal singh 02:15, 19 मार्च 2014 (UTC)
फूस का महलफूस को महफिल अब गिनाते ना चल। वह झोपड़ी में आग लगाते चले गये॥ दिखाते रहे सदा आलीशान मकान जो। हवा वही ऐसी कि झोपड़ी उजड़ गये॥ पूछते फिरते जिसे अपना समझ उन्हें। समय से वह महफिल में चले गये॥ अंधड़ और आँधियाें में मूल उखड़ गये। जन्नते मशरूर जो हैरत में आ गये॥117.199.185.185 (वार्ता) 06:02, 16 अगस्त 2014 (UTC) शव्दार्थ;-जन्नत-स्वर्ग। मसरूर-लिप्त। महफि़ल-नज्ज़म,मजलिस,सभा,जलसा,नाचना गाना होने का स्थान।
बचपन में गाँवहम तेरा सम्मान करेंगे । ક્ષેत्र अयोध्या काज करेंगे॥ हे!हो! हम को जीने दो । आगे बढ़कर नाम करेंगे ॥
ग्राम हमारा कोटिया प्यारा । मिलजुल रहती जनता सारी॥ सरजू मेरी नदिया न्यारी । पुरखों का कल्यान करेगी ॥
वही माटी क महक महकती । पुरखों का सहारा बनती ॥ महुआ फूले आँगन सूंधति । छबि नैनबैन गदगद विहसति॥
चंडी माँ चाणीपुर रहतीं । सरजू पક્ષિमसेपूरब बहतीं ॥ वालीपुर एक ग्राम दुलारा । कोटिया करेला का सहारा ॥
पांण्डेय पुरवा पग पर है । सिकरौरा सीवान हमारा ॥ रानीमऊ रात भर जग कर । करता था गुणगान हमारा ॥
है बहती एक नदी दક્ષિण में । सरजू उत्तर कलकल करती ॥ साधु संत का धाम सदा से । कोटिया उत्तम ग्राम सदा से ।।
सेमरा में मिश्रा सब रहते । एक राय वे नहीं पनपते ॥ स्पताल और कन्या विद्यालय । मिडिल जहाँ से हम थे पढ़ते ॥
नहर का अंतिम छोर वहीं है । बिन पानी की डोर वही है ॥ फल फूल छबि छटा मनोरम। बन उपवन घनश्याम कहेंगे॥ हम तेरा सम्मान करेंगे । ક્ષેत्र अयोध्या धाम कहेंगे॥ sukhmangal singh 13:35, 14 अप्रैल 2014 (UTC)
बरसात करा के न जाइएवर्षों टूटी झोपड़ी,
सबेरे गुसैयाँ महल बना के न जा ।
मौसम गर न आवे,
कृत्रिम बरसात करवा के न जा ।
साधन सब संदूक में,
इन नयनों को सुखा के न जा ।
डग डूबा हृदय मरुस्थल,
आँसू नयन में ढ़रका के न जा ।
सखिया चढे़ पहाड़,
गुलगुले पंचर करा के न जा ।
मौसम सदाबहार बह,
रंग रोदन करा के न जा।
बे मौसम खिली कलियाँ ,
गलियाँ सँवार के न जा ।
जैसा दाम वैसा काम ,
जौहर दिखा-दिखा के न जा ।
अंधाधुंध उड़ान चढ़े,
टकसाल लुटा लुटा के न जा।
त्योरी चढ़ी चाँद,
मुखड़ा दिखा- दिखा के न जा ।
दागी गर जहाँ के,
सस्ता वेद थमा के न जा ।
महलेंं आलीशान बढ़े,
सर सड़क बना- बना के न जा ।
झोली में फकीर के दो आना,
उबला भात फैला के न जा ।
मूद रहीं पलकें तपन ,
मूसला धार बरसात बरपाके न जा।
कुछ खास अपने,
रेवड़ी पुनि थमा के न जा।
फारम हाउस भरा अन्न,
मुट्ठी भर दाना लुटा के न जा॥sukhmangal singh 12:00, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
शव्दार्थ:- बरसात-बर+सात,बर-किसी देवता या बड़े से माँगा हुआ मनोरथ,पति या दूल्हा।
सात- पाँच और दो,सात पाँच=चालाकी,सात राजाओं की साજ્ઞી देना,किसी बात की सत्यता- पर बहुत जोर देना।
बरात विदाई गीतदल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजयनी दुर्गा मइया,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजै न डिहबाबा,,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजयनी समय माई,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजै न ग्राम देवता,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजयनी काली माई,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजयनी सीतला माई,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजै न परगहन बाबा,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजै न ग्राम देवता,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! नोट:-अपने घर से दूल्हा शादी में जाते हुए देव स्थानों का दर्शन करता है।sukhmangal singh 23:33, 16 जून 2014 (UTC)
बारात परिछन- गीतराम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला। अरे! उपरही सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन॥ धावा तुहीं नउआ से बरिया अवध पुर के पण्डित। राम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला। अरे!उपरही सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन।2॥ पण्डित ૠषि आगे खबर जनावा कहाँ दल उतरी? ऊँच नगर पुर पाटन अउर बाँसे बा छाजन,अरे! झिर-झिर बहेले बयार वहीं दल उतरी। झिने झिने कपड़ा पहिनें सासु त राम के परिछन चलें। राम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला।अरे! उपरही सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन॥ झुन झुन झुमका सासु के झुनके त राम के परिछन चलें। अरे! मैं केकर आरती उतारूँ कवन बर सुन्दर! साँवरे बर न हउअय राम त पीला पीताम्बर ओढ़ले। अरे! मैं उनहीं के आरती उतारूँ उहै बर सुन्दर। राम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला। अरे!ऊपर सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन।2॥ शव्दार्थ:-उपराही- ऊपर, बढ़कर, श्रेष्ठ। ऊँच- ऊँचे स्थान में, ऊँचाई पर,श्रेष्ठ। परिछन-परछन,परिछे।
झिर झिर-मंद मंद, धीरे धीरे। बर- जिसका विवाह हो रहा हो। उहै- वही। केकरे-किसका।
नोट- दूल्हे की वारात दुल्हन के घर द्वारपूजा पर पहुँचने पर गीत।sukhmangal singh 01:49, 17 जून 2014 (UTC)
बारिशचम - चम चमके चाँदनी तारे। झिलमिल झिलमिल बदरा सारे॥ झलमल झलमल झकरी झगरी सारी। झमक झमक झमके झकझोरे क्यारी॥ अमराइयाँ मँहके रहि रहि पवन प्यारे। दम - दम दमके नाद नद नारे॥ जय जय नगाङे ढोल बजे तारे। फुदुक - फुदुक चहके मेढ़क सारे॥singh 04:17, 14 June 2013 (UTC)
बाजारू होलीदान-दક્ષિणा ले लेने दो,चंदन-टीका कर लेने दो। मन था फीका फट लेने दो,होलीबोली कह लेने दो॥ हल्ला-गुल्र्ला कर लेने दो,भला बुरा कह लेने दो। खुल्लम-खुल्ला कर लेने दो,होली बोली कह लेने दो॥ वदन ढका है खुलजाने दो,भरा पसीना ब।वह जाने दो। अल्लहड़ भोदु बन जाने दो,होली बोली कह लेने दो॥ सूनी संस्कृति सल जाने दो,दिल दर्दभरा वह जाने दो। नन्हीं संस्कृति पल जाने दो, होली बोली कह लेने दो॥sukhmangal singh 02:19, 27 जून 2013 (UTC)
इतिहास का पन्ना चौड़ा करलो'हम आप के स्वागत का कर रहे इंतजार नरेंद्र!' को दिया आँस्ट्रेलिया ने शुभ संदेश श्री टोनी एबाँट॥ जी20 शिखर सम्मेलन के एजेंडे र मेजवान संदेश! कितना मीठा-प्यारा शुभ न्यारा नारा इसे पहिचानो॥ भारत-आँस्ट्रेलिया मनोहर देश जहाँ को जहाँ जानो। धन्यवाद भी तुम्हें आँस्ट्रेलिया प्यार हमारा मानो॥ अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाऊँगा जहां-जहां जानो। चौड़ा कर इतिहास पन्ना सम्मेलन कामयाब मानो॥ कैनबरा बिस्बेन सिडनी औ मेलबोर्नका सारा दायरा। सद्भाव-प्रेम-विश्ववन्धुत्व बढ़ाएगा जन-जन में दौरा॥ मोदी के विजन को सहयोग बढ़ाने का एलान किया। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामाने सहयोग दिया॥ पाक समर्थक राजनयिक अमेरिका के घर छापामारी। हो चला भारत विरोधी एजेंट राबिन राफेल तकरारी॥ थी पाकिस्तान-अफगानिस्तान की बरिष्ठ सलाहकारी। मानवता का ज़ज्बा नहीं जिसमें वही होगा निठारी॥ आँधी बही विदेश के क्राँति उन्ही सी गाँधी छा गए। शिमोन पेरेज इजराइलबोले नरेन्द्र गाँधी सा आगए॥ पूर्व राष्ट्रपति नोबेल विजेताकहे नेहरू के गुणसमा गये। धन्य प्रेस फाउंडेशन और अनंतसेन्टर पेरेज कह गये॥ पहली क्राँति भारत के महात्मा गाँधी जी ने की बोले। दूसरी क्राँति जवाहरलाल नेहरू भारत स्थाई बना गये॥ बहुत अधिक समझ अनुभव मोदी में बोले खुलकर। और तीसरी क्राँति मैने की शिमोन पेरेज जी कह गए॥औरsukhmangal singh 04:23, 8 नवम्बर 2014 (UTC)
बहिनों की पुकारबढ़े न भ्रष्टाचार अत्याचार जग उबार । बुद्धि- बल बिलसित जन्म मनुज तुम्हार ॥ भाषा सिखा हृदय अद्भुत हो बढ़े निखार । कृपण बन सानन्द समेटे स्वयं करें सुधार ।। ज्वलित ज्वलंत दु:ख दावानल कहें विचार । सोते जगते खाते पीते रोते हंसते बढ़े निखार॥ त्राहि-त्राहि करता हाहाकार नारी दु:ख अपार। छल में क्रान्ति भीषण भ्रम भाषण में व्यापार॥ कुलषित कर कलयुग काँपता देख - दुराचार। मुक्के मार- मार कर दुराचार नीचे देहु गिरा॥ चिल्लात बिलबिलात अकुलात अति अत्याचार। पिछली पगडंडी पकड़ी न्याय करे जो गुहार ।। लखी लेखनी बढ़ी बजार भ्रष्टाचार निहार। एक-एक कर नव दुर्ग अनेकों बढे़ चढे़ विचार॥ साम- दाम अरु दंड भेद दुर्गम दु:ख दुधार । उन अंगरेजों का याद कराता भारी भार ॥ वीर बहादुर बाँकुरे हिंद के कर लेकर तलवार। त्राहि-त्राहि जहाँ में माँ ममता की चित्कार ॥ सबका साहस बढ़ा खुली साँस बही बयार। जीवन जीने की जतन जुगति भूमि हमार ॥ व्रह्म भोज तर्पण अर्पण नूतन दिखा निखार । गाँव शहर लहर बहिनों का मिला अधिकार ॥ कहा कही कहन बड़न की धोखा दिया निकार।। छेड़-छाड़ तलवार तान छोड़ शक्ति सघन संचार ॥ होश उड़े थे अच्छे-अच्छों के कवि का बन्द विचार। हक से हार जीत जन जीवन हक बहनों की पुकार ॥sukhmangal singh 16:22, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
बहिनों की पुकार-2कोलाहल कौतूहल कैसा,
सूनी सीमा संग्राम को कर॥
भवानी विश्राम न कर।
साधारण वाणी मन जैसा,
विद्वज्जन संग्राम न कर।
बीर विपुल सुताएँ बहना़,
बलिदानी विश्राम न कर।
अपने सपने टांगें खूँटी,
कोलाहल कौतूहल कैसा,
सूनी सीमा संग्राम को कर॥sukhmangal singh 01:00, 5 अगस्त 2014 (UTC)
बदरंगगुन गुन करते बहते शब्द ,कानो को हरदम। खाने को कब दोगे, मुट्ठी भर तू अन्न॥ तुम्ही बताओ बढ़कर क्यों जगमग राहे सन्न॥ युगों- युगों से होता कब शोषण होगा बंद॥15:15, 15 June 2013 (UTC)singh
भद्रभक्ति और कर। भक्ति और योग॥ भक्ति और राग । भक्ति और वाद ॥ भक्ति और सूत्र । भद्र और भद्र ॥ भद्र और क । भद्र और कपिल॥ भद्र और काय । भद्र और काली॥sukhmangal singh 03:55, 4 जून 2013 (UTC)
भारत हमारा प्यारादेवलोक सो सुन्दर, हो भारत वर्ष हमारा । रिमझिम-रिमझिम साधो, गीत बड़ा ही प्यारा। उठो सवेरे घड़ी प्रहर में, देव- दैव का दर्शन न्यारा। धन्य जनम हो जन-जन का, भारत वर्ष हमारा । अनगिन कलियां भारत मां की, जन-जन यहां दुलारा । भरी सपूतो की धरती जहां मानस-मानस प्यारा । बच्चे- बच्चे बूढी माता, साधो राष्ट्र दुलारा । ब्रह्मास काशी कौशल को, मंगल गीत पुकारा । विश्व गुरु विद् विश्व गुरु है, काशी प्यारा न्यारा । नई शक्ति व नव साधना, सदियों! रहा सहारा । एक से बड़कर एक यहां, वैજ્ઞાनिक प्यारा- प्यारा। सारा भाई सतीश धवन, सन् सत्तर इसरो! पुकारा। જ્ઞાन था ઉनका ध्यान रहा, सम्मान सभि को जाता सारा । पोलर पोल खोल दी सारी विश्व जगत उजियारा ए़-एल- वी-3 ली एस एल वी, पुनि जी एस एल वी सारा। रिद्धि-सिद्धि कल्पना अस्सी की, भारत वर्ष हमारा । यू आर राव कस्तूरी रंगन, नायाब तरीका सारा । प्रोद्योगिकी चरम पे भारत, जन-जन रहा सहारा । टाटा विक्रम वर्गिज कुरियन, कलाम को कला सारा । युग द्रष्टा मंगल प्यारा, भारत वर्ष हमारा प्यारा। उज्ज्वल जग- जग जाहिर, माहिर वैજ્ઞાनिक ઙसारा। महा शक्ति हो ला या भारत, है बच्चा-बच्चा प्यारा । જ્ઞાन शक्ति की जगत् जननी, जहां बच्चा सच्चा सारा। है सबको नमन हमारा, भारत वर्ष हमारा प्यारा ।sukhmangal singh 16:03, 19 अगस्त 2013 (UTC)
भारत महानभारत देश महान, गीता और कुरान, भारत का राष्ट्रगान, सब धर्मों से महान।भारत--॥ मानवता का मान, श्रेष्ठ है विજ્ઞાन, जीव-जीव समान, भारत देश महान।भारत--॥ गुरुनानक का જ્ઞાन, ईशू का प्रेम विજ્ઞાन, गीता का सम्मान, मानवता का उपदेश, गीता और कुरान, भारत देश महान।भारत--॥sukhmangal singh 16:10, 20 अगस्त 2014 (UTC)
भुतात्मायेंपंचतन्मात्राऐं, अहम से आई, अहंकर तो जन्मा, आत्मा-परमात्मा से। अहंकार जब आया,आत्मा के पास अपार, जन्मे तब संसार में, लाखों जीव-जार।। उस और इस का प्रयोग क्रमश यार: आत्मा परमात्मा के लिये करते सार, महा चरक की भाषा,भृतों को समझाता। सत्ता जिसकी बनी यार, वही भूत कहलाता॥ भूतों को सुसूक्ष्म इन्दिरियों से परे सुनाता, इन्दि॔यातीत समझाता और बतलाता॥sukhmangal singh 03:43, 12 जून 2013 (UTC)
भूलो बीती बातदे गये मेरा राज। साहबान सजी बारात। बहुत-बहुत धन्यबाद।। कृतग्य हों उनके आज। सधे साज सुसम्बाद। संसकृति समता साध। भूलो बीती अब बात।।।00:58, 18 जून 2013 (UTC)
भ्रष्टाचार एटम बम हो गइल?दु;ख की घनघोर धटा कारी छा गई तो। कहाँ भला होगे नसीब शून्य स्वर्ग भाई हो॥ नहीं डरो इससे केवल मंगल बुद्धि भ्रम हौं। सोचो भ्रष्टाचार कहलाता एटम बम हौं॥
यह वाकाआउट अथवा सद्भाव का कल हौ । हा! इन्टरनेट व्यथित यह नहीं फल हौ ॥ क्रिया समझने और देखने की भी पहचानें। का पક્ષ-विपક્ષ विकट देखकर इसे गरम हौ।।
सोच समझ उद्देश्य उचित जरा विचारो। पूर्व इतिहास को बाँच कर मरम निकालो॥ यूरोपी- इंगलिश शिક્ષા की तुलनाकर डालो। हिंदवासियों तम मिथ्या कुंठित भरम निकालो॥
अत्याचार महीप महा जब करते मानो। हा! दु:खी प्रजा तभी डरती चिल्लाती जानो॥ दीन दुखियों की जब सुनवायी नहीं होती। इतिहास की बातें सब सत्य सदा होती॥
जो हुआ जुल्म माँ बहनों के ऊपर जानों। उससे निकला का लोकपाल बनकर जानो॥ सर्वनाश की ज्वाला उसमें!कमी करम है। हा! निश्चय जानो भ्रष्टाचार एटम बम है॥
भ्रष्टाचार एटम बम हो गइल?(-2)अत्याचार महीप महा जब करते मानो । हा! दु:खी प्रजा तभी डरती चिल्लाती जानो ॥ दीन दुखियों की जब सुनवाई नहीं होती । इतिहासों की बातें सत्य सदा होतीजानो ॥
जो हुआ जुल्म माँ बहनों के ऊपर जानो । उससे निकला का लोकपाल बनकर मानो ॥ सर्वनाश की ज्वाला उसमें ! कमी करम है । हा! निश्चय जानो भ्रष्टाचार एटम वम है?॥
था शुभ सरल देश सुसज्जित सभ्यता सुख देता । जब बन्धु पिता प्रतिकूल सहोदर भी दु:ख देता ॥ प्रथा दहेज का खुला मुख अति मुहफट दबते तो । ले स्वाभिमान खड़े जहाँ शून्य हृदय रोते हो ॥
हो हृदय धीरता नहीं मति में चतुराई। कौन कुबुद्धि अनभिજ્ઞ आपकी करे विदाई॥ हाय सुबुद्धि - शान्ति में बढी-चढी लड़ाई। का संसद का गलियारे को दंगल हो जाई॥sukhmangal singh 05:24, 5 जनवरी 2014 (UTC)
मनरे लगनकरधरम पर चलकर,
करो सत् करम।
प्रभु से लगाओ,
तू अपनी लगन।
लख चौरासी में,
तू खो रहा है।
धरम पर चलो,
करो सत् करम।
तुम्हारे करम,
तारे तुम्हें हैं।
लगाओ सुलगन,
तूकर सत्यकरम।
सत्त् सद्गुण सुनो,
सद्व्रत तारते हैं।
मूल मंत्र'राम'में,
लगाओ ऽ लगन।
तू लगाओ लगन,
करो सत् करम।
माता-पिता गुरु व,
वेद तारते हैं।
भागवत पुराण औ,
तारे उपनिषद हैं।
सीता भजन कर ,
मन अब लगन कर।
प्रभु से लगाओ,
तू अपनी लगन।
धरम पर चलकर,
करो सत् करम।sukhmangal singh 16:01, 20 सितंबर 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- सत्-सत,सत्यता पूर्ण धर्म। सुलगन-सुन्दर समर्पण भाव से लग जाना। सद्व्रत-सत्यविचार।
सत्त्-तत्व। सत्य-सच्चा।
माँ की ममताममतामयि माता का,
हम मनन करने आए।
हृदय में भाव भरा,
अभिनन्दन करने आए।
दरस देख मन ही मन,
माँ बंदन करने आए।
करुणा सागर का,
अभिनन्दन करने आए॥
दरस देख तन मन से,
धरणी पर माँ का।
क्रन्दन करने आये,
बंदन करने आए॥ + + +
माँ के चरणों में,
अवगुन अर्पण करता हूँ।
सोमवती सोमवार को,
अभिनन्दन करता हूँ॥
माँ तेरे भक्तों का,
नव नूतन दर्शन करता हूँ।
सुखमंगलઽदर्शन नव माँ,
अभिनन्दन करता हूँ॥sukhmangal singh 02:04, 26 जुलाई 2014 (UTC)
माँता-पितानिर्गुण पिता - सगुण हैं माता। वन्दनीय हैं दोनों - दोनो दाता॥ निर्गुण सगुण व्यक्ति को दाता। मंत्र लिए बिनु पार न कोई पाता॥ परमहंस जी वैष्णव शास्त्र हैं गाते। काली रूप में जो कृष्ण को पाते॥ ओ! ही जो वेदों को पढ़ने ડ जाते। जो "ॐ" सचिदानन्द: व्रह्म: को पाते॥ तन्त्र -शास्त्र में जो- जो ध्यान लगाता। "ॐ"सचिदानन्द:शिव:को वह ही भाता॥ पुराणों का सुगम पाठ जिसे जब भाता। "ॐ" सचिदानन्द: कृष्ण: को वह पाता। त्याग तपस्या तार में जो ध्यान लगाता। अति व्याकुलता में ही प्रभु मिल जाता॥ चन्दा सी सीतल माता पिता सूरज आभा। सदा विचारों की स्वतन्त्रता आँचल में आता॥sukhmangal singh 06:55, 22 जून 2014 (UTC)
मर्यादा(सन्1994) लोकतन्त्र पहुच चुका, शून्य के शिखर पर? अब देखना है आज, शांति का विद्भवत्स्वरूप, मर्यादा की सीमा, जीवन में जीना, मानव का जनाधार, वातावरण का उपहास , जन-जन प्रकाश, प्रदूषित समाज, ना होगा आज, कहता सुनता, सारा राज्य? भारत आज?sukhmangal singh 16:12, 18 जून 2014 (UTC)
मिशन के ठीकेदारऐ वतन के रखवालों, सुनो मिशन के ठीकेदार। यहाँ हो रहा कैसा आज, संसकृति बचाने की लगी, खुल्लम खुल्ला वाजार॥ हर व्यक्ति चाहता बस, एक मिशन हो पास। समाज में कुरीतिया भला, लोग फैला रहे है आज? जरा सोचो! कब सोचोगे, सुधरो कब सुधरोगे। बसुन्धरा पर जब चारो तरफ । विखरी देखोगे लाश?sukhmangal singh 16:18, 18 जून 2014 (UTC)
मुखड़ा नीक लागेपग नूपुर की झंकार रसिया। हो! घूँघट में मुखड़ा नीक लागे॥ जल भरहु झकोरि-झकोरि रसिया। अंखियन में कजरा जब नीक लागे॥ पतरी सी गोरी वा गदराया रसिया। सोने का कलशा जब नीक लागे॥ छोटी सी विंदिया सैयाँ से पिरितिया। घूँघट में मुखड़ा जब नीक लागे॥ रेशम की रसरी सखियन के गितिया। घूँघट में मुखड़ा जब नीक लागे॥sukhmangal singh 23:49, 21 मई 2014 (UTC)
मौसमी मनथी चाहत फूल की हेलया टा टा काँटा मिला । गया पकड़ा पगडंडी पर चटाचट चाटा मिला ॥ हिमाकत हुस्न छूने की दर्दे दिल खाटा मिला । पावडर प्रेम के बदले चमकता साटा मिला ॥ अच्छा हुआ था कतई उससे सगाई ना किया । रूप क पुजारी पुजारन नूर जिसे देख लिया ॥ फिरा जिसके खातिर गलियन मर्म हमने देख लिया। आशिकों को उसका हमने निशाना ना बनने दिया ॥ सारी दुनियाँ गलती मेरी जब तलक न मान लिया । मैं छेड़ता रहा फेस बुक पर तब तलक गिला । सरे बाजार जब तलक मेरी पिटाई ना किया ॥sukhmangal singh 00:47, 11 मार्च 2014 (UTC) शव्दार्थ:-हेलया-खिलवाड में।
मंडप-गारीहरियाली!बन्ने कच्ची कली दिलवाली। मालिन भी देगी तुम्हें गारी हरियाली॥ हरियाली! हरियाली!बड़ी दिल वाली। बन्ने का जूत वा लाहौरी? बन्ने का जामा--- --। बन्ने तम्हारी दादी महलों की रानी। बन्ने तुम्हार दादा बुश सा शानी? बन्ने तुम्हार चाचा मनमानी। बन्ने तुम्हार चाची चौधरानी। बन्ने तेरा भैया कम्पनी वाला। बन्ने तेरी भाभी भागल पुर वाली। बन्ने तेरा मामा दिल्ली के राजा। बन्ने तेरी मामी मुजफ्रपुर वाली। हरिवाले तेरा पापा दिलवाला। बन्ने तेरी माँता फैसन वाली। हरियाली! हरियाली!बड़ी दिल वाली॥ हरियाली!बन्ने कच्ची कली दिलवाली। मालिन भी देगी तुम्हें गारी हरियाली॥sukhmangal singh 02:20, 17 जून 2014 (UTC)
यक्षमा निवारनपृथक यक्षमा मनुज किया,चिवुक नेत्र कर्ण जिहवा से तेरा। पृथक नाड़ी ते चवौदह यक्षमा रोग से आज अब, नाड़ी कष्ट वक्ष कन्धे, भुजाओं की उष्णिह ॥१-२ हृदय हलीक्ष्ण,प्लीहा-पार्श्व उदर यकृत यक्षमा जो॥१-३ कुक्षियों नेत्र उदर से यक्ष्मा रहा भगाय।-४ कटि के निम्न पट के उच्च गुह्य भाग और नेत्र से ।-५ उगली नखो अस्थि मज्जा स्थूल सूक्ष्मते।-६ त्वच्चा जड़ों अंगों कूपों से,यक्षमा रोग हटाता रोगिन। महर्षै विवाह मत्र ते, कश्यप के आज हटाता रोग।-७sukhmangal singh 16:37, 18 जून 2014 (UTC)
रजनीतरुण!आम्र मंजरि मनोहर, निरखि-निरखि शर्मात। काव्य लिख रहा मंगल,मतंग मंद-मंद घबरात।। साथ!ग्राम गुन गान लेख,गिरि गिरिराज खिसियात। कंचन-कंचन जडि़त मुकुट,मानो रेख-लेख पिशाच! रमणीक रमणी रमती ,रजनी शान सुहाग। ललकित लली ललाट,लखि कोकिल राग बिहाग।।sukhmangal singh 03:17, 18 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:-तरुण-युवा,जवान,नया। मंजरि-गुच्छे। लेख-देव देवता लेखा। रेख-लकीर। पिशाच-पिसाच। रजनी-रात्रि।
सुहाग-सुहाना सुन्दर हौ। ललकित- गहरी चाह से भरा हुआ। बिहाग- एक प्रकार का राग।
राखो चुंदरिया संवारि भीगल जाले मोर चुंदरिया, छिपाये छिपे नाँ द्युति दागरी। चूक चटक चंदा जो छिपा था,चुंदरी तो चटकार री॥ भींगल चुदरी निखिल निचोड़ा, मोहन ज्यों सपने साथ री। घट-घट खोजत नीक चुंदतिया,पायो अपने पास री॥ इहै चुंदरिया नाहिंं चुम्हारी, प्यारी-प्यारी यारी दुलारी। जेते सुन्दर चुंदरी पायो, तेते જ્ઞાन, मान,गान अगाध री॥ जाबुन लायो मोहन मोरे, मौन ज्यों महा भंडार री। चुनरी चुर चारो चौकछु रे, सूर्य चन्द्रमा चुन्यो संसार री॥ आंगन लाये पिया चुदरिया भीगी- भीगी झीनी सारी। गणपति गावत बीच बजारे नीक चुदरिया नीक किनारी॥ रंगी चुदरिया को रंग निराला, मागत मधुबन मां नन्दलाला। मंगल मंदिर बूझत न्यारी देखत बारी-बारी- सारी॥ सोलह सी बंद चुदरी चोखा, चार चौपटा नाग पास री। रंग धूमिल चुंदरी चटकीली, राखो राजे इसे संवारि री॥sukhmangal singh 14:47, 19 अगस्त 2013 (UTC)
"राधा- राधा"नव गीत सुनाऊँ , राधा- राधा । बहु भाँति रिझाऊँ, राधा- राधा । प्यारी बरसानेડ न्यारी, राधा-राधा । हौ चौकस चेरी ,राधा- राधा । सबकी प्यारी ,राधा- राधा । दिल से न्यारी ,राधा- राधा । मन को भाती , राधा- राधा । बीन बजाती , राधा-राधा । कृष्ण मुरारी की , राधा- राधा । छबि छैल छबीली , राधा-राधा । भली भोली भाली , राधा- राधा । सरल सुरीली है , राधा- राधा । रंग रंगीली है , राधा- राधा । सुन्दर आनन की , राधा- राधा । छवि मन भावन की, राधा- राधा ॥sukhmangal singh 23:50, 27 अप्रैल 2014 (UTC)
राम जन्मअयोध्या में राम कै जनम भइलै, भरथ कुण्ड यज्ञ भइलै! अरी हो? सगरी अयोध्या आनंद भइलै, राम मोरे जनम गइलै! एक तो गोर च माँ ढगरिन, दुसरे गरभ से? आ हो? तीसरे माँगलै सुख पालन, पैदल नहीं आवैले? माँगलै सोने क हँसियवा, रुपेह केरो खापड़! ढगरिन माँगै राजा दशरथ कै घोड़वा, देवी कौशल्या सुखपालन! पावैले सोने कै हँसियवा, रुपेह केरो खापड़! ढगरिन पावै राजा दशरथ कै घोड़वा, देवी कौशल्या सुखपालन! पहिर ओढ़ ढगरिन ठाढ़ भईनी, सूरज मनावेनी ! सूरज? बढ़े राजा दशरथ के वंश , बरिश रोज फिर आई॥sukhmangal singh 16:55, 18 जून 2014 (UTC)
राम आइलैं बन से?राम आइलै बन से, मगन भइली माई। मातु कौशल्या, आरती उतारैं, मगन भइली माई। राम आइलै बन से॥ राम- लखन, महलों में आइलै। केकई कोन लुकाई, हाथ जोरिके, रामजी बिनवै, तोहरे पुन्नि से, माता सुख बन में। राम आईले बन से, मगन भइली माई॥ हाथ जोरि के, केकई विनवे, द्वापर में जन्म, जब लेबैं हम, हम होवै देवकी, तुम कृष्ण कन्हाई। राम आइलै बन से। मगन भइली माई॥sukhmangal singh 13:32, 11 सितंबर 2013 (UTC)
रातआज की रात जख्म भर दो तो कुछ बात बने। वर्ना कल हम भी कटार ले निकलेंगे तो ? जुरर्त करना नहीं पता हमें तेरी कूबत की । देखा था कल आप भी तलुए चाटते मिले॥sukhmangal singh 13:21, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
राष्ट्र भक्त झाँक रहा?आने का आमंत्रण सुनकर, जन-मन को जो जगा दिया है । बौद्धिक नगरी रजधानी बन, शिव शंकर को हिला दिया है । तूफानो सा देश में हलचल, हलचल विश्व में मचा दिया है । उड़-उड़ डाली-डाली पर, चिड़िया गीत सुना दिया है ॥
काशी शिव की नगरी प्यारी, "मंगल" खुद को सुना दिया है । चाम का बेरा प्रहरी अस्थिर, भौचक कुत्ते भौक उठे हैं । गंगा की धारा थी अविरल, पाषाणों ने बाँध लिया है । भारतीय परिधान लकालक, जीवन सारा साध लिया है । पंडित मौलवी मीटिंग करते, रात घर कोईझाँक लिया है ॥
सड़क गली पानी सुधरे जब, गुजराती कब दौड़ किया है । रंगदारी वह कौन माँगता, नाम और का बता दिया है । का सत्ता झडा लेकर को कर, जो खादी पहन छुपा लिया है । धरती की लाज रखो नटवर, हथियारों ने हिला दिया है ॥
लाखों बिटिया बेबस चलती, मुख अपना जो छुपा लिया है । शासन में चुस्ती कुछ दिखती, कोलाहल को मिटा दया है। हथियारों का होड़ का काशी, भौचक सबको बना दिया है । रेप छिनैती का समाज जो, पारा सारा चढ़ा दिया है ॥
उद्योगों की कमर कसेगी? नव जवान जन ताक रहा है । हिंदी होगी राष्ट्र की भाषा? सभी सत्य को भाँप रहा है । खुदा-ईश्वर एक सदा से, राष्ट्र भक्त फिर झाँक रहा है ॥sukhmangal singh 00:19, 23 अप्रैल 2014 (UTC)
धर्म सतपथ पर चलना सिखाता है"रीढ़ मानें"सत्य अहिंसा दया जो जाने।
क्रोध लोलुपता मन से भागे॥
पंथ- पथ-पथिक धैर्य प्रकाश।
भटका राही रहि-2 उड़े अकाश॥
सामवेद ब्रह्म का पूर्ण केश जानें।
ૠग्वेद ब्रह्म की पूर्ण रीढ़ मानें॥
वेद गीत संगीत छन्द जो जाने।
જ્ઞાन सत्य प्रेम भक्ति को माने॥sukhmangal singh 00:14, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
रंग जमादे?काम कितना भी कठिन हो, मनुज जो चाह दे । पथ पर पड़े काटे जटिल, ક્ષण भर में ढाह दे । दुनिया दागी गमगीन, जिन्दा दिलवर ला दे । है कोई इन्सा जहाँ मे, मुहब्बत की गीत सुना दे । दिल पर पत्थर रख बैठे जहाँ , महौल खुशनुमा बना दे । शहर आइना निहार बैठा, कोई तो चिराग जला दे । शान्ति बीरान हुई जुल्म बहुत, यारी पक्की करा दे । सुख गई स्याह गुलशन की, महफिल का रंग जमा दे ॥sukhmangal singh 03:40, 14 अगस्त 2013 (UTC)
लाज मोरी राखालाज मोरी राखा हे बनवारी| गलियाँ गलियाँ घुमें सुदामा| छुधा पीर भय भारी | मर्जी भई दीनानाथ की | बन गयी कनक अटारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी | बिच सभा में बैठि द्रोपदी | त्राहि गोविन्द पुकारी | खैचत चीर भुजा दोनों फाटत | बढ़ गयी पीताम्बर सारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी | छप्पन कोटि जल मेघ बरसे | इंद्र कोप भय भारी | डूबत बृज को बचा लिए तुम | नख पर धरै गिरधारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी | भारत में भर दूल का अण्डा | पक्षी रहत पुकारी | अब तो प्राण हिय तुम | कटला संकट भारी | सुख मंगल सुख कय पालक | निस दिन आस तुम्हारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी ||sukhmangal singh 14:39, 31 अक्टूबर 2013 (UTC)
ला गाओ जीशिव के डमरू की वान, मुरली वाले की तान। रहि-रहि गायेंगे गान, तो'ॐ' करते हैं ध्यान॥ ओ! गावो जी गुनगान। नाचो मुरली की तान, आओ राधा माँ प्रान, लाओ लाला नव गान॥।sukhmangal singh 03:09, 13 जून 2013 (UTC)
वक्तवक्त! वक्त छोड़ता नहीं किसी को! मोड़ देता है शालार, जी रहे जवानोंं को। तोड़ देता मै भंग भरे इन्सानों को। फोड़ देता अहम् लिये हैवानों को।। वक्त का सत्य सीता हुईं बेहाल थीं। अशोक में रहीं उनकी ही चाल थी। वक्त की निर्दयता पार्वती हुईं विह्वल। वक्त का दबाव विश्वामित्र हुए चंचल।। कल तक रहे जो देव हैवान बन जीते सगरी। माया रूपी नगरी, शैतान बन जीते डगरी।। अपनां सब सपना यहांँ वक्त सब को है मारा। मत कहो वक्त ने मुझे मारा, वक्त भूखे दिलों का पुच्छल तारा।। हे वक्त! तू बता यहाँ मंजिल हमारी तू कहांँ। पुष्पों से सारी साया सजा सेज तू सजा सजग हो यहांँ बारात बहु लगी जहांँ बारात तू दिखा हमें भी वहाँ। कल कहाँ रहेंंगे, हम सभी जहाँ जी से बता हमें तू समा समा ।। विष पिया था शम्भु ने अमृत हुआ था वक्त से। वक्त!ऋषि मुनियों को, नहींं कभी भी छोड़ा। वक्त ने व्रह्मा को प्रभु की तरफ मोड़ा। वक्त ने अर्जुन के मय को है तोड़ा। वक्त ने कंस का, विनाश कर ही छोड़ा। वक्त ने सपरिजन रावण को ना छोड़ा। वक्त ही तो है जो परिवेष को निचोड़ा वक्त ही है आज जो शाश्वत कर वेद से जोड़ा। वक्त ने कागा को भी मोड़ा शंक युक्त जो थोड़ा-थोड़ा।। गरुण पड़े विषमय में वक्त ने अंडे को छोड़ा कागा ने सुन लिया वक्त का चमत्कार पार्वती सो गयीं, मिला नहीं अमरत्व। नहींं लोभ है सुनो वक्त अब! जीवन जग मेंं जीने को। शिष से सनकी कूट रहा वक्त सुनो वही अब चलने को सन्तप्त॥ + + + चक्की मे पिसवा दो ऐसे जैसे गेहूँ पिसता वैसे चक्की मे दरवा दो वैसे दाल अरहर की दरती जैसे॥ व्याघ्र से चबवाओ वैसे बेर चबा कर खाते जैसे। निर्दय बनकर वक्त तू ऐसे वल्लमं-वल्लमं चुभवाओ भय से। नाला नाली कीचड़ वैसे जैसे चाहो ले चलो वक्त! लाठी डन्डा बातोंं मे हमें ना भरमाओ वक्त! मृत्यु लोक से ऊब चुका चुभन बहुत भरमाया संशय। सुख दु:ख तूने दिया सक्त हमने सहा बन भक्त। + + + शाश्त्र में कहते क्यूँ हो सब कोई अपना है यहांँ अपने सपने बनकर, दावानल दहते हैं जहां।sukhmangal singh 19:05, 24 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:-शालार- सोपान,सीढ़ी। भंग-तरंग,लहर,खंड,विनाश,भांग।
"वासंतक गुलाल"जूही चम्पा चमेली की गंध गूजत भोरे नव पराग ले- आयो है। लाल गुलाल औ मोती की माल, छलकत छबीले ढ़ोल- पोछ लायो है। वाल गोपाल भले आयो नन्दलाल लाल ही लाल गुलाल- ले आयो है। छोरी गोरी किसोरी झोरी माँ केश रंग में घोरि-घोरि- लायो कै। 'मंगल'पद्माकर घाली घली घनश्याम लली को लाली- लायो है। गोरी के रंग में भीगो सावरो, पिच-पिच पिचकारी - पुकारो है। सोने को पलंग बसन बसंती साज, सरसो खेत खलावत आयो है। लाग बाग राग में वसंत फूल्यो, मान डाल हाल हुलसंत पुकारो है। पिय को दर्द दु:ख देत आवाज, परदेश पिया हिया पिरात आयो है। मोहि मगन जिया लागी लगन,होरी बोरी झकझोरी पिय पुकारत है।sukhmangal singh 23:37, 18 जून 2014 (UTC)
विकाशहवा बही सीधी सुगन्ध । जन-मन विश्वास उमंग ॥ अधखिली कलियाँ खिसी ! ठंढ़ई मोहक सुगन्ध ॥ मनेगी ईद-होली । सुलझे मिनट चन्द ढ़ंग॥ मन मंगल ललकारा ? विकाश देश का नारा ॥ सोमनाथ से चलकर आया । विश्वनाथ शिवशंकर धाम ॥ पुरी द्वारिका परमेश्वर पुनि । को शिवशंकर जी किया प्रणाम॥sukhmangal singh 03:20, 17 मार्च 2014 (UTC)
विकाश पुरुष-शास्त्र सम्मत मोदीजागरण नव जुग दिया! मौन रख सब कुछ पिया॥ जैसा वैसा वह काम दिया। बापू पटेल को याद किया॥ बन्देमातरम को सुुनाया।जन मन को खूब भाया॥ अद्भुत बंधन से मुक्त कराया। विश्व में गुरु परचम लहराया॥
+ + + रूप सुन्दर बहुत तुम्हारा। सुन्दरतम् वाणी सुधा लुटाया॥ अક્ષय उर्जा भरकर लाया। कण कण व्याकुल मन भाया॥ शौर्य गाथा लिखने आया। देश प्रहरी हिमगिरि ज्यों पाया॥ आशीर्वाद वह मानो पाया। अंध ક્ષિतिज पर गरजते आया॥ + + +
उसने दिब्य हृदय जो पाया। कर्म खूब-खूब लिखवाया॥ राजनीति स्वच्छ छवि पाया। धर्म - नगर ડ परचम लहराया॥ हिंदी संस्कृति जेहन में पाया। 'मंगल' बनारसी बाबू कहलाया॥ शान बान भाषा साहित्य का देश हमारा। दिव्य જ્ઞાन का दिया जलाने वाला आया॥
+ + + वर्षों की वह रही तपस्या 'मंगल' ડ पाया। खिंची हुई हैं सरहदें -सरहदी जानो आया॥ सेकुलर-गैर सेकुलर का जनमत भेद मिटाया। जानो धरती पर गाँधी पटेल फिर आया। + + + विकाश पुरुष बन कलियुग में गरीबी में जन्म पाया। नारायण दि0 पं0गंगाधर सा ज्यों मोदी काशी को भाया॥ खर्च भयानक आमद सीमित सीना तान परचम लहराया। दिव्य જ્ઞાन का दिया जलाने वाला ज्यों 'मंगल'आया॥ + + +
अद्भुत बंधन मुक्त कराने वाला आया? देश को सोने की चिड़िया का मान दिलाने आया॥ बोझिल गंगा माँ को निर्मल मुक्ति कराने आया। छम छमाछम छम बादल बरसाने वाला आया॥ उलट वासियों मत उछालिये हलनिकालिए! आया। बेठन से बधे लेखन संस्कृत संस्कृति संस्कार निखारने आया॥ विविध धर्म भाषा में बढ़कर मेल कराने वाला आया। संध्या थी विश्व ક્ષિतिज पर गरजते 'विकाश पुरुष' आया॥
+ + + तन्त्र -मन्त्र साध -साधना राम- रहीम कहने आया। ठाकुर और विवेकानन्द से आशीश ले काशी में आया॥ सवाल-जवाब पास हो जिसके पुरुष ऐसा भारत ने पाया। विश्व पटल पर विश्व गुरु बने शान्ति संदेश सुनाया॥ जन-जन गूँजे वन्देमातरम् - जनगणमन की गाथा गाया। प्रगति और शान्ति के पथ चल अत्याचार भगाने आया? बापू पटेल ज्यों जुगांत पुरुष विकाश! मानो धरती पर आया। विकाश पुरुष शास्त्र रક્ષक? कलियुग के गरीबी में जन्म पाया॥
नोट-उक्त रचना 'गुरु घासी दास विश्वविद्यालय' छत्तीसगढ़ में दिनांक05/26/2014 को हमनें रची थी। पाठकों से त्रृटि हो, के लिये ક્ષमा।sukhmangal singh 00:41, 27 मई 2014 (UTC)
वोटऱजब चारो तरफ प्रत्यासियों की लगी बाजार। जनता सोच समझ ले वोट दे होशियार॥ वोट देना वोटरों अपना अधिकार मानो। मुल्क मुकम्मल प्रत्यासियों से अविकार मांगो॥ दागी दामन दाग लगाये उन्हें हटाआ॓। मूल्यवान मत वोटर सारे गौरव गाऒ॥ अभी उनकी बोलियों में वही तीर कमान। जीत की कटारी पास होगी हर एक म्यान॥ देश की देने वाले हो जिनको तू कमान। कहीं वे तुम्हारा चुनकर करें ना अपमान॥ आयोग से कहो निकाले अपना फरमान। कोई नहींं - कोई नहींं मंगल करेंं गान॥singh 04:05, 14 June 2013 (UTC)
॥==शहर में अंधेरा है?== सूरज बिखेरता उजाला मगर,
धरा को अंधेरे नें घेरा है ।
उजाले को चुराया अंधेरों नें,
उन अंधेरों में मेरा घर बसेरा है ।
अपना घर फूंक ओ ढूढते रोशनी,
अपना शहर कहे ठांव में अंधेरा है ।
जब कभी धरोहर के चिराग जले,
आस्था की बस्ती में उजाला है ।
जब चारो तरफ घना अंधियारा तो,
इक टिमटिमाते दीपक का सहारा है ।
मिल जलाओ सारे दिये साथ में,
एक दीया कोई अलग जलाया है ।
यूँ तो मंदिरों मेंं देवी-देवता चुप बैठे,
युगों-युगों से शहर में अंधेरा है ।
सब भागते हैं छाँव की तलाश में,
हर डाल देखा बाज का बसेरा है ॥sukhmangal singh 17:50, 8 दिसम्बर 2013 (UTC)
शिव-शंकरभाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥ सभी मतों के इश्वर हैं एक। स्वरूप का प्रतिविम्ब दिखा दो॥ तू आदि दम्पति कहलाते हो। हिन्दू-मुस्लिम में माने जाते हो॥ परशुराम को परशु दिया है। मुझमें शिव शंकर भक्ति दे दो॥ सत्य स्वरूप मुझको दिखा दो। नित्य वह रूप अपना बता दो॥भाव भक्ति--॥
सारे लोक के पालन हारी। शिव-शंकर सुनलो त्रिपुरारी॥ रे!श्वास औ प्रश्वास वेद हौ। विद्याओं में मूल बतला दो॥ दर्शन से छुमंतर हो जाते। काल दोष- भगवन भगाते॥ महादेव -कहलाने- वाले! नाथ महिमा अपनी बता दो॥ भाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥सभी मतों--॥
विल्व पत्र का पान तू करते। रुद्राક્ષોં ने मंत्र महिमा जपते॥ विभीति से शिवजी शुभदायक। हैं सत्य सदा सबही कहते॥ शिव साક્ષાत्कार करे जो भी। परमानन्द प्राप्त करे ओ ही॥ आदि देव हो परम पुरुष हो। सत्य स्वरूप मुझको दिखा दो॥ भाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥सभी मतों--॥
गुरुओं के भी गुरू तुम्हीं हो। हृदय में निज જ્ઞાन जगा दो॥ सुलभ साध्य शिवदेव तुम्हीं हो। गौतम महर्षि को पूज्य तुम्ही हो॥ सालिग्राम शिव में विष्णु पूजा। बरदान महादेव हमे भी दे दो॥ शिव-शंकर ही सर्वश्रेष्ठ नाम हौ। प्रणव- पंचाક્ષरी- मंत्र बता दो॥ भाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥सभी मतों--॥sukhmangal singh 00:59, 7 नवम्बर 2014 (UTC)
शंख बजेमहल खड़ा जीर्ण-शीर्ण अब , कई दरारें दरक रहीं जब। जहां सघन आनंद भरा तब , वहीं अस्त्र-शस्त्र घटा अब । यहीं प्रेम की नदियां थीं तब , वहीं नफरत का जल जंगल अब। महल महकता मन मोहक तब , दस्खत दे देता दुर्दिन अब । लोक नीति बाधा छाया जब, मिल जुल कालिख दूर करें अब । जाति पाँति का जहर जहाँ सब, रोटी छिन-छिन खा जाते सब । चिड़चिड़े बूढे वंसी बजाते सब, मित्र मंडली शंख बजायेगा कब ॥sukhmangal singh 11:28, 20 जुलाई 2013 (UTC)
स्नान गीतनहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो। केकरे पोखरिया में छिछली बहुत है, केकरे पोखरिया गहिर पानी, नहला दो बन्ने को गुलाब जल से॥ बाबा के पोखरिया में छिछली बहुत है, ससुर पोखरिया गहिर पानी, नहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो। जोड़ा पहिना दो जमा पहिना दो, पगड़ी पहिना दो गजब ढ़ंग से, नहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो। राई उइछहू जवाइन उइछहू, मुँह जुठला दो अमत फल से। नहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो॥ (यह रस्म बरात विदाई से एक दिन पहले किया जाता है) शब्दार्थ:- केकरे-किसके। गहिर-गहरा। पहिना- पहनाना।राई-सरसो। उइछहू-उतारा करना(प्रेतबाधासे)। जुठला-जुठारना॥sukhmangal singh 00:38, 15 जून 2014 (UTC)
सरस्वती वन्दनावीणावादिनी बुद्धि की दाता
वीणावादिनी,स्वरदायिनी माँ। नारायणी स्वर दो॥
सिद्धिदायिनी वीणाधारिणी
कर करतब करि कारिणी माँ। स्वरदायिनी स्वर दो॥
ब्रह्माणी,शिव पूजनी
दिन रात सदा मनभावनी माँ। वीणावादिनी स्वर दो॥
जय-जय-जय माँ दाता
जय-जय-जय जयकारिणी। वीणा वादिनी स्वर दो॥
जिह्वा पर नित वास करो
हिय में माँ उल्लास भरो। वीणावादिनी स्वर दो॥
परमारथ हो हृदय में माँ
मेरा निर्मल मन कर दो। वीणावादिनी स्वर दो॥
काया कल्प करो तन का
पल प्रति पल तू वर दो। वीणावादिनी स्वर दो॥
करुणा तेज भरो मन में
सागर सा वाणी मन दो। वीणावादिनी स्वर दो॥ukhmangal singh 16:56, 17 जुलाई 2014 (UTC)
सजलहो! हमेंसा जश्म हो,शिरकत सदा बाजार में। हाँ! हमारा कुछ भी नहीं,गीत गाओ प्यार में॥ जहाँ हर लोग थे, चौकस चौरंगी धधक भी। चुन-चुन सजाया था वहाँ, मोतियों सी चमक थी॥ चारो तरफ छाया घनेरा ,मंगल मौन मन अचल? बादलों में काली घटा,जहाँ वहाँ रहो सजल॥–sukhmangal singh|sukhmangal singh 23:59, 18 जून 2014 (UTC)
सावन की फुहारसावन की फुहार थी । क़लियाँ बेकरार थी ॥ आलिंगन के तरस रही। आँखें देखो चार थी ॥ चह-चह चिड़िया बोली। घनघोर धटाएं पुकारती ॥ पात-पात सब झूम रहे । डाली-लाली बेसुमार थी ॥sukhmangal singh 15:30, 6 सितंबर 2013 (UTC)
सितारे सारे रूठे?ढ़ूँढ़ रहा हूँ पन्ने सारे। का हे रूठे सभी सितारे ॥
खेत जहाँ तक अपना फैला। रहता कोई नहीं था मैला ॥
आँखों का अरमान था सुन्दर। प्यारी प्यारी मुस्कान फैली ॥
दर्द ले दुनियाँ ढ़ँकी हुई पर। वक्त इतना हैवान न फैला ॥
माँ का प्यार लिए दिल सारे । समता में वीरान न फैला ॥
रक्त रन्जित सैलाब नहीं पर। गणित और विજ્ઞાन था फैला॥
मिलजुल जन सब डगर संवारें । खेती व खलिहान तक फैला ॥sukhmangal singh 12:47, 14 अप्रैल 2014 (UTC)
सिवार मोच्छ द्वार काया मिलो, हिय मे दियो परकाश। भक्ति भजन को जिह्वा, इंद्रिय જ્ઞાन अगाध॥ निरालम्ब सगुन अमित, भावैं तोष निहार। गहे गा्राह अनंग , फसो सहसा सिवार॥sukhmangal singh 02:56, 12 जून 2013 (UTC)
सुधाकरसुधाकर जी शानी महान कल्यानी। जीवन जन का मानी જ્ઞાन विજ્ઞાनी। उपकारी तन मन में थी दीवानी । सुनते सबकी वे जिहवा रही पुरानी। जन-जन करता रहता पंडित का गुणगान। सुन इधर उधर की बातें गुनते नीद हराम। बड़ी चतुरता से पंडितजी करते हरि का गान। बिखरी बड़ी सभा संवार बढाया हिंदी का मान। सहज शब्द જ્ઞાन बद्ध थे जीवट के थे वे जवान। चन्दौली से दौड़ लगाकर पहुचे दिल्ली दर मान। दिल्ली दर दरबार दौड़़ कर बढाया काशी का नाम। ग्रंथ लेख और कविता लिख गाया गौरव गुण गान। सभा रही है महान बड़े-बड़ों के छक्के पक्के छूटे। जो-जो जब-जब ललकारा उनके दांत किया खट्टे। आवा जाही तो लगी रही सत्ताधारी सब बहुत जुटे। जब तक रहे सुधाकर पण्डित जन अरमान नहीं टूटे। मंगल रहा पुकार सुनो सुमंगल જ્ઞાनी और विજ્ઞાनी। जहां छाई रहे बहार सुधाकर पंडित होवें ना वे पानी ॥sukhmangal singh 14:54, 7 दिसम्बर 2013 (UTC)
सूरज के मनाय लिया जायतनिक आवा चला सूर्य के मनाय लिया जाय ।
शुभ तांबे के लोटा में जल ले चढ़ाय दिया जाय ॥
ले लाल चन्दन अક્ષत गुण खिलाय लिया जाय ।
रोग से मुक्ती बदे दुर्वांकुर चढ़ाय दिया जाय ॥
हव्य होम यજ્ઞ लाल कनेर दे मनाय दिया जाय ।
त्रिलोक साક્ષી मन से हियतम् हटाय लिया जाय ॥
लागल पौष मास ब्राह्मण भोज कराय दिया जाय।
अंजुली दान अंजलि कामना ले कराय लिया जाय ॥sukhmangal singh 05:25, 12 जनवरी 2014 (UTC)
सूनी लागे नगरी(कजरी)तुहरे बिना सूनी लागे हमरी नगरी? खेले जाइब हम सावन में कजरी॥ घेरि आइल गोरी अब देखा बदरी। खेले जाइब हम सावन में कजरी॥ गोरी चलेलू तू त काहें अकेली? बनल बाड़ू जैसे नई अलवेली॥ तोहरे संग नाहि कोई मिलल सहेली। घेरि लिहें गुण्डा तोहि इहे नगरी॥ तुहरे बिना सूनी लागे हमरी नगरी? खेले जाइब हम सावन में कजरी॥ कतना जना पीटल जइहें डगरी? कतना के लगी गोरी! फसरी॥ कतना जना पिसिहें चाकी? जेल खाना में नाहीं! चकरी॥ खेले जाइब हम सावन में कजरी। तुहरे बिना सूनी लागे हमरी नगरी॥sukhmangal singh 22:58, 19 मई 2014 (UTC)
सेहराबँधवा लो शहजा़दे तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। बन्ने जरा तूँ पास आ तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। दादा तेरे पास खड़े बँधवा लो शहज़ादे सेहरा। दादी रानी कुसुम कलेजे से लगाया सेहरा। बँधवा लो शहजा़दे, तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा।2॥ चाचा चाव से खड़ेहोकर मालिनि से गुँथाया सेहरा। चाची रानी प्यारसे चाँदनी रात कलेजे लगाया सेहरा। रातों में रौनक महफिल का बढ़ायेगा यह प्यारा सेहरा। बँधवा लो शहजा़दे तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा।2॥ महफिल खुसनुमां सुहाना वारात का बनायेगा सेहरा। बन्ने जरा तूँ पास आ तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। बँधवा लो शहजा़दे तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। शब्दार्थ:- सेहरा- मौर। शहजादे- दूल्हा। कुसुम-फूल, पुष्प।sukhmangal singh 00:12, 17 जून 2014 (UTC)
स्वप्नदलअगर राज हो मेरे दल को? सभी लोग आराम करेंगे । सदा नशे में बुत्त पड़ा हो ? अपना नया समाज रहेगा ॥
फेकेगें पासा पुनि शकुनी ? बहुमत प्रबल पगार रहेगा । गाजा भाँग शराब चरस औ, राजकीय बहु व्यापार रहेगा ॥
देश-देश भीख माँगनें, भेजे भिखमंगे जायेंगे ? अफसर सारे आराम करेंगे, डट सब चारो धाम करेंगे ॥ जा विदेश धन लाएंगे , मिल जुल उसे सभी खाएंगे ॥
तिव्वत से दुशाला लाऊँगा? मेवाड़ मखमल पहिनाऊँगा । समलैंगिक सरकार बनेगी ? फिल्मी शिક્ષા मुक्त मिलेगी । अगर युवक सब माँग करेंगे, डिग्री सारी मुक्त मिलेगी ॥
मंत्री कोई मतिमंद न होगा ? लेना रिश्वत बन्द न होगा? रिश्वत ते चन्दा आयेगा? बन्दा बैठ-बैठ खाएगा ॥
महामूर्ख को जनता जाने, मूँछ मुड़ाए सूट पहिचाने। उनकी महिमा पुलिस बखाने? कलियुग संत समाज भी माने। नव युग मंत्री को पहिचाने, प्रजातन्त्र हौ खुद को जानें॥sukhmangal singh 01:29, 11 मार्च 2014 (UTC)
हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारीहमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! पाँव धरे अहिल्या तारे, ॠषि गौतम की नारी, दुख दारिद्र सुदामा तारे, मड़ई से हो गई अटारी। हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! अग्नि जलत प्रह्ललाद उबारे , हरिण्याकश्यप को तू तारे, दसकंधक रावण को मारे, राज विभिषण को दे डारे । हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! अर्जुन भीम नकुल सहदेवा, गए महलों में हारी दु:शासन को चीर ग्रहण दुर्योधन को तूने ललकारी । हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! तुम यश मरनी मरम नाहीं जानत चितै-चितै हमारी । हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! सूर श्याम निकट तब अइबा जब हम होइबै उधारी॥ हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! मंगल गावत गीत बाजारी सखा पति श्याम तू हमारी॥ हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी!sukhmangal singh 04:06, 13 मई 2014 (UTC)
हरिबानावावन रूप धरलै हरि बाना। बाजूबंद अंग में सोहै॥ छङ़ा - छाप - मुलताना। मुख मा पान नयन मा सुरमा॥ लेई दरपन मन मुसकाना। वावन रूप धरलै हरि बाना॥ हंसि का बाति जसोमति पूछै। काहे हरि बनला ડ जनाना॥ उनके ठगन हम जइबै वरसाना। वावन रूप धरलै हरि बाना॥ वृन्दावन की कुंज गलिन मा, काँधा फिरत भुलाना॥ मुख पर चादर तानि चलतु। राह चलत मानो गज मसताना॥ वावन रूप धरलैं हरि बाना। सब सखियन मा चतुर राधिका॥ सो कान्हा पहिचाना॥ जनानां नाहिं तू मरदाना। वावन रूप धरलैं हरि बाना॥sukhmangal singh 13:08, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
‘हरे राम-हरे कृष्ण’आज भगवान मेरे मंदिर में बसना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥ राम के प्रेम में सीता दिवानी। सीता के हाथों में गजरा निशानी॥ गजरा पहिरा सीता कर लिया अपना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥
राम के प्रेम में मीरा दिवानी। मीरा के हाथों में वीणा निशानी॥ वीणा बजा मीरा कर लिया अपना। आज भगवान मेरे मंदिर में बसना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥
राम के प्रेम में शबरी दिवानी। शबरी के हाथों में बेर निशानी॥ बेर खिलाके सबरी कर लिया अपना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥ आज भगवान मेरे मंदिर में बसना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥sukhmangal singh 03:51, 18 अक्टूबर 2014 (UTC) शव्दार्थ:-शबरी-एक तपस्वनी,जो जाति की भीलनी थी। राम जब सीता के वियोग मेंव्यथित हो शबरी की कुटिया पर पहुचे तो स्वयं चख- चख खृ उसने जूठे मीठे बेर राम को खिलाया था। राम ने इसे नवधा भक्ति का उपदेश दिया था।(विनय-पत्रिकापृ0256टिप्पणी-2)। बेर-एक कटीला वृક્ષ जिसके फल को खाया जाता है। इसके कई भेद होते हैं।
हम जानिला (निर्गुण)मन हो तू जइबा हम जानी। पाँच परग को बना है पिंजरा। उसमें वस्त्र पुरानी॥ एक जइहै प्रेम लहरिया। डूब मरिबा बिन पानी॥ काल कलंदर राजा जइहै? रूप निरखत रानी॥ वेद पढ़त पण्डित जइहै? जइहै मुरख ज्ञानी॥ मन हो तू जइबा हम जानी॥ चार सखी मिल चलै बजारे? एक से एक सयाने। राम नाम कै टेर लगवनी। पुण्य पाप दरवानी॥ मन हो तू जइबा हम जानी॥2॥ चाँद सूरज दोनों चल जइहै? जइहैं पवन अ पानी॥ कहै कबीर सुना भई साधौ। रह जइहैं मंगल क निशानी॥ मन हो तू जइबा हम जानी॥2 ।।sukhmangal singh 13:20, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
हल्दी का गीत(हरिद्रा)लगाव लगाव प्यारी सखिया? बन्ने को हल्दी लगाव। बन्ने के कानों में कुण्डल नहीं है। पेन्हाव पेन्हाव प्यारी सखियाँ? बन्ने को कुण्डल पेन्हाव। बन्ने के हाथों में घड़िया नहीं है। बन्ने को गड़िया पेन्हाव॥ लगाव लगाव पण्डित हल्दी? बन्ने को हल्दी लगाव। पहली हल्दी पण्डित उठावैं, पीछे सकल परिवार। बन्ने को हल्दी लगाव, लगाव लगाव प्यारी सखियाँ॥ शब्दार्थ:-हल्दी-हरिद्रा,अंग्रेजी में- टेर्मेरिक,।बन्ने-दूल्हा,। पेन्हाव-पहनाव, पहिनाना । कुंडल -कान का कुण्डल।पहिले-पहले। (यह रस्म शादी के एक दिन पहिले होता है।sukhmangal singh 15:48, 14 जून 2014 (UTC)
हरिद्रा गीतकीजै कीजै यह ॠतु व्यवहार, हल्दी मंगल की।-2॥ बन्ने के पापा हल्दी लगावैं, मम्मी रानी हरिस धइले ठाढ़। हल्दी मंगल की॥ कीजै कीजै यह ॠतु व्यवहार, हल्दी मंगल की।-2॥ बन्ने के चाचा हल्दी लगावैं' चाची देवी हरिस धइले ठाढ़। हल्दी मंगल की।-2॥ बन्ने का भाई हल्दी लगावैं, भाभी रानी हरिस धइले ठाढ़। हल्दी मंगल की।-2॥ कीजै कीजै यह ॠतु व्यवहार, हल्दी मंगल की।-2॥ पहली हल्दीय् पण्डित लगावैं, पीछे सकल परिवार। हल्दी मंगल की॥ (परिवार से सम्बन्धित बहना,बूआ,मौसा- मौसी,आदि का नाम लेकर गीत गाया जाता है। शब्दार्थ:-हरिद्रा- हल्दी,टर्मेरिक,मंगल,। बन्ने-दूल्हा,दुलह,दुलहा,नौशा। हरिस-हल की लकड़ी जिसके दूसरे छोर पर जुवा रहताहै,ईषा। कीजै-करना।sukhmangal singh 16:26, 14 जून 2014 (UTC)
हुँकार करकाधा राधा नगरी में ललकारे के होई ? अपनी ही धरती से पुकारे के होई ॥ लरिकन के लड़ाई से निकारे के होई। मनवालो को सेना ने उतारे के होई ॥ आजाद भगत कामिल पुकारे के होई । अब्दुल हमीद वीरता संवारे के होई ॥ जी पटेल को फिर से निहारे के होई । राजा कंश को रण में ललकारे के होई ॥sukhmangal singh 01:45, 11 मार्च 2014 (UTC)
हंसि देहै बीराबीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई । एक सासाढ पात कै लगाहै बीड़ा? लवंग न ढाढी लो भाई । ई बीड़ा खइहै वीर हनुमान, जिन लंका में निज उठि, करिहै लड़ाई । बीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई । लंका से जब निकरै निशाचर, देखत जाँघ थहराई? जो कोई बीर राम के दल में, सनमुख लेत लराई। बीरा मति खाया -----भाई । हनुमान जब गदा उठावें, लક્ષિमन वाँण चलाई । वाण गिरे भुजा गिरे? शीष कटि गिरे, जहाँ बैठे रघुराई। बीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई । दोनों कर जोरि रोवैं मनदोदरि, नैनन नीर भरि आई । बीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई ॥sukhmangal singh 15:00, 27 नवम्ब
हुँकार भरो हिंदीहिन्दी तुमको तरस ना हो जी कागज में तू ही रहती हो। श्रद्धा सहित नम्र वाणी बन साधु सन्त मन हरती रहती हो।। राजाओं के घर की शोभा, मधुर गीत से रंग भरती हो। सूर श्याम बन सावन भादो, मथुरा में जा रमती रहती हो।। ग्वाल-मंडली मध्य विराजत, किलकारी भरती कहती हो। भरि-भरि उदर विषय दु:ख खचियन हिंदी ક્ષत्रिय बन सहती हो॥ धन्य सपूत अवनि तल हिन्दी ला छाये आद्य शंकराचार्य। आठ वर्ष में वेद उचारे बारह छ: शास्त्र धन्य हिन्दी आर्य॥ सूर चन्द्रमा चेहरे चमके बिंदी गंगा माँ सी बहती रहती। साये में साहित्य है अनगिन भाषा हिन्दी तुलसी सी बहति॥ रति बिहार तू-प्रेम राग हो कुमुद कली रजनी गंधा हो । विकल विमल निर्मल रस-रंग-गंध में हिन्दी तू गंगा हो॥ लहर तुम्हीं हो कहर तुम्ही हो करुणा भरी भावना हो । गंगा सरजू सरस्वती बहना, फाग भरी साधना तू हो ।। अम्बर हिन्दी तम् हिन्दी जन-मन हिन्दी ही आराधना हो । सूर कबीर शारदा मीरा तुमसे तुलसी की साधना हो ।। ॐ नाम प्रतिबंध लगा जब भारत में था अंधेरा हिन्दी। चिंतित रहते भाई बहना, राखी कर बंधवाने बिंदी।। हिन्दी हिन्दू बौध्य जैन औ मौलवी करने को उपकार । परमारथ उद्धारक हिन्दी करते वे राम शिव भी प्यार।। हिन्दी मंत्रों में मूल मंत्र हो मानो काशी मथुरा राग । हिन्दी शिव सिद्ध साधू सम मानव हो मानव घनश्याम।। हिन्दी हिन्द हिन्दुस्तान समाहित विश्व गुरु कहलाता धाम। काशी में हो रची पची जिसको जपता सारा जहान॥ हिन्दी में रस इतना साधो सागर जाता समाय मान। हिन्दी हिन्द विरोधी आदिल औ मुसलमान पढ़ैं सब हिन्दी॥ सिद्दी जिद्दी मुगल पुर्तगाली अंगरेजों की हिन्दी। अन्तस में अनहद नाद भरे रस नव रस वर्षा करती हिन्दी॥ विरही घायल कर देती मनु ॠतु तरसा करती हिन्दी। गरिका मय इतिकास तुम्हारा तू हिन्दी माथे की बिन्दी॥ कुटिया कोटिया लगोटिया हिन्दी कहता कही कहानी। मंदिर हिन्दी मस्जिद हिन्दी गुरुद्वारा हिन्दी शिક્ષા स्वाभिमानी॥ आजाद भगत सिंह बिस्मिल कामिल हिन्दी के दीवाने। कर्म ક્ષૅत्र की मर्म कहानी सूखे पत्ते कहीं था पानी॥ सदियों शोभित साहित्य सलिल हिन्दी बेहिचक जुबाबी। युग -युग से युग पुरुष पुकारे हिन्दी सुर सुरीली बानी॥ व्यास महर्षि परासर मुनि हिन्दी हिन्दुस्तान समान। हिन्दी सोचो? शंकर विद्यार्थी था भारत संतान॥ वेद मंत्र हो या कि भागवत् गीता वा कुरान। भाई चारा प्रेम पयोनिधि हिन्दी की है शान॥ हिन्दी मूल मंत्र जिह्ववा की गाता जग गुण गान। जो- जो जब- जब जिसने साधा हिन्दी हुई महान॥ गाये ब्रह्मा विष्णु शिव सिय हिन्दी सकल जहान। सूफी मीरा सु; साधे सुमंगल हिन्दी महान॥sukhmangal singh 00:29, 7 अक्टूबर 2013 (UTC)
हिंदीदुष्शासन अपने घर आँगन,बढ खीचा जब चीर। यू॰एन॰ओ॰ बहता देखा झरझर- झरझर नीर॥ देखा उनकी बोली भाषा मेंं वही कमान व तीर। बङे-बङे दढि़यल -मुच्छे गाते अपने-अपने गीत॥ सह सकी सिसकती हिंदी ना अपनो का दुःख का गायें। जाति- पाति जगह जगह को भाषा अपना राग सुनाये॥ मौन मीन की गाथा गाते दिखती सकल सभाएँ। चिंतित चिन्त खङी बिंदी लेकर जन की अभिलाषाएँ॥ यू॰एन॰ओ॰ बहता देखा झरझर - झरझर नीर। मगन गगन गनगना उठा सजी धजी हिंदी की छङि़काएँ ||singh 04:09, 14 June 2013 (UTC)
हिंदी विश्व गुरुहिन्दी हिन्द हिन्दुस्तान सहित विश्व गुरु कहलाती धाम। काशी में हो रची-पची जिसको जपता सारा जहान॥ हिन्दी में रस इतना साधो सागर जाता समाय मान । हिन्दी हिंद विरोधी आदिल व मुसलमान पढैं सब हिन्दी।। सिद्दी- जिद्दी- मुगल -पुर्तगाली ,अंगरेजों की हिंदी। अन्तस में अनहद नाद भरे नव रस वर्षा करती हिंदी॥ विरही घायल कर देती मनु ॠतु तरसा करती हिंदी। गरिमा मय इतिहास तुम्हारा तू हिन्दी माथे की बिन्दी॥ कुटिया कोटिया लंगोटिया हिन्दी कहता कही कहानी। मंदिर हिन्दी मस्जिद- गुरुद्वारा हिन्दी शिક્ષા स्वाभिमानी॥ आजाद भगतसिंह बिस्मिल कामिल हिन्दी के दिवानें । कर्म ક્ષેत्र की मर्म कहानी सूखे पत्ते कहीं था पानी॥ सदियों शोभित साहित्य सलिल हिन्दी बेहिचक जुबानी। युगों - युगों पुरुष पुकारे हिन्दी सुर सुरीली बानी॥ व्यास महर्षि परासर मुनिहिन्दी हिन्दुस्तान समान । हिन्दी सोच? शंकर विद्यार्थी, था भारत संतान॥ वेद मंत्र हो या कि भागवत् गीता वा कुरान । भाई चारा प्रेम पयोनिधि हिन्दी की है शान ॥ हिन्दी मूलमंत्र जिह्वा की,गाते सब जग गुणगान। जो-जो जब-जब जिसने साधा, हिन्दी हुई महान॥ गाये ब्रह्मा विष्णु सिव सिय, हिन्दी सकल जहान। सूफी मीरा सु: साधें, सुमंगल हिन्दी महान॥sukhmangal singh 01:22, 7 अक्टूबर 2013 (UTC)
होली-बोलीकाँट की बाड़ी झाड़ झखर,कमल दल की कुल्हाड़ी। राम नम सद्गुरु साचा, झारै कते झाड़ विचारि॥ दग्ध सलिल-विश्व अखिल अग्यात,साधु प्र्र्बीन निहारी। सन्ध्या वन्दन ईश्वर क्रन्दन, झिझकत झुमत निठारी॥ चहल-पहल आत्मबल विचारि, को बरजै हन्कारी । भेदकमल छेद के निकला,कोटि कलासिधारी॥ ग्यान की ज्योति जगमग जग-जग,अंगमा अंग निवारी। भाव भ्क्ति शक्ति ध्ररा नवल धवल,भरमावत वेगारी॥
तनिक-तनिक बतियन मा तनकत,हिरदे लीजै विचारी। सरग नर्क़क निरखि-निरखि आकत,आंनद परेम पुकारी। दिश पश्चिम मन - मंगल साधत,साधन सान्द्य कियारी॥sukhmangal singh 05:17, 13 जून 2013 (UTC)
होली की बोलीहोली आई कह लेने दो, भरी जवानी सी जीने दो।
जख्म बहुत है भर लेने दो, होली आई कह लेने दो। नव वर्ष हमे जी लेने दो, सपना-अपना सह लेने दो। अपना- अपना कर लेने दो,होली आई-----।। जितना चाहूं लिख लेने दो, घृणा तृष्णा कर लेने दो। नयी जवानी वह लेने दो,होली आई-------।। उलटा सीधा कर लेने दो,अभी समय है सह लेने दो। चहना बहना कर लेने दो,परहित करता कर लेने दो।
कूड़ा कचरा ढह लेने दो,गारी मारी कर लेने दो। होली आई सह लेने दो,फूहर पातर कह लेने दो।
भांग धतूरा पी लेने दो, भरा मैल मन ढह लेने दो। होली आई--------।। मन की तन की कर लेने दो,गले-गले अब मिल लेने दो। अभी समय रंग लेने दो,होली आई कर लेने दो।।सुखमंगल01:41, 27 जून 2013 (UTC)
होली की बजारनया जमाना राग नया था, होली आई फाग नया था। ढोल मजीरा साज सजा था, फाग राग अनुराग जगा था । धोती कुर्ता आग लगा था, चुनरी चादर चांद चढा था। लाल गुलाल सबाब सजा था , मोहन मंगल प्यार भरा था। sukhmangal singh 01:57, 27 जून 2013 (UTC)
ॠषिनारद द्वारा नारायण स्तुतिसनक सनन्दन सनत्कुमार, और सनातन चारो भाई। व्रहमा जी के पुत्र हैंवे सब, नारद जी के हैं बड़ भैया। कहे सूत जी सत्यब्रती ये, गंगा दर्शन सीता धारा में, मधु सूदन के हृदय बसे वे, चारो जगदीश्वर सुखेवैया। नित्यकर्मका वे पालन करते, पितरों का भी तर्पण करते, ॠषिनारद ने कथा सुनाया, नारायण का सब गुण गाया। नारद जी बोले मुनि सुनाय, प्रभु का लક્ષण मुझेदेहु बताय, कर्म कैसे सफल होता सुनाएँ, જ્ઞાन तप ध्यान भेद बतायें। मन वाणी व शरीर बताएँ, लક્ષण बतलाये प्रभु! अभेद्य, अतिथि पूजा महत्व नरेन्द्र, प्रसन्नता समझो इसे सुरेन्द्र। गुह्य सत्कर्म अनुग्रह समझाए, नारद मुनि प्रभुઽ कृपा हर्षाइये, फिर वे गुणगान करने लगे, परमात्मा ॐ्गान करने लगे।sukhmangal singh 00:32, 10 सितंबर 2014 (UTC) संदर्भ-(नारद पुराण भाग2 अं0 काव्य रूपमें)
श्रीपति स्वामीहौले - हौले श्रीपति आवत । अरबराइ मन मंगल पावत ।। सारंगपानि को गीत सुनावत। कमल नयन सो गारि गावत ।। श्रीपति स्वामी गुन गान सुनावत। रस रसिक पतित पावन को भावत ।। मूरख रहि-रहि नाच नचावत । ग्यानी सुधि बिधि वेद पढ़ावत।। सावन मा संत-चिंतन धावत । विषय विकार निसाचर छाड़त ।।sukhmangal singh 13:28, 6 जुलाई 2013 (UTC)
काव्य/लेख,यात्रा वृत्तांत
कविता- अ- अनंता, अहे! चक्रवर्ती ક્ષत्रिय, अट्हास करता इतिहास,आग, आइनें,अंधकार , आ- आर्थिक विषमता,आँसू पोछ तू अपनी हिंदी। इ- इतिहास रो रहा है?, इंसान बन कर देख। ई- ईश वंदना। उ- उजाले को आने दो,उठो जागो। ऊ-'ऊँ'भजन। आ-आर्थिक विषमता। ओ- ओ! मुसाफिर। क- कलंक,कसक,कल्प,करमवा,किवाड़, कल्पनाएँ,कुछकर दिखला दे,कब अइबू महरानी,
कैसे आऊ तुहरी सेजरी,कवि, कवि-कविता,कर्मवंधन,कल्प, कहने तो दो,काली दह सोहर,काँधा रगरी,काँव-काँव,कृष्ना,कृष्ण लाल आइके, कुण्डलिनी मारि बैठे?,कुनैन की गोली।
ख- खास बताया नहीं जाता,ख्याल करो। ग- गणतन्त्र दिवश,गरुणगान,गम्,गाओ गान,गंगा महिमा, गंदगी। च- चना,चलते चलो-चलते चलो,चिन्हित ना हनुमान,चिरिया, चिराग जलना चाहिए,चौथ का चाँद। ज- जगमग, जतन कर रहा हूँ, जब पुष्प खिल जाएगा,जेठ,जीने दो, जंग जहाँ में। झ- झाड़ू, झूला। ड- ड्योढ़ी दइतरा बाबा का। त- तेल का-शादी में गीत,तुलसी,तन्द्रा। द- दर्शन,दिलवर, दिखावे के होई, देवी वंदना,दीप जलने दीजिए,दु:ख सुख आते जाते। ध- धरती धिक्कारती। न- नन्दलाल,नदियों में गंगा, निरानन्द दृष्टि, नियम बदलते रोज, नारी का सम्मान करो,न्यारीभाभी। प- परछाइयाँ,पण्डित।,पाठक जी,पावसपर्व,पान,पीपल की छाहं,पीताम्बर बड़थ्वाल, पुकार,पुष्टि करता,प्रेम,पैजनियाँ,पोटली गिफ्ट की? फ- फूल का रंग। ब- बचपन में गाँव, बदलौनी,बदरंग,बरसात कराके न जाइए,बहिनों की पुकार,बहिनों की पुकार-2, बाजारू होली,बारिस। भ- भद्र,भारत हमारा प्यारा,भाषा, भुतात्माएँ,भूलो बीती बात,भ्रष्टाचार एटम बम हो गया? म- मर्यादा,माला माँ अम्बे की, माँ,मिशन के ठीकेदार, मुखड़ा नीक लागे,मंडप-गारी,मौसमी मन। य- यક્ષमा निवारण। र- रजनी, राखो चुनरिया संवारि,राम जन्म, रात, राष्ट्र भक्त झाँक रहा,राधा-राधा,राम आइलैं बन से,
रीढ़ मानें, रंग जमादे?
ल- लाज मोरी राखा,ला गाओजी। व- वरसात कराके न जाइए,वक्त,वहिनों की पुकार,विकास,विकाश पुरुष शास्त्र संमत मोदी, वोटर। स- सजल,सावन की फुहार,सूनी लागे तोहरी सेजरी,सितारे सारे रूठे,सिवार,पं0सुधाकर, सूर्य, सूर्य के मनाय लिया जाय,
सेहरा,स्नान गीत,स्वप्नदल।
ह- हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी, हम जानीला,हरिबाना,हरिद्रा गीत, हल्दी गीत, हिंदी,हिंदी विश्व गुरु, होली-बोली, होली- कीबोली,होली की बजार,
हुँकार कर, हुँकार भरो हिंदी,हंसि देहैं बीरा।
श्र- श्री गुरु चरणों में नमन्, श्री पति स्वामी,श्रीकृष्ण।sukhmangal singh 03:14, 23 जून 2014 (UTC)
अनंत तू ही एक अनन्ता दाता, बाकी सब कुछ माया॥ तुम को सब कुछ अर्पित,मंगल शिर झुकाने आया॥ हे प्रभो आनँद दाता,प्राणियो की आर्त सुन। प्रभु आयेगा द्वार गुन॰ कर मनुज विश्वास तुम॥ करू सदा कल्यान जगत में,गाथा गा-गा पग-पग पे। शिव सर्व अंत ,सब में, प्राणिओं की आर्त नभ में॥ जनम् सफल तेरे चरणों मे,तु सत्य सनातन सब में॥ तू एक अनंत रब में, मंगल सीस झुकाता सब में॥sukhmangal singh 04:09, 23 जून 2014 (UTC) शव्दार्थ:- अनंत-जिसका अंत न हो। सीस-सिर। सनातन-प्राचीन परंपरा,व्रह्मा,विष्णु। ँँ==सयाजी राव गायकवाड़ ग्रन्थालय==
केन्द्रीय ग्रन्थालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी-221005
डा0 अजय कुमार श्रीवास्तव विश्वविद्यालय पुस्तकालयाध्यક્ષ(मुख्य)
दिनांक-30/9/2014
सुखमंगल सिंह जी की सुपाथेय काव्य सरिता भारत देश भूमि के गंध को विदेश में रहकर काव्य स्वरूप पंक्तियों में व्यक्त करने की महारत भाई सुखमंगल सिंह जी में है। उनकी स्वयं की कविता:-
कवि कुछ तान सुनाने का उथल-पुथल मच जाने का सच मांग सदा जमाने का दूर महानाश भगाने का को कौशल पास छुपावे तो वह कविता कह जावे कवि को राज बतावे।।
सुखमंगल सिंह के काव्य की कविताओं में संहर्ष और अंधेरा से लड़ने का साहस दिखता है। जैसे:-
उजाले को चुराया अंधेरों ने उन अंधेरों में मेरा घर बसेरा है।
आज के संत्रस्त समय जीवन में जहां मनुष्य के सामने संघर्ष का पहाड़ खड़ा हो बेरोजगारी का आलम ये हो कि युवा के हाथ में रोजगार की जगह कट्टा दिखाई पड़े ऐसे में एक नई रोशनी की तलाश कवि की कविताओं में दिखाई पड़ता है।
एक टिमटिमाते दीपक से सूर्य सा रोशनी प्राप्त करने का प्रयास संघर्ष की कल्पनाओं का प्रतीक है। उनकी ये कविताएं सार्थक हैं:- काम कितना भी कठिन हो मनुष्य जो चाह दे पथ पर पड़े कांटे जटिल पल भर में ढ़ाह दे। भोजपुरी कविताओं में भी अंधकार से लड़ने का साहस जुटाने का काम किया है। ग्रामीण अंचल की सांस्कृतिक भूमि में
लोक साहित्य रचने का प्रयास सराहनीय है। आप की कविताओं में प्राकृतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और आगे आने वाले कल की पुकार है जहाँ सामाजिक चिंतन की बात कवि अपनी मातृ भाषा में करता है वहीं हिन्दी को राष्ट्र की बिन्दी बनाने का प्रयास कवि ने किया है जैसे:-
आँसू पोछ तू अपनी हिन्दी ओझल आंखें क्यो टोकेंगे विश्वव्यापी तू इतनी हिन्दी अमीर आंगन वाले क्यों रोकेंगे। ये उपरोक्त पंक्तियाँ अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भ में भी लिखी जानी चाहिए क्योंकि आज भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में उद्बोधन कर विश्व को चकाचौंध कर दिया।
कुल मिलाकर कवि सुखमंगल सिंह की काव्य सरिता गंगा की तरह निर्विवाद स्वच्छ बहती रहे और साहित्यकारों व हिन्दी
सेवियों को तारती रहे।
मेरी बधाई स्वीकारें हस्ताક્ષर (डा0 अजय कुमार श्रीवास्तव) (चकाचौंध જ્ઞાनपुरी) वाराणसीsukhmangal singh 00:32, 3 अक्टूबर 2014 (UTC)
अहे!चक्रवर्ती ક્ષत्रियसृस्टि से द्वापर तक चक्रवर्ती राजे ।
मैन्युपनिषद इतिहास कहे राजे रजे ॥
ક્ષत्रिय इક્ષ્वाक वंश हरि कृपा से ।
पृथवी पालन निमित्त अश्वत्व तरूसा ॥
बढी संतान धारा प्रवाह जब ।
चन्द्रवंश सूर्यवंश दो वंश हुए तब ॥
धर्म तप पालन पले सब तपका ।
सप्त द्वीप दो राजे राज रहा अजसा ॥
तप बल प्रताप से नृप लोचत ।
बहुत राजे जम्बू द्वीप पर लखत ॥
कछु राजा रजे राज भारत ऊपर।
कछुक राज दंतसा दुहिता रहत॥
द्वय चक्रवर्ती द्वय मण्डलेश्वर ।
वर्णन करता मंगल परमेश्वर ॥
अश्वपति अम्वरीष अनगण्य ।
अક્ષसेन इन्द्रद्युम्न पौवनाश्व॥
कुलाश्व ययाति शर्य्याति ।
ननक्तु बध्याश्व भूरिदुम्न॥
सुदुम्न शशबिन्द हरिश्चन्द्र ।
मरुत भरत युधिष्ठिर ठाकुर ॥
मण्डलेश्वर राजे रजे अगाध ।
परीક્ષિत जनमेजय अश्वमेध ।
द्वितीय राम छत्रमल आदि ।
सौ दो वर्ष राजे रजे राज्य ।
अन्तिम राजा थे पृथ्वीराज ।
शासन का मनमानीपन ताज ।
छल छन्द में कैद हुआ राज ।
गोरी औ शहावुद्दीन के हाथ ॥
दिल्ली ऊपर था चढा साज ।
मुसलिम छ: सौ इक्कावन वर्ष राज ।
पुनि ता ऊपर अंग्रेजी राज ।
उनका का! दो सौ वर्ष था भाग्य ।
तब भी साथ थे ક્ષत्रिय राजे ।
बड़े-बड़े खड़े-पड़े साज-राज बाजे ।
सौ पाच और अनु राजा राजे ।
पर पराधीन जन बन सो सब साज ।
बड़े तालुकेदार रहे दो जमींदार ।
सौ-सौ साल का वंशवाद किश्तवार ॥sukhmangal singh 12:52, 5 जनवरी 2014 (UTC)
अट्हास करता इतिहासविपुल वीर बहिना बलिदानी सुहृद सुताएँ मरते देखो ।
ओ बलशाली बलहीन वीर लो खड़े-खड़े गिरते देखो ॥
शिर शशि ताज सोहरत सारी बगली झाँक फड़कते देखो।
मातृ तुल्य जिसकी पर नारी गली- गली लड़ते देखो ॥
किले टाप को नीचे औंधे बिगड़ी बात बढ़ते देखो ।
विद्रोही तीखे तेवर सिरफिरे सर ऊपर चढते देखो ?
सूरत पर हुई मलिन कीचड़ में सना यवन बच्चा देखो ।
रौदे गये 'मंगल'-जंगल को संहर्ष सभी होते देखो ॥
सूर सूबेदार औरंग की आवाज पग-पग गिरते देखो।
उड़ते पहाड़ बदसूरत इतिहास इ अट्हास करते देखो॥
भूखा बालक मरता पेट स्वर्ण-रजत गुन मढते देखो ।
निर्धनता का भूत भगे उ कूद कुलाचे मारते देखो ॥
शून्य शहर का कोतवाल लड्डू भरे पिटार उप्पर देखो।
भरे मुख कटार खजाने हथियार रणभेरी भरते देखो ॥
चला जमाना पुचकारी के सनमुख ख्वाब मचलते देखो।
चहल-पहल सड़कों गलियों में रणभेरी द्रोंड़ बजते देखो॥
उन अपनों का चरण छू-छू लो बड़े-बड़े बढते देखो ।
हृदय को काला कल्लू कबका को जग जगमग करते देखो॥sukhmangal singh 15:22, 2 जनवरी 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- विपुल-बृहद,अगाध। शशि-चंद्रमा,इंद्र। मंगल-शुभ, कल्याण,सुखमंगल सिंह का 'उप' नाम।
अंधा दौड़ रहा आंधी के आगेअंधा दौड़ रहा जाने क्यों आँधी के आगे। गलियों के कुत्ते भौचक जाने क्यों जागे॥ बगुले बैठे पेड़ की डाली डाली ले धागे। ममता मोह मोदक मानो सभी थे त्यागे॥ संयम तोड़ कनक-कनक स भागे। गाँव शहर टूट छुट रहे कोई तो जागे॥ संचय टूट रहे टूटते श्रृंग बहुत अभागे। कलरव करने वाली पક્ષી,वालक बढेंआगे।। पिछड़े ना साहित्य सिथिल ना होवें राजे। मौलिकता गुम हो ना मनबढ को जागे॥ गलियों के कुत्ते भौचक जाने क्यों जागे। अंधा दौड़ रहा जाने क्यों आँधी के आगे॥sukhmangal singh 03:22, 30 नवम्बर 2013 (UTC) शव्दार्थ:- मोदक-लड्डू,गुड़,औषध आदि से बना हुआ लड्डू।
अंधकारओसरवा से माई करेले पुकार । दलनिया दरके खटिया खसके हमार ।। बिचे बलमा आँगना ओढ़नी ओहार । बड़के ओसरवा आवे बबुआ पुकार ।। आँगनवा से सटल सजीला ओसार । माई की ले लेता खबरिया मेहार ।। ओ ही कहीं रहेली मेहरिया तुहार । तनिक बबुनी से बबुआ करता गुहार ।। आह- आह बुढ़िया माई भरे हुँकार । माई के आइलबा जड़ईया बुखार ।। बबुनी विशाली ले ला खबरिया हमार । महामति होइहैं तोहरा उपकार ।। माई उदास करतीं ओसरिया पुकार । सजीले ओसरवा से बोले चटकार ।। खाँव-खाँव बूढा कइसन करलू पुकार। अबहिन तो पहर दोई हउअय अंधियार ।। हमरी रतिया राउर दिहली बिगार । न!जानिब जग्गू जागि जइहै बचवा हमार ॥ बोलवै तो जागि जइहै बचवा तुहार । बड़के ओसरवा आवै बबुआ पुकार ॥ हो! टटिया टूटी आवेला बौछार । टपक-टपक मड़इया चूवेला हमार॥ हो-हो-हो बहुरिया कितनी दीदार । तनिक बचवा तू लेता खबरिया हमार ॥sukhmangal singh 01:47, 10 जुलाई 2013 (UTC)
अाँगन खुद-खुद धात्री आयो'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, कह खुद-खुद इत आय गये हैं। मानव तू उत ध्यान लगाये, आँचल- धात्री ले आयो हैं। जहाँ डम-डम बाजे डमरू, वहाँ खन-खन की आवाज है। ढ़ोल-मजीरा साथ बजता, रिम-झिम-रिमझिम बरसात है। उत! दनादन पाप ढ़हते कहते, कह खुद-खुद इत आय गये हैं॥
मानव इत-उत अपना करले, आँचल- धात्री ले आयो हैं। धर्म को धारण करने वालों, कह खुद-खुद इत आय गये हैं। इतो जयेतो खुद-खुद आयो, मरीमृशम् का ध्यान लगायो हैं। मानव तू उत ध्यान लगाये, अप्रपाना वेशन्ता रेवाँ। 'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, उत जियरा को अकुलायो हैं! 'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, कह खुद-खुद इत आय गये हैं॥
इत को बादर इन झोकों में, झंकृत झाँझ-झाल सुनायो हैं। मनुआँ उत जहँ उलझो उलटो, गीत गाते इत-उत आयो हैं। आ!आ! तू खुद-खुद को जानें, अापन ईश इत पहिचानो है। शत बार सत् नमन इत-उत 'मंगल', खुद-खुद इतो आय गये हैं। 'हुद-हुद काहें जहाँ पुकारे, कह खुद-खुद इत आय गये हैं॥sukhmangal singh 02:01, 15 अक्टूबर 2014 (UTC) शव्दार्थ:-इत-इधर,इस ओर,यहाँ। इतो-इतना,इस मात्रा का। जयेतो-उधर,सभी तरफ। मरीमृशम्-हिंसक मायावियों को नष्ट करो।
अप्रपाना-कृपण। तेवाँ-धनवान। बादर-बादल,मेघ, आनंदित,प्रसन्न। जहँ-जहाँ। मनुआँ-मन,मनुष्य,एक प्रकार की कपास- नरमा। शत-दस का दस गुना,सौ। सत्-ब्रह्म,सत्य, विद्वान,सभ्यतापूर्ण,धर्म।
नोट-अथर्ववेद के मंत्रों,वेदामृतम् अथर्ववेद सुभाषितावली के मंत्रों से काव्यांतरण किया हूँ। और-
अाँगन खुदखुद धात्री आयो-2धरनी खुद-खुद कह्यो भरमायो,अाँगन खुद वह मेरो आयो। गरज्यो गर्जन भरत सा तेरा,साधो काहें आज पुकार्यो॥ मानव मन જ્ઞાन न જ્ઞાनी हो,जीवन कंटक सारा हमारो। साधु संत ॠषि साथ नहीं तो,व्यर्थ जीवन हमारा तुम्हारो॥ काष्ठ की नैया चली तलैया,दैव-दैव- दिग- दिक् पुकार्यो। मंगल मगन मन-भावन मौसम,साधो काहें आज पुकार्यो॥ गरज्यो गर्जन भरत सा तेरा,साधो काहें आज पुकार्यो। धरनी खुद-खुद कह्यो भरमायो,अाँगन खुद वह मेरो आयो॥
खुद दे दो दुर्वासा दूर्वा द्रव्य,करनी-धरनी-घरनी सहारा। म्हार इष्ट इत वास-सुवास,जन-मन धन्य वेग योग सारा॥ मै मन को मोहन मा छाड़्यो,जीवन जगमग ज्योति उजाला। अद्य अन्तस्तल अदम्य अपना हो,खुद खुद हिय खिलाहमारा॥ गरज्यो गर्जन भरत सा तेरा,साधो काहें आज पुकार्यो। धरनी खुद-खुद कह्यो भरमायो,अाँगन खुद वह मेरो आयो॥sukhmangal singh 03:23, 16 अक्टूबर 2014 (UTC) शव्दार्थ:-छाड्यो-छोड़ो। अद्य-आज। अन्तस्तल-अंत:करण,हृदयकमल। अदम्य-विजई,प्रभावशाली। म्हार-हमारा।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीग्राम अगोना था शुक्ल का, बस्ती में थे जन्म लिए। सरयू सुन्दर तट बारू का, सद्व्रत सत्वगुण सदा लहते।।
ठमक-ठनक ठाट-वाट का, झीने-झीने वसन थे गहते। पुरखोंं की पोथी घर की, पढ़ते क्रीड़ा कर-कर उछलते।।
જ્ઞાन-मान-सम्मान हृदय में, पूण्य ध्यानभाव विश्वको लहते। नर थे नारायण भाव मान था, सद् ग्रंथ साहित्य सदा गहते।।
उस अतीत के अंचल से, संग राग में और स्त्रोत लहे। जगकर जगमग पक्ति प्रबल, भक्ति लहर सी जहां गहते।।
वह जो उनके चमक चाव थे, सोंधे मिट्टी के गंध भाव थे। जनजन दिक् दिक हियमें लहते, आशा आकुल किरण पद गहते।।
भरत-खंड की भूमि धन्य, जो दिया जन्म रामचन्द्र को। कोटि-कोटि नमन'मंगल'का, साहित्य सुधा प्रियजन लहते।।sukhmangal singh 01:42, 11 अक्टूबर 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- बस्ती-शुक्ल जी का जन्म का जिला। बारू-बालू। वसन-वस्त्र,तन ढ़कने,ओढ़ने का कपड़ा।
आईनाजो न माने ईश्वर की सत्ता, क्या जैन धर्म है? मानते तीर्थकर को, गिने चुने चौबीस, जगत अनादि , अविरल चले। नियम-कर्म बतलाते हैं? अहिंसा उत्तम गुण, द्रब्य छ: मुक्ति के कहते हैं, सम्यक दर्शन, सम्यक જ્ઞાन कहलाते हैं , सम्यक चरित्र का रखिये ध्यान । सुनाते वे 'मंगल'मानो ॥sukhmangal singh 04:11, 12 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:- आईना- आरसी, दर्पण,शीशा,स्पष्ट।
आगतेरी सेवा से अग्ने रोग मुक्त बालक,
नहीं करते अनिष्ट पिशाचादि वॄद्धा तक?
मित्र द्रोह मित्रवत माता सा रક્ષक बन,
देवमित्र! वरून! मति दे बृद्हा प्राप्त करें।
देवाह्नन सब देवों से जीवन दीर्घ करें मेरी,
सौ वर्ष जियें नभ धरनी पर विनती मेरी।
तू सबके स्वामी अग्ने!मंगल विनय करे कैसे,
वीर्यवान बालक हों सब गुण सम्पन्न जैसे।
संतति सुखी रहे वैसे जैसे अदिति देती वर वैसे।।sukhmangal singh 01:49, 17 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:- बालक-लड़का,पुत्र। संतति-बाल बच्चे,औलाद,रियाया,
आर्थिक विषमताफैलायें विद्रोह विषमता? उपयोगी और पूर्ण नहीं, मानव शास्त्र अपूर्ण सही। समरथ को नहि दोष। दासो चिंतन भूले एथेंस, मानव की अवधारना देखो, अनुक्रमण भेदभाव में वृद्धि , समता न्याय बदलते रहे।, आय का स्तर हो गया ठीक॥ हुई विषमता बंटवारे में आदर्श मूलक विधि और नीति शास्त्र अपनाया सार। जिससे विकसित राष्ट्र। कर तुलना जन-जन से, तुलना पुनि-पुनि ना करें, तुलना एक ही वार ॥sukhmangal singh 16:19, 20 अगस्त 2013 (UTC) शव्दार्थ:-अवधारना-विचार पूर्वक धारण करना,ग्रहण करना। पुनि-पुनि-बार-बार। वार-ક્ષण,अवसर,वाण,वारी।
आराधनाभगवान की भक्ति करना
गुणगान करना ध्यान कर।
मुक्ति का है मार्ग प्रशस्त
न अभिमान करना मानकर॥
शक्तिराधना होती रहेगी
युग! युगों तक मानकर।
द्वापर सतयुग त्रेता युग में
हनु आराधना मानकर॥
कलयुग में प्रत्यક્ષ प्राप्य
शिव श्लोक ध्यान कर।
चरण प्रथम कलयुग का
अति भ्रष्टाचार मानकर।
नैतिकता प्रेम राष्ट्र में
निराश होता ध्यान कर?sukhmangal singh 18:05, 17 जुलाई 2014 (UTC)
आशीर्वाद गीतकोहबर आनन्द -आनन्द सारी दुनियाँ जी, पापा के चरन छू के चढ़ि जा बाबू डोली जी। मम्मी के आशिस लेकर चढ़ि जा बाबू डोली जी। कोहबर आनन्द- आनन्द सारी दुनियाँ जी॥ चाचा के चरन छू के चढ़ि जा बाबू डोली जी। चाची के चरन छू के चढ़ि जा बाबू डोली जी। कोहबर आनन्द -आनन्द सारी दुनियाँ जी॥ बुआ के आशिस लेकर चढ़ि जा बाबू डिली जी। कोहबर आनन्द -आनन्द सारी दुनियाँ जी॥ शव्दार्थ:-आशिस-आसीस,आशीर्वाद,दुआ। कोहबर- वह स्थान या घर जहाँ विवाह के समय कुल देवता स्थापित किए जाते हैं।
डोली-एक प्रकार की सवारी जिसे कहार कंधों पर लेकर चलते कैं।
नोट-शादी हेतु दूल्हा घर से निकलते समय का गीत।sukhmangal singh 23:33, 16 जून 2014 (UTC)
आर्थिक विषमताफैलायें विद्रोह विषमता? उपयोगी और पूर्ण नहीं, मानव शास्त्र अपूर्ण
सही। समरथ को नहि दोष, दासो चिंतन भूले एथेंस। मानव की अवधारणा देखो, अनुक्रमण भेदभाव में वृद्धि। समता न्याय बदलते रहे आय का स्तर हो गया , ठीक? हुई विषमता बटवारे में, आदर्श मूलक विधि और, नीति शास्त्र अपनाया सार । जिससे विकसित राष्ट्र, कर तुलना जन-जन से, तुलना पुनि-पुनि ना करें, तुलना एक ही बार ॥sukhmangal singh 16:19, 20 अगस्त 2013 (UTC)
ओ! मुसाफिरऑ! मुसाफिर सुनो तेरा, स्वागत द्वार मेरा। धन्य काशी परम्परा, आये आप विचारि, गुनगुन कियो बिहार। अजनवी आहट सुधार॥ झंकृत स्वर कानो मे, मानो करता गान। अवधपुरी हम बासी, काशी आया साथी। काशी संकृति केन्द्र, शिव घट-घट देवेन्दर। संस्कृति केन्द्र पुरी सदा, लूट ठगी यदा कदा। नगर गाव की गलियाँ, स्वागत करता साथी। काशी प्राचीन मान। भोला करता दान? अवध पुरी की शान, देख सुन ग्यानजान। आयो जायो जु काशी, लिख देना एक पाती। पास आयो साथी, लिखनाजी एक पाती॥sukhmangal singh 05:50, 13 जून 2013 (UTC) नोट:-यह कविता वार्सीलोना यात्री के भारत भ्रमण पर उसके सम्मान में लिखा और दिया था।sukhmangal singh 03:12, 18 जून 2014 (UTC)
आंसू पोंछ तू अपनी हिंदी=आंसू पोछ तू अपनी हिंदी, ओझल आंखे क्यों टोकेगी । विश्व व्यापी तू इतनी हिंदी, अमीर आंगन वाले क्यो रोकेगे। तू तो सागर खुद हो हिंदी, नाले-नाली क्यो कोसेगे । अंजन-अंज सार - अंज तू, कण-कण मे हिंदी खौजेगे । अमी असम अमरीकन हिंदी, गृह-गृह कण- कण मे देखेगे । हिंदी तू हिन्दुस्तान की भाषा, वह बोले है कन की भाषा। वह बोले बड़ वार की भाषा, हिंदी हिंद हिंदुस्तान की भाषा । हिंदी तू दीदार की भाषा, हींदी तू परिवार की भाषा । हिंदी तू वान की भाषा, हिंदी भक्ति काल की भाषा। हिंदी ना तलवार की भाषा, हिंदी तू हरिद्वार की भाषा। हिंदी ना बस मेवाड़ की भाषा, हिंदी तू जन-जन की भाषा। हिंदी तो है प्यार की भाषा, हिंदी तो सत्कार की भाषा । हिंदी तू उद्गार की भाषा, सुना था सबमे प्यार की भाषा । जन-जन के उद्धार की भाषा।। निर्भय निर्मल प्रेम की भाषा , हिंदीतू प्रग्या की भाषा । हिंदी ही है शक्ति की भाषा , हिंदी तू शिव-शक्ति की भाषा। हिंदी तू जन- गण की भाषा, हिंदि त तन-मन की भाषा । विश्व विदित विजयी तू हिंदी, वारि बार सब देखे हिंदी । हिंदी ना तु राज्य की भाषा, हिंदी ना तू राष्ट्र की भाषा। हिंदी ना तू सरकार की भाषा , हिंदी तू जन-मन की भाषा।। हिंदी तू संग-संग की भाषा, कण-कण में करूण की भाषा। विस्व में वरूण की भाषा। भाई -भाई में प्यार की भाषा , मातु पिता सत्कार की भाषा। गुरु जन में तू જ્ઞાन की भाषा, नारायण में नाम की भाषा। समरसता जीवन की भाषा, हिंदी तू उद्गार की भाषा।। नीचे ऊपर दायें बायें, जहाँ भी देखो होगी हिंदी।।03:21, 26 जून 2013 (UTC)sukhmangal singh 09:59, 23 सितंबर 2013 (UTC)
इंसान बनकर देखखंजर भी बदल जाता, मंजर को देख। तू नहीं बदला भला, सिकंदर को देख॥ अरमान बहुत तुझमें,अंजान बहुत देख। सुनशान में खड़ा,इंसान बहुत देख॥ काटों से भरी वाट आंखों से देख। भક્ષक बना कौन ,रક્ષक बन देख॥ लोहा बना कहीं ,सोना होकर देख। मरनेके बहाने बहुत,ठिकाना जीकर देख॥ उदास विश्वास कर, आदमी बनकर देख। अंधा बहरा आदमी, सहारा बनके देख॥ बरबाद ना हो मंजर, समन्दर बन देख। बहनें सभी तुम्हारी संस्कृति पढ़कर देख॥sukhmangal singh 06:21, 23 जून 2013 (UTC)
इतिहास रो रहा था?=प्राची! इतिहास रो -रो कर शांत हो रहा था। बेटी-बेटों के फर्क में का देश सो रहा था॥ दुधमुहें तड़पते भटकते आँखों के आगे जल रहे। रंगमहल मखमल लगल नयन प्रखर चल रहे॥ क्या माता से भी तुझे सरोकार नहीं रहा है। दूध सा वह खून से भी प्यार नहीं हुआ है॥ तेजाबी लोगों की वातों की जलन में जल रहे हैं। लोग सर झुकाये ? नजर छुपाए ? चल रहे हैं॥ क्यों शान्ति के नगर में विघ्न घुली जा रही है। कोई! शहर अफवाहों के रंग में रंगी जा रही है॥ बागियों के हौसले मजहवी रंगी जा रही है। वह खामोशी थी गावों में ठगी जा रही है॥ कौन जानता था दुश्मन गले मिला करते हैं। ओ! आप के खातिर आतंक किया करते हैं॥ देखा भारत हौ इहै भारत को गांन कहा करते हैं। इहाँ बड़े-बड़े अपराधी खुद को महान जहाँ कहते हैं॥sukhmangal singh 01:22, 3 जून 2014 (UTC)
, 23 जून 2013 (UTC)
इક્ષાएँमै मर जाऊँ, मुझे दफन करना। याद रहे बस इतना, दिल वह निकाल लेना। जिसमें वसीं यादें उसकी? उस दिल को संभाल रख लेना॥
अगर जलाया जाऊँ, याद रहे बस इतना। जलाने से पहले मुझको, तन-मन से पूर्ण जला देना। और हरे दरख्त की लकड़ी, जंगल से काट- काट मत लाना॥sukhmangal singh 12:21, 20 जुलाई 20
ईश वंदनाआप का भाव ही आप की वंदना । साधना रस में मन रमा लीजिए ॥ मन भटक न जाये विषय भोग में। राह पर फूल कांटे बिखरे हुए॥ भक्ति सरिता धवल बही धार बन। उष्ण मन के विचारों को शीतल करे।। अर्चना की कडी़ भावना में बधी । हृदय वाटिका में मज्ज्जनकरा लीजिए॥ तब धुलेगी मन की कालिख सभी। सुमन की कली हृदय मेंखिला लीजिए॥ भक्ति की मोंतियों को जुटाते रहो। मन सागर का द्वार खिला लीजिए॥ मन के भावों में कमल नाथ पद । हृदय सुमन से निज को मिला लीजिए॥sukhmangal singh 14:13, 21 अक्टूबर 2013 (UTC)
उजाले को आने दोथकने दो तूफान को,
कुछ मौसम मन भावन आये।
बहने दो पसीना सकल,
सावन मात खा जाये।
यदि पानी हो खारा तो,
आदमी नहाना सीख जाये ।
सब मूरत बने बैठें तो,
मन को भाना सीख जाये ।
मै चाहता हूँ उजाला,
निज जमाना सीख जाये।
परिवर्तन ही यदि उन्नति,
हम बढते जाते तुम आ ओ।
लेकिन मुझको सीधा सच्चा,
पूर्ण भाव ही भाता ला ओ ।
चित्रकूट की वादी में भी,
खग मृग गुंजन गीत सुना जाये।
सदियों से आस लगी,
राम राज कब जब आये ।
हर बार दशहरे में,
रावन पुनि-पुनि मारा जाये ।
घर-घर का रावण पुनि,
जन -जन में दुदकारा जाये ।
आरुणि धरा पर लाल रहें,
फिर उगना ना कोई आये ॥sukhmangal singh 15:51, 8 दिसम्बर 2013 (UTC)
उठो जागोउठो देश के स्वाभिमानी? सावघान हो जा सेनानी। कब तक मौन प्रवास करोगे? दुष्शासन का दुराचार सहोगे। भूख से व्याकुल जनता है? सलिल सरकता सर से ऊपर। उलटी गंगा वह निकले ना। उठो देश के स्वाभिमानी॥ कब तक पानी ઽ आस करोगे। कब तक यह व्यभिचार सहोगे? कब तक सुहाग लुटता देखोगे। कबतक उनका अत्याचार सहोगे? कब तक वह हाहाकार सहोगे। उठो- उठो देश के स्वाभिमानी? सावघान हो जा सेनानी। उठो देश के स्वाभिमानी ।।sukhmangal singh 00:39, 28 अप्रैल 2014 (UTC) शव्दार्थ:-सलिल-पानी,जल। आस-आशा,लालसा, भरोसा।
"ॐ" (भजन)जग में जीना है थोडा भजन करा हो । ना कौडिन - कौडिन माया बटोरय ॥ संग में नाही अधेला भजन करा हो । जग में जीना है थोडा भजन करा हो ।। ना संग में जइहै बैला गैया । ना संग में हाथी घोड़ा भजन करा हो ॥ जग में जीना है थोडा भजन करा हो । ना संग में जइहै बेटी बेटा ।। ना संग जइहै जोड़ी जोड़ा भजन करा हो। जग में जीना है थोडा भजन करा हो ॥sukhmangal singh 13:15, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
कमल वासनी?कमल वासनी व्याघ्र आसनी,
भव भावन हारणी हो तूँ।
मतंग मुनि पुनि किये तपस्या,
तरण तारण तारिणी माँ तूँ॥
हम भी अर्पण करने आये,
श्रद्धा स परिवार तुझे।
वास करो तू पास रहो,
उद्धारक,अधियार बुझे॥
माँ नूतन गीत सुनायें,
ममता मय, माता गायें।
हम भजन हैं करने आये,
सुख शांति का गीत सुनायें॥sukhmangal singh 02:27, 26 जुलाई 2014 (UTC)
कविकवि कुछ तान सुनाने का। उथल पुथल मच जाने का । सच माँग सदा जगानें का। दूर महानाश भगाने का । प्रलयंकार हटाने का । को कौशल पास छुपावे । तो वह कविता कह जावे। कवि को राज बतावे ॥sukhmangal singh 03:19, 11 दिसम्बर 2013 (UTC)
कवि-कविताकविता ने जग के काज को सहज कराया ।
क्रोध कोलाहल कठिन काटि सुहृदय बनाया॥
करुणा कारण सुचि सागर शांति का गोता खिलाया ।
निरा कुतूहल बाल भाव बन चमक धमक दिखाया ॥
मोह लोभ लालच चंचलता चपल हृदय नीद न लाए ।
कलह द्वेष स्व अनुचर ला जहाँ तहाँ बसाया ॥
सदाचार सौरभ संदेश देश में ला यहाँ- वहाँ फैलाया ।
सौन्दर्य चकित जग अंचल अगनित ललक दिखाया ॥
चित्त उचटन पर प्रकृति छटा मनोहक दिखी निराली ।
सुख दु:ख आनन्द क्लेश में करती सबकी रखवाली ॥
विस्मय भरे नैन से कल्पना की छाया करे रखवाली ।
सागर जल भीतर भारत बिच अनुपम छटा निराली ॥
चमत्कार की चाह चातुर्ता की कविता करती रखवाली ।
अंत: करण की कोमलता सुर सुन्दरता की करे सवारी ॥
भक्ति भाव की भक्तों में भक्ताई भरके भलाई करती भारी ।
कवि के कोमल कर कमलों को सुगम सच्चाई भरती सारी ॥
मन भावन छाया दिखलाकर कुटिल भाव भगाती ।
वन पर्वत नदी नाद नव पल्लव दे दे मन भरती ॥
चित्रकूट के रम्य छटा का गुणगान मनोहर करती ।
गिरते न्याय से ऊपर उठ भूखे को जल पान कराती॥
दु:ख दारिद्र का भान कराकर જ્ઞાन की सरिता बरपाती ।
झोपड़ी झरोखे रम्य वादियों किसानों का सद्गुन गाती ॥
हित साधन अन्याय-न्याय मंदिर-मस्जिद महात्म सुनाती ।
लाभ कराती-हानि दिखाती वातमंडल सुरम्य बनाती ॥
मृत्यु नहीं होती कवियों की विचलित होना स्वाभाविक है ।
कविता निज प्रिय सरिता श्रोत से गोता खाती जाती है ॥
उसमें जो कुछ रहेगा मनोहर वही हमारे जग काम का है ।
उससे ही होगा निज गौरव अपने सपने नाम दाम का है ॥
कवि के स्वर में प्रकृति की रहती सदा ही नूतन- तान है ।
निज वाणी बल विद्या विदित बात बनाती मान धनवान है ॥ॐ ॥sukhmangal singh 15:24, 10 दिसम्बर 2013 (UTC)
कब अइबू महरानीकब अइबू हमरी बखरिया, हे दुर्गा महरानी !
सब निर्धन के धन दे देहलू, हमहूँ के दे दा तब हम जानी, हे दुर्गा महरानी ! कब अइबू हमरी बखरिया,
हे दुर्गा महरानी ! सब अंधन के आँख दे देहलू, हमहूँ के दे दा महरानी ।
हे दुर्गा महरानी ! कब अइबू हमरी बखरिया,
हे दुर्गा महरानी ! दब लंगड़न के पैर दे देहलू , हमहूँ के दे दा तब जानी । हे दुर्गा महरानी !
हे दुर्गा महरानी ! कब अइबू हमरी बखरिया,
हे दुर्गा महरानी ॥sukhmangal singh 02:48, 8 अप्रैल 2014 (UTC)
कर्म का बंधनकर्म बन्धन में पड़ा
नर भोगता बांड सदा ।
प्रीत प्रभु पावन पायो , क्रीड़ा # यदा-कदा॥
श्याम सुन्दर सांवरो
शुद्धा सबका सदा-सदा ।
मेघ मोहन घबरा उठा
ऊसर सिंच यदा-कदा॥
स्वान सांतत ले जुदा
मंगल प्रीति लो खुदा ।
मंगल हृदय सुधा-सुधा
ક્ષय छाव पुरी सुदा ॥
आ-आभा नैना प्रिया
त्रिजटी त्रिशूल शिवयदा।
मंगल नद नंद नंदिनी
छिन तिन ढि़न गावत सदा ॥sukhmangal singh 15:18, 7 दिसम्बर 2013 (UTC) शव्दार्थ:-त्रीजटी-शिव। पुरी-काशी।शुद्धा-अमृत। सांतत-दंड,सजा। स्वान-घड़घड़ाहट,शब्द। आ-लક્ષ્मी। नद-मंगल।नंदिनी-गंगा,ननद,कन्या,पुत्री,सुरभी जो कामधेनु से उत्तपन्न छिन तिन ढिन। आभा-किरण। नैना-नम्रता। प्रिया- बल्लभी ॥sukhmangal singh 03:37, 25 जून 2014 (UTC)
कल्पसुरज चन्दा ना बदला
पवन पुनर्नवा जहाँ-तहाँ
हम बेरिआ बेरिआ बदले उतने
स्वप्न नये जब आते इतने॥
कहाँ गवा वह आम महुअा
कहाँ गवा कटहरिया कटहल।
शीशम सेमल कहाँ-कहाँ
बड़हल गूलर क पुष्प यहाँ
अब तो केवल हरा भरा
ऊसर नित दे दरस खरा।
अतरे-अतरे यहाँ वहाँ हरा
चन्दा सा सौन्दर्य बिखेरें॥
बुढ़े बच्चे बुढि़या बापू
गुठली देख खिसियात राजू।
सरसो के खेतवा का रंग
चपला के अधरन चमकल।
बदल गया मंगल ना बदला
खइले के चिन्ता केकरे
स्वस्थ रहे की आस जेकरे।
जाड़ा अति दाऊरौले जाला
कपड़ा पहिने के शौक गयल।
डाक्टर इहय कहत रहेन
मिट्टी में ना पांव पड़े
अलसी सरसो तन ना छूवे
डराप्सी कय भरमार भयल॥sukhmangal06:09, 14 जून 2013 (UTC)
कल्पनाएंसीने में हमनें जितनें जख्म सजोया। उन्हें तय करेंगी तुम्हारी योजनाएँ। लड़की है बैठी जो कसक दबाये। तय कहीं कल करेंगी बीरांगनाएँ। दौलतमंद कितने अपराधी बनाये? तुम्हारी शख्सियत तय करेगी संवेदनाएँ। मुल्क के खुद्दार जावाज चुप लगाये। इतिहास रचायेंगी शहीदों की चितायें। दिन-दिन आपाधी रात्रि को चिंताएं। मिटा देगी उन्हें जन-जन की कल्पनाएँ ।।117.199.180.218 (वार्ता) 12:34, 12 दिसम्बर 2013 (UTC)
कसकलज्जा से काँप रही धरती? नद कूप कराह रहे कोकिल॥ नैनो के आँसू आनंद वन। सूखे प्रियतम अंग- अंग॥ दवा धरा पे खरे नहीं। नहरों नीर कही नहीं॥ नारी की लाज बचाने को! लश्कर मैखाने अड़ा नहीं॥ शरन लिए जो छले जाते। प्रणव छोड़कर पराण बचाते॥ अपने ही घर अन्तर्दाह कराते। लज्जा से कांप रही धरती?॥singh 03:47, 14 June 2013 (UTC)
"कहने तो दो"आम की डाली है । कहने तो दो ॥ पीपल के पेड़ को। श्वास लेने तो दो ॥ जिसने बना रखा॥ झोपड़ी और महल । दिल है अपना । ठहरने तो दो ॥ वह बोला तो अमृत। हम बोलें तो जहर । उसे अपना मरम । कहने तो दो ॥ कितनी प्यास लिए। खूँटों से बंधे हम । बढ़ा घना अंधेरा । बात अपनी कहने तो दो ॥ कच्चा मकान हूँ मै । गिरने ना दो । गर्दिश में शिर छुपाने को । उसे रहने तो दो ॥sukhmangal singh 00:30, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
करमवाहमरे करम मे लिखल बुढवा भतार , हाय रे करमवा? सोलह-सोलह रोटी अपने बुढवा के खिलावनी--॥ बुढ़वा के खिलवनी, हाय रे करमवा? तबो नाहीं बुढवा मोटाय, हाय रे करमवा॥ सोलह सोलह बुकवा(उपटन)बुढ़वा के लगवननी, तबो नाहीं बुढवा मोटाय, हाय रे करमवा॥sukhmangal singh 14:38, 12 जून 2013 (UTC)
कलंकजोरू गणिका का एक समान ? नाचे गावे तोरे तान || छली लली शिर चढि बोलै? नई सुसभ्य़ता पनही डोलै || उमगि उमगि उमङी जो भीङ | ताली दै- दै लूटै पीर || नाचै और नचावहि धीर | टप टप टपकत शिर ते नीर || साक्षी होवहु गगन के सारे तारे | दबी भूमि भार सो आज पुकारे || बीच बीच माँ रजत सी आभार धारे | मानो मिलिके इहै कहै सारे तारे || तङफङात माँ ममता को मीत | लखि सबहिन मिलि गाय़ो गीत || मंगल महल मध्य गरग पतंजलि | मनु भृगु कृष्ण गंगा अंजलि || देवी उदा सुचिता सैटिन कपिल | मूलमती गुन्ती कमला लीला अखिल || झँकृत भूमण्डल नारद को तान | अजीजनवाई अग्रेजो का गौरव गान || लक्ष्मीवाई लाखों में एक महान | गावत नाचत जग सारा गान || वही वासना वही विलास ? ऋषि मुनि पुण्य कोटि को आस || बोवहु कलंक माथे मन रासी | भटकत फिरत बन मधुरा काशी ||singh 04:27, 14 June 2013 (UTC)
कांधा रगरीराजा बाटे बङा रगरी,अरे!साँवरिया | काँधा उठै बङे भोर,जाऩै जमुऩा की ओर ! काधा फोङै मोरी गगरी,अरे!साँवरिया | काधा उठै बङे भोर,जाऩै जमुऩा की ओर || काधा चुराबै मोरी चुनरी,अरे!साँवरिया | काधा उठै बङे भोर,जानै वृन्दावन की ओर || काधा रोके मारी डगरी,अरे!साँवरिया | काधा बाटे बङा रगरी,अरे!साँवरिया ||singh 15:08, 15 June 2013 (UTC)
काशी का चातुर्मासमांगो न और काहू से याचक बन काशी में। चातुर्मास बिताय रहतु ना एकै द्वार। लेत नहाय वहाँ
सब तीरथराज देवगण॥ मांगो--
चरबन लेत चबाय
चहुँओर महिमा काशी में।
पंचाક્ષरी मंत्र पढ़ महिमा तन की काशी त्रिलोचन ઽ लोचन- कर्णघंटा घंटा बजत। गिरिजानंदन हम
शिव याचक बनिहौं काशी में॥sukhmangal singh 17:50, 17 जुलाई 2014 (UTC) =विश्व में काशी-
विश्व जगत में पुनि काशी, का परचम अब लहराएगा। अमितशाह की अगुआई है, मंगल गीत सुनाएगा। मोदी मानवता का रક્ષक, सकल एशिया गायेगा। विश्व बना दर्शक प्यारा, जन जन खुसी मनाएगाsukhmangal singh 01:32, 20 अगस्त 2014 (UTC)
किसके साथ चलोगेचारो तरफ मुझे, गोपियों ने घेरा वर्ना, जाने कब के मैं, खुदकुशी किया होता। चुन-चुन के हमने, चम्पा चमेली कल्पवृક્ષ, आँगन में लगाए, पुष्प पेड़ पर न आए, पेड़ तो खड़े रहे, पत्ते पलास के आए। टूट रहा चारो सिरहाना, कब तक मचान पर रहेंगे, पहले था आया अकेला, तुम किसके साथ चलोगे!sukhmangal singh 00:01, 2 सितंबर 2014 (UTC)
कालीदह (सोहर)गंगा जमुनवा कै बिच तरुखवा कदम कै! बहिनी कहै तोरे ठाढे श्री कृष्ण त गेंदवा उखेलै न! उछ्डै ला गेंदवा आकाशे जाला अउर पाताले जाला ॥ श्री कृष्ण जी कूदेलै कालीदह गेंदवा के कारण! नाग सुतेला नागिन जागैले बेनिया डोलावै ले! श्री कृष्ण कवर धइलै ठाढ नागिन हस पुछैले! केकर हउआ बालक केकर दुलारल । बाबू कहवा तोहार बसों बास कहवा तोही जाला! जसोदा के है हम बालक नन्द कै दुलारल ॥ नागिन मथुरा में हमार बसों बास जाइला गृह गोकुल! घूमी जाओ ए बाबू घूमी जाओ जाओ घूमी के घर जाओ । बाबू नाग छोड़ीहै फुफकार संवर होई जाबा । नागहि के हम नाथब नाग पीठ फूल लादब । नागिन नाग फन पर होइबै असवार जाइब गृह गोकुल । नागिन बिनती से बोलै दसो नह जोड़ के । बाबू बकसौ मोरि यहवात यशोधरा जी के बालक ||117.201.188.201 (वार्ता) 12:53, 11 सितंबर 2013 (UTC)
कुछ कर दिखला देसाहित्य वह मशाल जो, आगे चला करता सदा । सामंत शाही राजनीति को, धकिया के चलता सदा ।
नेता ऐसा बने कि जो , नारी की रક્ષા करे सदा । बेरोजगारी दूर करे जो, श्रृजन रोजगार करे सदा ।
दुष्कर्मी देश में बढ़ते हों , उन सबको समझा दे । गुण्डा गर्दी राज में बढ़ती, हो छुटकारा करवा दे ।
आतंकी आश्रम ना पनपे, कुछ ऐसा काम करा दे । भ्रष्टाचार मुक्त समाज हो, विकास की अलख जगा दे । पीने का पानी गंदा जो, स्वच्छ जल तो पिला दे ।
बहता शहरों से गंदा पानी, शोधित नदियों में गिरा दे । युवा शक्ति भरमे जो हो , शिક્ષા उच्च दिला दे ।
स्वास्थ सेवा गिरता स्तर, आगे बढ़ अलख जगा दे । शोसल आडिट हो अपना, विश्व में बढ़ नाम करा दे ।
अपना देश बना दे कोई, अपना देश हवा दे । अपना देश बना दे कोई, अपना देश हवा दे ।sukhmangal singh 02:42, 9 अप्रैल 2014 (UTC)
कुंडली मारि बैठे?जाने कब अनजाने बाज, का झुंड-झुंड चला आया । पूर्वांचल का राज छुपाये, कालोनी-कालोनी छाया । हिम्मत किसकी उसे टटोले, मन माफिक मिलती माया। एक से बढचढ एक साज, दूर देश तक जिसकी छाया । कुंदली मारि बैठे वर्षों से, शासन निज लाचारी गाया । दूर दराज का खेल खेलते, जहाँ तहाँ आतंक छाया । मौजी बस्ती बलवानों सी, अनजानोंं की भारी माया । अखवारी दरबारी गाथा, जानें क्योंं खास सुनाया ॥sukhmangal singh 16:30, 26 नवम्बर 2013 (UTC)
कुनैन की गोलीस्वाती बरसे पपिहा हरषे। पी -पी की आवाज कहाँ॥ कोयल बागों में कू-कू करते? बिनु कोयल ज्योंं दिल तरसे॥ चौपालों का दौर कहाँ। नीम पीपल के पेड़ कहाँ॥ पथिक बबूल की छाँव में। थक करते विश्राम वहाँ॥ पेड़ों की सफाई होती। जनता में लड़ाई होती॥ जाड़े में मन भाते जहाँ। सूखी लकड़ी ठाँव कहाँ॥ महुआ महमह फूल नहीं। जन जन कैसी भूल रही॥ वह कुनैन की गोली गायब? जो मलेरिया को करती घायल॥sukhmangal singh 00:12, 28 अप्रैल 2014 (UTC)
कैसे आऊँ तोहरी सेजरी(कजरी) डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी। सावन भदउवा में पण्डित पुकारे? कजरी के बोल धनिया नु अइतु सेजरी। कइसे के आऊँ रजऊ तोहरी नगरी॥ डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी। सावन भदउवा में पण्डित गावे कजरी॥ ससई मोरी जागे बनल बा गठरी। चलि नु अइतु धनिया हमरी सेजरी॥ सावन भदउवा में पण्डित गावे कजरी। डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी॥ कइसे के आऊँ पिया तोहरी सेजरी। जागे ननदि मोरा ठनके ला गगरी॥ कइसे के आऊँ रजऊ तोहरी नगरी। डर बहुत लागे अँधिरतिया सेजरी॥sukhmangal singh 23:26, 19 मई 2014 (UTC)
काँव काँवमुसहर बन बेच रहे, लोग ठाँव-ठाँव । बेंच रहे बन को, अवने- पवने दाम । बज रहे नगाड़े, बजा गाँव- गाँव ॥ कौवा भोरहरी, दुबके आया पाँव । चढि़ मुडेर पे, बोला काँव- काँव । गिद्ध गिलहरी नहीं, उनका नहीं ठांव । अल्हड़ सुबह, निकियाया चाम ।।sukhmangal singh 13:53, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
कृष्नाकृष्ना कृष्ना मै पुकारूँ | हर बसर के सामने || कृष्णजी इस दास की, विनती सुनलो आनकर | तेरी ख्वाइस है फकत, मोहन तेरे दीदार की || इस लिये धूईं रमाई , तेरे दर के सामने | हम तुम्हारे सामने औ, तुम हमारे सामने || कृष्णजी इस दास की, विनती तो सुनलो आनकर |sukhmangal singh 13:03, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
कृष्न लाल आइकेछोरा हमरे आँगन में आइके, हर दम नंगे वदन श्यामल, रंग गलियन में शोर मचाइके , दम हर दम मिट्टी में लेटे ला । दरस दिखायके, शोर मचायके ।। हंसि-हंसि लोगन मां , किलकारी मारिके, कनियां में दौडेके, सोवेला आइके।। निष्ठुर जियरा हंसावे ला जाइके, गलियन में बंसी बजावे ला भाइके, मटकी का मक्खन गिरावे ला ढ़ायके, मथुरा की छोरी लुभावे ला जायके, ठुमुक-ठुमुक नाचे ला पैजनिया बजाय के।। मनवा लुभावे ला कनिया में आइके , करे रथ की सवारी सारथी कहाय के , मानव रूप धारण किये, कृष्ण कहाय के, जगत का कल्याण किये, ग्वाला कहाय के। गीता का उपदेश दिये, कृष्ण लाल आइ के।।sukhmangal singh 15:53, 18 जून 2013 (UTC)
खंडहरभूख ने व्याकुल किया। खंडहर होता वह दिखता रहा।। पेट खाली कर कोई। तन-मन रंगोलियाँ सजाता रहा।। वे ख्वाबें सजोये ता उम्र। ओ ओर छोर मुस्कराता रहा।। पैदल चला मै। वह स्पलेन्डर से जाता रहा।। विश्वविद्यालय की ड्योढ़ी। पर जाकर मै शीश झुकाता रहा।। झोली खोली मंनतों, की वह दर बदर ठुकराता रहा।। अक्ल का ताला बंद पर। गीत फलक पर लाता रहा।। कल की ओर निहारे बठै? रात-दिन ज्यों बिताता रहा।। समय सत्य निहारता। कौन!नभ तक जाता रहा।। अपनेंअपनेंसपनें जीनेके। रह-रह स्वयं बतलाता रहा।। आँखें धुधली उतरा ऐनक। घोर अंधेरा पर मुस्कराता रहा।। अमावस की घिरी रातें। को बढ़कर दीप जलाता रहा।। स्वर नें इन्साफ किया। मुखरित हो गीत गाता रहा।।sukhmangal singh 11:31, 20 जुलाई 2014 (UTC)
खास बताया नहीं जाताकुछ बात राज खास, याद दिलाया नहीं जाता । लासें टंगी दरक्त की़, दिखाया नहीं जाता । टुप-टुप रिसता लहू, कभी बताया नहीं जाता। आजादी का खटमिठा दंश, दिखाया नहीं जाता। हिंदू मुसलिम संग-संग, समझाया नहीं जाता । सिखों का दिया साथ, गाथा गाया नहीं जाता । इसाई का प्यारा प्यार, सुनाया नहीं जाता । दर डालर देख- देख, इंसान क्यों कुचला जाता । हिन्दू मुसलिम बांट- बांट, कर इंसान खरीदा जाता ? मिश्रित सभ्यता सम्पन्न देश़, अमन चैन से रहता । अर्थ व्यवस्था उत्तम मन, आतंक वाद से लड़ता । फूल फलों से लदा दरख्त, खग- मृग का मन भरता । बलिदानी बलशाली सारे, जत्था-जत्था लड़ता ॥sukhmangal singh 16:07, 26 नवम्बर 2013 (UTC)
ख्याल करोकलम बद्ध बाधौ लाले लाल। धरती धुर आयेगा भूचाल॥ फिसल जायेगी सारी चाल। होगा चारो चुर धमाल॥ ओर छोर चहुं ओर जो जाल। उल्लास नृत्य का होगा ख्याल॥ संसकार संस्कृति आचरण साल। मातु पिता गुरुजन को कर ख्याल॥sukhmangal singh 00:54, 7 अगस्त 2014 (UTC)
गरुणगाननेत्र पसार अपार उलूक, हे!मित्र बताते गरुण कहानी। देखि-देखि ढूढो़ मम रूप, आनंद के घर घनघोर घुमानी। रूप अनेक अपार अकार, रिद्धि-सिद्धि सुन्दर सुमेर सुमानी। 'मंगल' बहु विघ्न हरन वाले, शुद्ध बुद्धि वाली उलूक कहानी। गज सा मुख देवो में देव, अंगार सो पूज्य सरन रखवारे। 'मंगल'खान सुमंगल जान, गणनायक सहायक उलूक हमारे। दानी में दानी कर वानी में बानी, सुधारस शानी वेद रूप रखवारे। नेत्र पसार अपार उलूक, हे!मित्र बताते गरुण कहानी॥sukhmangal singh 03:46, 29 मई 2014 (UTC)
गम्?मुहब्बते गम को, न भुला सकेगे आप। आज हम हैं, आप के साथ॥ कल नहीं होगे हम, न रहेगी मुहब्बत, न होगे गम॥16:20, 3 जून 2013
गणतन्त्र दिवस?पाँव बधे होने पर भी चलना पड़ता है ? जानें क्या क्या जीवन में सहना पड़ता है । गणतन्त्र हमारे जीवन में नव सीख दिलाता। पर थाने का हथियार जाने क्यों धूम जाता ।। हलचल करता सारे शहर में धूम मचाता । वर्षों से जो बन्द कमरे की शोभा बढ़ाता ।। अमला हलकान धुधली तस्वीर दिखाता । हत्याओं का बढ़ा सिलसिला वह गीत गाता ? डाक्टर व्यापारी अधिकारी सबकी नींद भगाता। कोई काण्ड हुआ होता वह कब का भग जाता॥ ताबड़ तोड़- तोड़ घर वह सब कुछ ले जाता। जलती रहे अपनी दुनियाँ वह सारी गाता ।। वह कौन था थानेदार जो हथियार ले गया। वर्षों से जो हत्या का व्यापार बढ गया ॥ कालोनी सारी कैद कौन पुकार- पुकारे ? अमला सारा मौन मन जी कर भी दुत्कारे ॥sukhmangal singh 07:46, 15 जून 2014 (UTC)
गंगा महिमाआह! कहें क्या तुझे भगीरथ इसी लिये धरती पर लाये,
युग -युग तक मानव का दु:ख सहती ही जाये। मानव को तरने को पुनर्जन्म ना धरने को, गंगोत्री से चले तुझको ले अपने साथ। जगह-जगह रुक जाते मन मे लेकर आस, खुद तो विश्र्शाम करें तू हाहाकार मचाती।
नींद ना आये सो न सकी कितने हुये बेदर्दी, तेरे अविरल धाराओं का नहीं रहा आभास। उत्तर-दच्छिण पूरब-पश्चिम ले जाते थे वे, तू ना पूछती थी उनसे कितना तुझको मोड़ेगे।
गावों नगरो शहरों धारावो से जोड़ेगे, नीचे ऊँचे पर्वत खाड़ी समतल करने का काम दिया। गड़ी सड़ी व पड़ी लाश को तरने का काम लिया , उजड़ी बस्ती ऊँचे नीचे पापी का तू साथ दिया। जितने पापी आये धरती पर हरने का काम किया , नर नारी बच्चे-बच्ची मठाधीश पीताम्बर धारी। वे निर्जन से ही ले जाते थे धनवानो के बीच , खोई-खोई अबिरल लट जनमानस रही समेट।
इससे भी जब नही अघाये दिया शम्भु को भेंट, काग भुसुन्डी बत्तख तीतर गौरये ने पान किया । भैस गाय हाथी ऊटो ने समय पाय अपमान किया, सांप और बिच्छू गोजर ने समय-समय पे पिया।
कुत्ता बिल्ली खरगोशो ने समय-समय पे छेड़ा, ज्यों-ज्यों बढ़ती चली तू निर्मल मैले तुझे किये हैं।
काना कोढ़ी लंगड़ लोभी भी आते तेरे पास, राजा योगी भोगी भी तुमसे करते फिरते प्यार।
सुन्दरियो के भोग काल में भूपति तेरे साथ, बड़े-बड़े राजर्षि राजे भी चूसे तुझको आय । नाम पे तेरे ठग विद्या करते रहेंगे लोग, गमगीनी में नहीं तूने किया कभी भी सोच। इतने से भी नहीं अघाये लिया है तेरा नीर, जब- जब किया परीछ्ण निकला निर्मल नीर ।
जब विवेक से मानव तुझको कुछ देना चाहा, भावातुर होकर उसने पुष्प दीपही ढाया।
स्वर्ग लोक से लाकर तुझको करते सभी मान, ईंट पत्थरों से मानव करता आया सम्मान। जन्म मृत्यु का भय उन्हें जब बहुत सताये , हाड़ मांस बचे जो उनसे तुझमें ला बहाये।
राम नाम का सत्य कह दावानल दहकाये, ता पर भी संतोष नहीं दरिया में डहकाये। जगह-जगह ऊपर तेरे पुल का निर्माण किया, ईंट पत्थरो से समय समय तेरा अपमान किया। नाले नलकूपों से तेरा शोषण किये निचोड़े, मित्र मंडली ने भी तुझको बार बार झकझोरे। तेरे तट पर विषय हस्तिनी ने भी किया रहना,
पा ना सकी जीवों का सुख केवल दु:ख सहना? ढोल मजीरे और नगाड़े शहनाई कीआहट, तासा! विद्वत जन भी नहीँ छोड़े गाये अविरल गाथा।
तट पर तेरे वृच्छों में लदे फूले फलो के ढेर, होगी आशा तेरी भी खायेगे मां हम बेर। तूने मां इस लोक में किया बहुत अन्वेषण,
जन-जन मिल जुल किये तुम्हारा शोषण । कभी तो उन पर सोच गंगे जिसने दर्द दिये , हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई सबने तुझे पिये । साधु संत मौलवि मुल्ला कठ मुल्लाओं को सहते जा,
तूने प्रण का किया पालन मंगल धन्य कहते जा।।sukhmangal singh 02:42, 20 जून 2013 (UTC)
गाओ गानकुछ कहो पहलवान। सुनने वाले कद्रदान ।। कहने वाला अनजान । देखने वाले मेहमान ।। बड़े-बड़े श्री मान । हो गये वे इमान ।। बचाओ अपनी जान । गाओ मिल गान ।। आते जाते तुफान ? ना घबरा तू इंसान ।। 117.199.182.26 (वार्ता) 17:50, 7 जुलाई 2013(UTC)
गंदगीजिन्दगी में स्वास लेना भी कठिन बंदगी! जब अपने आप से कह रही जिंदगी। सिर पर भारी बोझ था जो आ पड़ा, सोच मे ब्याकुल खड़ी का जिंदगी ? विसरे दिनो के ख्वाब का सपना कहाँ, वो उमंगे चाहतें चपला ठिठोली जिंदगी॥ देख कर चारो तरफ काली घटा , शहर डूबा सोच मे कब हटेगी गंदगी॥sukhmangal singh 13:49, 8 जून 2013 (UTC)
चलते चलो-चलते चलोबसर वाजीगर व्यवसाइयों से पटा, तुम क्रान्तिवीर मचलते चलो चलते चलो । मारामारी मौका परस्त जग सारा, खुद्दारों का नगर ढहते चलो चलते चलो ।। शहर सुघर संक्रमित झुग्गियों में खड़ा, न्याय अन्याय सब्र चलते चलो-2। नाहक नौनिहालों पर लगी जो बंदिशें,फन्दा समेटे बंदा चलते चलो चलते चलो।। सच को सच बकते-बकते बिफरे जहाँ, झूठ का बंडल खुला चलते चलो चलते-। मंदी और बेकारियोंं का दौर दौरा,लेकर कटोरे चलते चलो - चलते चलो।। आज अपने आप से अंजान मंगल, साँय-साँय बद चलते चलो- चलते चलो। ओ ही कटीली झाड़ियां अस्तित्व में, अनवरत कतरते चलोब चलते चलो।। अलसाई महुआई आंखों की थकन, डीठ आँखें मचलते चलो चलते चलो । पुरवइया गुमनाम चाँदनी चमकेगी, धमकेगी चलते चलो चलते -चलते चलो।। मारामारी मौका परस्त जग सारा, खुद्दारों का नगर ढहते चलो चलते चलो । जब जिंदगी तपकों में तपकर तय हुई, लप लपेटे बहुत चलते चलो -2 ॥sukhmangal singh 04:14, 28 जुलाई 2013 (UTC)
चनामेरा चना बना है कनखिया; ऊपर चले रेल का पहिया' नीचे चले हजारो नइया । नीचे बहतीं गंगा मइया ! जिसपर बैठे मंगल भइया, चना जोर गरम॥
मेरा चना बना है खर्र, पुडि़या बाँधा है कसकर। लेके जाना भाई अपने घर, खाना भाभी से मेलकर। पूछेंगी कहाँ से लाए देवर, बताओ चनेवाले का घर । चना खरीदेगी बढ़कर , चना जोर गरम ॥
मेरा चना बना है ओझा, पतोहिया खोल के आई झोटा। देवर तड़ी में खोला लंगोटा, बाबूजी उठाय लिए सोटा। बहुरिया खीच के मारे लोटा, चना जोर गरम ॥
मेरा चना बना दिलवाला, जिसको खाते शाली-शाला। उसमें डाला मिर्ची काली, चना जोर गरम ॥
टन टन टन टन घंटा बोला, चपरासी बढ़ फाटक खोला । लड़के पढ़ने गये स्कूल, मास्टर मारे खींच के रूल! लड़के गये भाग बिलकुल, चना जोर गरम ॥sukhmangal singh 23:44, 7 मई 2014 (UTC) शव्दार्थ:-कनखिया-तिरछी नजर,इसारे से देखना,तीखा।
चौथ का चांदमाघ महीना क कृष्ण पક્ષ मे,पहला पક્ષ दिखबा आइलबा। पुतवन के कल्याण के खातिर, सिसिर सर पर चढ़ल आइल बा। सखियन चला मिलि करी तपस्या, तिजियै के हम खाइब ना अब । होत भिनहियाँ चौथ लगी जब, भूखे पेट ला बिताइब तब । दिन भर हम उपवास करब जब, गौरी गणेश के भाइब तब । गणपति बाबा आशिष ले तब, गौरी माँ जाय मनाइब जब । सांझ ढलत हम नहा धोयके, कंचन थाल सजाइब हम तब । गौरी गणेश राउरै को भोग कन्ना गुण अच्छत चढाइब तब । घी दीप नैवद्य माला पुष्प, तिल गंगा जल ले मनाइब हम । चन्दा मामा देखल विनु सखी, कछु तुहके नाहि चढाइब हम । साક્ષી रहिहै चन्दा मामा , सखियन संग गितिया गाइब हम । अरसे बरस भर भला रखिहा,दूसरो बरस भल अइबा पुनि। अइसे दरसन दिल मा रहि हा ,कंचन थाल ला सजाइब पुनि ।।
माघ महीना---।।।sukhmangal singh 02:16, 26 जून 2013
चिराग जलना चाहिएसी लिए हों होठ तो भी गुन गुनाना चाहिए । अब पिटारी से कोई खुसबू निकलनी चाहिए॥ बदबू नुमा शहर सारा शाम ढलनी चाहिए । खट्टे मीठे स्वाद बहुत कुछ बदलना चाहिए॥ रहनुमें सारे किनारे फिर मचलना चाहिए । ठूठी सियासत बहुत बदरी अब सम्हलना चाहिए॥ विद्रोह की ज्वाला न भड़के जतन करना चाहिए । जनता सारी समझ रही खुद समझना चाहिए ॥ बुझ चुके वस्ती के चिराग पुन: जलने चाहिए । दीपक जलते महलो में दिल में भी जलना चाहिए॥ गाँव के सारे शहर को फिरअन्न मिलना चाहिए । अमन हो परदेश सारा रहमों करम होना चाहिए ॥sukhmangal singh 07:2 (UTC)
चिन्हित ना हनुमानना तुम्हे देखिले बाबा जनक द्वारे| तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| ना तुम्हे ऋषि मुनि के सहारे | तुम्हे त हम चिन्ही ला हनुमान| ना तुम्हे देखिले नग्र अयोध्या में| ना हो सरजू जी के तीरे तुम्हे | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| केकर पुत्र, केकर हया पायक रामा| केकर पढौले यहाँ आयो है रामा | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| अंजनी के पुत्र लक्ष्मन जी के पायक रामा| मुनि के पढौले यहाँ आये | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान| काढ मुद्रिका सिया के आगै फेकले रामा| अरे परि गई सिया खुश भइनी रामा | तुम्हे त हम चिन्हत ना हनुमान||sukhmangal singh 14:31, 9 सितंबर 2013 (UTC)
चिरियाचिरिया ले गइनै चुरायके, मुरारीहमरे राम।। चीर चुराय कदम चढि बैठे, जलवा मे सखी सब उघारी , हमरे राम ॥ चिरिया ले गये चुरायके, मुरारी हमरे राम॥ हाथ जोरि के राधा विनवै, दे दा तु चिरिया हमारी, हमरे राम॥ चीर तुम्हारी तबै हम देबै, हो जा तू जलवा से न्यारी, हमरे राम॥ पुरइन पात पहिनि राधा निकलयनी,कॄषन बजावै लगनै तारी, हमरे राम॥ चिरिया ले गइनै चुरायके, मुरारी हमरे राम॥14:22, 8 जून 2013 (UTC)
जगमगहृदय के गति को गतिमान करो। धरती मां का सम्मान करो।।(मुक्तक) एक पताका छोड़ जाता हूं निशा के पास। भू धरा शमा जले दीप बन कर हर हाथ।।
शिव- शंकर शम्भु शशिन्द्र रहे पास। जन-जन जगदीश्वर दिल हर्षायें साथ।। जहां कण-कण रमते रहते हिल मिल हाथ।
वह दीप धरा पर रंग लाये जगमगाये पास।। यहां कैसा छाया अंधेरा घनेरा मध्य रात्रि। प्यारा जगमग तारा बन छायें धरा के पास।।(हिंदी कविता)sukhmangal singh 17:02, 24 जून 2013 (UTC) ीण
जतन कर रहा हूँतुम्हें क्या बताऊं क्योंं सहन कर रहा हूँ। सुबह-शाम मिल जुल आचमन कर रहा हूँ॥ यह संबंध दिनों दिन बहस में टगे हैं । निकलने का इससे जतन कर रहा हूँ॥ थकन नें हमें तोड़ डाला बहुत है। उसी का दिनों दिन स्मरण कर रहा हूँ॥ अंधेरे में सारी जिन्दगी होम कर दी। उजाले में थोड़ा भजन कर रहा हूँ॥ शख्त दरवाजे इतने कि खुलते नहीं हैं। तोड़ने का बराबर जतन कर रहा हूँ॥sukhmangal singh 03:25, 13 मई 2014 (UTC)
जप मालाईश का विधान जैसो, वाही विधि रहियो। मानव तन धरियो, ईश्वर के तुम कहियो। उसका सब विधान, सुन्दर निधान कहियो। मुग्ध मगन मान्यो़, तू भी मुग्ध रहियो। सेवा ही कार्य अपना, सेवा सदा करियो। हृदय नें नाम जपना, अपना ई जपियो॥sukhmangal singh 16:24, 30 सितंबर 2014 (UTC)
जागो नारीभूल जाओ गुजरा कल का,
वह तमाशा साल का । आइए चलें स्वागत करें, सभी नये इक काल का ॥ + + +
कमर में करधनी तोड़, पाँव में पायल मोहे। हाथ जोहे कुण्डल, नारी लક્ષण सज्जन, ना होगी नारी मंगन॥" + + +
जब पुष्प खिल जायेगाएक पुष्प देश में क्या वह निखार लाएगा? बढे़ भ्रष्टाचार जो दूर ओ भगाएगा॥ 'माँ गंगा' को गंदगी बोट साफ कराएगा? विश्व में फैले भ्रम को बढ़ आगे मिटाएगा॥ शिક્ષા में भ्रष्टाचार को दूर वह कराएगा? नौजवानों को श्रृजन कर कर्मी बनाएगा॥ ई टेन्डरिंग कर देश को आगे बढ़ाएगा? भ्रष्टाचारी देश न हो हुछ ऐसा कर जाएगा॥ सुविधा शुल्क राज्यवार कौन-कौन मिटाएगा? काज के साथ प्रचार-प्रसार कौन कराएगा॥ राज्योंं में टैक्स समान हो नीति बनाएगा। मिडडे आँगनबाड़ी पर नियंत्रण आएगा॥ विद्युत व्यवस्था,जल सबको सुलभ करायेगा? बलात्कार को देश से दूर वह भगाएगा॥ संस्कृति-सभ्यता का सुन्दर पाठ पढ़ायेगा। दैहिक दैविक भौतिक तापोंसे पूण्यमुक्ति दिलाएगा? ऐश्वर्य की धारा कान्ति युक्त का फिर से आयेगा? सूर्य उदय हो शत्रुओंं का तेज हर जायेगा॥ स्त्री-पुरुष में प्राण और अपान शक्ति बढ़ाएगा? वह प्रतिसर मणि फिर एक पुष्प लाएगा॥ दर्भ मणि विश्व देश का कल्याण करायेगा। भ्रष्टाचारियों का धन क्या देश में आयेगा? क्या त्रिभुज में फिर से आत्मा आयेगा? जो काले और धारीदार नागों को प्रणाम करायेगा॥ पुष्प स्व लालिमा से कृत्रिम चमक को हटायेगा? आओ मिलजुल कर देश खुसहाल बनाया जाएगा॥ राष्ट्र रક્ષાर्थ सुशासन हेतु यજ્ઞ कराया जाएगा? सत्कर्मोंकी जननी मातृभूमिपर यજ્ઞ कराया जायेगा॥ अग्नि और चन्द्रमा को हव्य दिलाया जायेगा। मनरेगा की मन्द गतिसे धरती को मुक्ति दिलाएगा॥ पंच द्वार से होता शोषण पुष्प सर्वेક્ષक को लाएगा? लूट -पाट की बनी अट्टालिका धरोहर बन पाएगा॥ बड़ बौली मनमानी को भी अंकुश लग पायेगा? धरती माँ माला माल होगी जब पुष्प खिल जायेगा॥sukhmangal singh 16:05, 19 मई 2014 (UTC) शव्दार्थ:-प्रतिसर मणि-इस मणि से इंद्र ने वृत्त नो मारा और वे पृथ्वी को जीते।
दर्भ मणि- विश्व कल्याणार्थ।
जेठदमखम दमकत चमकतहसि,समिधा उष्ण महि। द्रष्टा दर्शक दुति गति सद्य,अग्नि तीछ्ण लहि।। अंग-अंग तरंग उमसि उठि जहं, तहंआली लखि। छैल छबीले छन-छन छके,भृगुटी भेद वहि।। नैन नचावत बैन बजावत,गुरूमुख गारि रहि। ग्रीश्म गजब धुनि लौ आनंद,जेठ सो ठेठ महि।। मलय पवन आँगन छवि लोचत, बन वसंत मही। नैन बैन चैन नहि आँखिन,उर उन्माद लखि रहि।।sukhmangal singh 01:52, 18 जून 20
जीने दोदर्द समेटे दिल में अपनें, अपने सपने टूट न जायें। जिसको जिसको समझा अपना, अपना सपना ले वे आये॥ सगरे अगर मगर डगर-डगर, जगर मगर रहे वा जाये। सपना अपना- अपना अपना, अपना उफनाते ही जाये॥ चुक चुक चटक चमक चमन में,दामन में डर दाग न आये। सुबह हो सबेरे साम सरहरी, दोपहरी में मन मुरझाये॥ लपट लह लहाती लम्बे लमहे, लानत तानत शूल सताये। तृण- तृण तूल तलातल तल, तपकर शूल मूल बन जाये॥ लमहे बीते लघु इतनें ना, वर्तमान रीते से आये। स्वाती की आस लिए बूंदें, नद नव सीप खुले रह जाये॥ जटिल कटीले कंटक पथ-पंथ, प्यारी-प्यारी नींद न आये। मन मुस्काता पुनि घबराता, दिल की आस प्यास बुझाये॥ दर्द समेटे दिल में अपनें, अपनें सपने टूट न जाये। समुझावत बहलावत जियरा, मीत बेर बहु बंदा लाये॥sukhmangal singh 05:20, 28 जुलाई 2013 (UTC)
जंग जहाँ में?जहाँ भी देखो वहीं जंग जारी है । क्यों पिस रही सारी जनता हमारी है।।
लूट की दौलत फितरत जो तुम्हारी है। जातियों में बटता देश की लाचारी है ॥
गर गुलामी की गजब दिल में खुमारी है। तो यह सियासत में कैसी दीनदारी है ॥
आजाद अपना देश यह सब मानते हैं ? रोटी के वास्ते लोग कफन बाँधते हैं ॥
आस्तीन में वह कौन कटार छुपाए है । सर जमी पर हरક્ષण लाखों शिरमुड़ाए हैं॥sukhmangal singh 02:58, 11 मार्च 2014 (UTC)
झाड़ूकूचा का खेल निराला, घर बाहर सब साफ करा ला ।
मनमानी कानून बना ला, गली मुहल्ला साफ करा ला॥
राज-राज को साफ करा ला,राज! कचहरी साफ करा ला ।
मास्ट र साब झाड़ू मग वाला,कालेज कचरा साफ करा ला ॥
कोर्ट कचहरी झाड़ू वाला,कोना अतरा सफा करा ला ।
रखा निज मकान में झाड़ू ,चलता घर-घर झाड़ू वाला ॥
झाड़ू बडा़ ही काम वाला, घर संवारे झाड़ू वाला ।
सड़क बहारे झाड़ू वाला,गली निखारे झाड़ू वाला ॥
कोना अतरा झाड़ू लाला ,आस-पास भी साफ करा ला॥
दफ्तर में भी झाड़ू वाला,फाइल-फाइल साफ करा ला ॥
दूकानों पर झाड़ू वाला, गहना सिक्का साफ करा ला ।
गली मुहल्ला झाड़ू वाला़,मेहनत से सब काम करा ला ॥
काबा औ काशी चम का ला , अमन -चमन का झाड़ू ला ला ।
नीच दुआरी झाड़ू वाला, ऊँच अटारी झाड़ू वाला॥
दुर व्यस्था हो झाड़ू वाला , सुव्यवस्था ने झाड़ू वाला ।
नाली नाला साफ करा ला़, जग जगमग! झाड़ू लगाला ॥
झाड़ू देश का करे कल्यान ,उलटा प्रदेश ना हो हलकान ।
मेल करा ला झाड़ू वाला , जेल करा ला झाड़ू वाला ॥
हवा बह रही झाड़ू वाला ,बच-बच चलना झाड़ू ला ला ।
बेकारी हो झाड़ू ले लो, डगर नगर सब साफ करा लो ॥
कूटनीति का झाड़ू वाला, नीति बनाता झाड़ू वाला ।
जाति पाति ना झाड़ू वाला ,जन- जन का का झाड़ू वाला ?
गाव नगर का झाड़ू वाला , मन भावन सुख पालन वाला ।
लूट बचाता झाड़ू वाला , सब बतलाता झाड़ू वाला ॥
गुन्डा घटाता झाड़ू वाला , न्याय करा ला झाड़ू वाला ।
बेगारी !मिटा झाड़ू वाला , निज विश्वासी झाड़ू वाला ॥
उठल-पुथल का झाड़ू वाला,संकल्प सकल झाड़ू वाला ।
जन्म का साथी झाड़ू वाला, मृत्यु समय में झाड़ू वाला ॥sukhmangal singh 14:47, 11 जनवरी 2014 (UTC)
झूला झूला झूल रहे नंद के कुमार सखी | कदमों के डार सखी ना || झूला बना अलबेला, झूलै नंद के गदेला | हीरा मोती लगल रेशम की डोर सखी | कदमों के डार सखी ना ।| एक तो घेरे घटा काली | दूजे बुन्द पङे प्यारी| तीजे पुरूआ कै बहेला बयार सखी | कदमों की डार सखी ना ।| झूल झूल रहे नंद के कुमार सखी | कदमों की डार सखी ना ||sukhmangal singh 13:04, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
ड्योढी दईतरा बाबा कादिल से दईतरा बाबा के, ड्योढी पर शीश झुकाना होगा। कच्ची घानी का तेल, माथे पर मन से लगाना होगा । केहू खिलावे हलवा पुवा, जमके भोग लगाना होगा। जग्गू के माई का कहली, दारू मुर्गा चढाना होगा । वर्षों बीत गइल पूजा के, पंडित लेकर जाना होगा । माथे दर दउरी भरकर के, दउरल फूल सजाना होगा । बेटवन भूखे पेट बितावें, बाबा को दुलराना होगा । गाँव मुहल्ला हल्ला बोल, गीत बाबा का गाना होगा । शिखर चढि़ जब बोले दारु , झगडा़ तुम्हें छुड़ाना होगा । मुर्गा खा के तोंद तनी तो, हकीम तुम्हीं को लाना होगा। पंडित पोंगा पाले पड़ी तो, मंत्र वेद तुम्हें सुनाना होगा। लड़ी पंडित पावे बदे पैसा , लबदा लेकर दौड़ाना होगा। दिल से दईतरा बाबा के, ड्योढी पर शीश झुकाना होगा॥sukhmangal singh 15:12, 21 अक्टूबर 2013 (UTC)
तंद्राजब कभी भी शहर में मै बाहर आता यार। चील कौआ मुजिरिमो क़ा अदालत दिख जाता॥ जऩता जरजर जग जाहिर हाला हलाहल पी पीकर। भहरात फहरात हहरात ढ़हनात गते सार ॥ कमनीय कला कामना कोमल तंद्रा तारतार। भ्रष्टाचार ब्भिचार वलात्कार बलासे खिल जाता॥ बोझिल वालायेंबड़कन बकवाश बहार। अनगित अंगार झंझार भंभार धूआधार ॥ लंपट चंचल थहरत कुस काश अधियार । चमचमाती चूड़ियॉ कलाइयॉ बेजार ॥ मँगल मनमोहक मुक्ता मचली मनुहार । सो संवादों से संसद सिहरत सरमसार ॥ तरनि तरल तरंग तप्त जग मेंआग जलाकर । कलकल छलछल छवि छनती छनछन छनकर॥ झरझर झरझर झरते निर्झर अगनित हार । जब कभी भी शहर में मै बाहर आता यार ॥sukhmangal singh 14:25, 7 जून 2013 (UTC)
तुलसीकवि काशी कबीर पधारे, तुलसी तुला तस्वीर निखारे। रामानन्द रहीम पुकारे,मंगल मातु ममता निहारे। काशी कण-कण तुलसि पुकारे,तुलसी जीवन ज्योति हमारे। आशन ऊंचो ग्यान पसारे,तुलसी देव मतिराम पधारे। सौ!कविता कवीर निखारे, रविन्द्र! रोम रोम कवीर प्यारे। पलट पातीकबीर विचारे, तुलसी वेद पुरान विचारे।sukhmangal singh 14:56, 18 जून 2013 (UTC)
तू और मैंतुम्हें चाहिए गहने कपड़े,
हमें कलम और कागद।
तेरे महल सजे-धजे हैं,
मेरे गागर में सागर।
तू नौबत खाने में जा
जाकर हो जो सजती।
ठिकाने की बात भी,
सुहृद कभी ना करती।
टका पास ना होता गर,
फिर भी जी हो भरती।
छटा हुआ मैं कवि जो,
ठहरा चहल-पहल पहरा।
बड़े-बड़ों के छक्के छूटते,
जब चलता लहरा।
ठंढ़ा लोहा गरम निकला,
जब फौलादी ककहरा।
गांव-गांव नामઽदुगदुगी पीटना काम ना अपना। ठूठा सपना ! तू-तू मैं-मैं धाम ना अपना। तेवर बदल गया देख थाह लगाना काम अपना। कान फूकना कामन अपना कागजी घोड़ा सपना। दूर की बात जब कोई करता,
पानी-पानी कर पानी भरवाता।
कलयुग में मैं भी भरत नहीं,
जो राम-राम कहता जाता।sukhmangal singh 01:36, 21 सितंबर 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- नौबत खाना- माँगलिक वाजा,दुर्दशा, योग,हालत। कागद- पत्र,कागज। टका पास ना होता- पैसा पास न होने पर।
तेल का, शादी में गीतके मोरे बोआला लाली सरसोइया! के हो पेरावे कड़ुआ तेल। केकरि ककहियाँ मै मंगिया संवारबों! केकरे ही सेनुरे वियाह। बाबा मोरे बोवेलें लाली सरसोइया! सइयाँ पेरावें कड़ुआ तेल। भउजी ककहिया मैं मंगिया सवरबों! हरि जी के सेनुरे वियाह॥ (यह कार्यक्रम शादी के तीसरे दिन पहले होता है परन्तु कुछ जगह पाँचवें दिन पहले होता है इस शुभ सगुण दिन को पूर्वी भारत में मटमंगरा कहा जाता है )sukhmangal singh 15:12, 14 जून 2014 (UTC)
"धरती धिक्कारती"धरती माता हैं धिक्कारती? वह पुनि-पुनि उठ पुकारती। सभी नेक इंशानों धरा हों। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
बढ़ने लगा विलास वेग सा। आगे आओ !बचा लो मुझको। तुन्हें रहि-रहि कर ललकारती। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
जल नमक से रहती आच्छादित? हानि नहीं देती उपवन देती हूँ। नीचे जल ऊपर हिमतर रहती हूँ। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
विकरण को रोक तुझे जीवन देती। उत्तर-दક્ષિण विकशित अमरीका। पूरब उत्तर भारत देव सदृश महान। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
ग्रीकलैंड अटलांटिक पश्चिम में। मौन नाश विध्वंस घना अंधेरा। जल निधि में बन जलती रहती। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥
शोभा, कीर्ति दीप्ति आनंद अमरता। विकल वासना में पलती रहती हूँ। क्रुद्ध सिंधु कपटी काल में रहकर। धरती पुकारती और धिक्कारती॥sukhmangal singh 01:56, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
दर्शनदु:खमय संसार सदा, सदा वौदॢ पुकारे? अन्त: ग्यान , चार ही सम्प्रदाय बनाये, वाह्य सत्ता के अधीन , दु:खमय है सन्सार सदा, निर्माण अवस्था ही काटे॥sukhmangal singh 04:31, 12 जून 2013 (UTC)
दर्द रोटी कारोटी का दर्द बढ़त जात बड़े बड़े लोक पाल, छी छी छी छी करैं लोग छाती उकसी जात।
बार बार पाप का घेरा दु:ख धरे हे रहि जात, छोरि छोरि बंधन फेकत नैन मेरो तनि जात॥
धू धू धू धू जरि लोक रहिहैं ऐसो गर बिचार, चमक चादनी चुरैहैं चित बरखा न अधियार।
मुँह की लाली कामी- कामिनी- विजित- नर, थूकत खेखारत हौ बिचारत सगरो सकल संसार॥आगे-sukhmangal singh 02:19, 28 जुलाई 2014 (UTC)
दु:ख,सुख आते-जातेसंकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते जाते हैं। अवसाद जब जीवन भर देता,सम्बंधी भी घबराता है॥ निज गुस्सा शिर चढ़ बोले, घर-घर में कलह कराता है। मानों नींद को पर लग जाते, बैठे-बैठे खाना आता है॥ बातेंं अपनी मनवाने मेंं, जानो जीवन भर जाता है। संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥ घर मुहल्ला रूठा-रूठा सा, अपने में मन मद खाता है। कुछ भी अपने पास नहींं ज्योंं,जी अन्दर-अन्दर घबराता है॥ कभी-कभी मन में पल जाता, कौन पाप हमको खाता है। भव भूत-प्रेत को चाव चढ़े, भाव अच्छत चंदन बढ़ जाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥ मन में नव अभिलाषा झिलमिल, झंकृत काया कर जाती है। शोक युक्त निर्जन नव पथ पर,खिल खिल विकल हंसी आती है॥ रजनी किस कोने छुप बैठी, मधुर जागरण लुट जाता है। संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,शीतल प्राण बल खाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥ कपटि व्याकुल आलिंगन करते,जीवन की चंचलता जाती है। आशा कोमलता तन्तु सा दिखता,नारी अपनी कह जाती है॥ वह नीड़ बना छुट जायेगा, आकुल भीड़ छट जाती है । मन परवस हो जाता क्यों,माना ईश्वर रुठ जाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥ फिर भी रहता वह सर्वत्र सुलभ,स्थिरॐप्रतिष्ठा वैसे दे जाता है। माता-पिता स्व कर्मों के फल,हार उदार हृदय पहनाता है॥ संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,शीतल प्राण बल खाता है। संकट का दौड़ पड़े ना किसी पे,दु:ख सुख आते- जाते हैं॥-2॥sukhmangal singh 13:12, 12 मई 2014 (UTC)
देवी वंदनातेरे द्वार खङा एक योगी | लेकर खप्पर खङा वह भोगी || मंगल से बना वियोगी | तेरे द्वार खङा एक योगी || तू शांत पङी क्यों भोली मैया | तेरे द्वार आया है कऩ्हैया ? भर दे अब तू झोली मैया | तेरे द्वार खङा एक योगी || तू तो माँ ममता की जनऩी | सभी की माँ तू ही भरणी || जन्म धन्य हो जाये तरणी | तेरे द्वार खङा एक योगी || जोगी को भी भाये शरणी | अन धन पुष्प चढाऊ जननी || मधुर गीत गुन गाऊ तरऩी | तेरे द्वार खङा एक योगी ||singh 04:15, 14 June 2013 (UTC)
देश के खातिर लड़ने वालोंउठो- उठो! देश के रखवालों? कलम उठालो हिम्मत वालों॥ उलझी गुत्थी सुलझाने वालों। जीवन हो धन्य बनाने वालों॥ देश की लाज बचाने वालों। माथे माटी लगाने वालों॥ माता पर मर मिटने वालों। इतिहासमें नाम लिखाने वालों॥ नव जीवन को जगाने वालों। शिर रहे ऊँचा उढाने वालों॥ दुश्मन को मात दिलाने वालों। देश का नाम बढ़ाने वालों॥ सीना चौड़ा करना होगा? बुराई से बढ़! लड़ना होगा॥ देश के खातिर लड़ने वालों। नाम देश लें मरने वालों॥ बढ़ो जवानों बख्तर वालों। सुन्दर साफ मैदान बनादो॥ दुश्मनकी छाती चढ़कर हिलादो॥ मुझ से पंगा मतलो जा डोलो। बन्द पड़ा़ मुख अब मत खोलो॥sukhmangal singh 04:10, 27 सितंबर 2014 (UTC)
देश की लाज बचा-नाम देश का बढ़ाने वाले, माँ का गौरव गाने वाले।
दिखावे के होईबढ आगे जहां को दिखावय के होई । देश के बहादुर देश बचावे के होई ॥ सब मिलकर झंडा फहरावे के होई । झंडा आपन जहां में लहरावे केहोई ॥ बुजुर्गन की बात पिर लावे के होई । खर पतवार साफ करावे के होई ॥ आपन आंगन बहुत बड़ा दिखावे के होई । नागफनी व जूही फूल सुहांवे के होई ॥ का इ ठहरनै देश रક્ષक बतावे के होई । मंगल का इनहू के का सिखावे के होई ॥ लसल लाल लंगोटी लस्कर भगावे के होई। लहल लंगोटी टंगल झंडा फहरावे के होई ॥ धोवल धोती मुर्री बाध खुटियावे के होई । झंडा आपन तिरंगा जहां में फहरावे के होई॥ बढ आगे जहां को दिकावे के होई । देश के बहादुर देश बचावे के होई ॥sukhmangal singh 13:10, 6 दिसम्बर 2013 (UTC)
दिन-रात्रि रहें कैसेरघुनाथ रहो तू साथ हमारे। हृदय में तेरा वास रहे माँ पर नित आस रहे माँ का नित साथ रहे। रघुनाथ रहो तू साथ हमारे। दरख्त सभी रहे गृह में रघुनाथ रहो तू साथ हमारे। + + + सूर्य शौर्य लिए लालिमा भजन यजन नित होता हो। नियम बद्ध हम रहें सदा रिद्धि- सिद्धि नित साथ रहे। भोले मेरे पास सदा रघुनाथ रहो तू साथ हमारे। + + + पवन पुष्प संग-संग बहे चिड़िया चह-चह करें सदा किलकारी करतल ध्वनि हो नन्हें बच्चे साथ सदा। हनुमत रક્ષા करें सदा 'मंगल' रघुनाथ के साथ रहो॥sukhmangal singh 02:48, 19 जुलाई 2014 (UTC)
दुर्गा जी का मेला बा(कजरी)पियवा रेक्सा मँगायदा, अबहिन बेला बा।। दुर्गा जी का मेला बा ना॥ गइनी देवी जी के थान, लेहनी रोरी अच्छत पान, देवी कुशल से राखा, पियवा घर अकेला बा। दुर्गा जी का मेला बा ना॥ पियवा रेक्सा मँगायदा, अबहिन बेला बा।। गइनी देवी जी के थान, लेहनी रोरी अच्छत पान, देवी कुशल से राखा, बचवा घर अकेला बा। दुर्गा जी का मेला बा ना॥sukhmangal singh 15:09, 15 जुलाई 2014 (UTC)
दिलवरकाम कितना भी कठिन हो़, मनुज जो चाह दे! पथ पर पड़े काँटे जटिल, पल भर में ढाह दे । दुनिया दागी गमगीन , जि़न्दा दिलवर ला दे ।। है कोई इन्सा जहाँ में, आइना! मुहब्बत की गीत सुना दे। दिल पे पत्थर रख बैठा जहां, महौल खुशनुमा बना दे। शहर आइना निहार बैघा, कोइ तो चिराग जला दे। शान्ति बीरान हुई जुल्म बहुत, यारी पक्की करा दे। सूख गई स्याह गुलशन की, महफिल का रंग जमा दे॥sukhmangal singh 23:22, 4 अगस्त 2014 (UTC)
दीप जलने दीजिएजाति पाति से ऊपर अपना धर्म प्यारा । अनजानो के हाथ लगा खिचा किनारा ।। जाने कैसे- कैसे परदेश में आ गये । जैसे शेर के बच्चे देश में आ गये ॥ दूरंगी दुनिया ऐसा इकरंग में ढल गई । घूघट के नकाब डगर पर जा खुल गये।। सूखी रोटी भी जिसे खाने को ना मिली । तानजेब की धोती उसको किस काम की ॥ पाल पोष जिसको पहुचाया सड़क पार था । लुटेरे डाकू की भाति व्याकरण ले खड़ा था ॥ गाव जले शहर जले देश जले परदेश जले । गलियों में आज कल इ जलाशय हो गया ॥ नगर गढे शहर गढे देश गढे परदेश गढे । गली मोहल्ला कबका छतीशगढ हो गया ॥ बुझते दीप को तेजी से जलने दीजिए । तिलक नया ! उजाले को मचलने दीजिए॥sukhmangal singh 03:14, 6 दिसम्बर 2013 (UTC)
नव गीत सुना देंगेजापान की वादी में,उन्हें घुमाय देंगे। आने दो फरमान,आस्ट्रेलिया दिखा देंगे।। आज तो देखो छठ,दो प्रेमपूर्वक अर्घ। मनोकामनाएं पूर्ण,सूर्य भगवान करेंगे।। शांति सम्मान लेखे,वैજ્ઞાनिक ક્ષमता देखें। दुनिया की ताकत मुझमें समाधानડ देखें।। सूर भेष सो शूर नहिं,सिंह स्यार नहिं देखें। बाघ सिंहक छाड़िके,छाग बलिदान सबदेते।। बचन संवारे बोलियो,नव गीत सुना देंगे। जापान की वादी में,उन्हें घुमाय देंगे।।sukhmangal singh 23:50, 28 अक्टूबर 2014 (UTC)
नन्दलाल (गारी)तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी! सब तो कहला तोहरे घरिला भरले आवै रामा! भरले घरिलवा जगती पै पटकी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी॥ तब तो कहेला तुम्हरी नैया पार लगैबे रामा! डूबत नैया बिचवा में नैया त अटकी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी। तब तो कहेला तोहरा अंग नाहीं छुइबै रामा? बारी उमरिया मोरी झुलनिया में उलझी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी। जनम लिये देवकी जी की कोखिया रामा! जाय के जसोदा के गोदिया में समटी! तू तो नन्दलाल जनमवा कै कपटी॥sukhmangal singh 14:20, 7 दिसम्बर 2013 (UTC)
नदियों मे गंगानटवर नागर नंदा भजा हो मन, गोविंदा।।2॥
तुम हो नागर तुम ही नन्दा, तुम ही परमान्दा। भजा हो मन,गोविन्दा॥2॥
सब देवन में कृष्ण बडे़ हैं, तारो बिच चन्दा, भजा हो मन गोविन्दा॥2॥
सब सखियन मा राधा बडी़ हैं, जैसे नदियन मा गंगा, भजा मन गोविन्दा।2॥sukhmangal singh 04:32, 8 जून 2013 (UTC)
नारी का सम्मान करोनारी जाति का जहां में करना होगा सम्मान । तन को कष्ट भले हो सह लीजै अपमान॥ सह लीजै अपमान माँ का रखना है सम्मान, सुन्दर सफल जीवन माँ करतीसब कल्यान ।। मान और सम्मान बचाना हम सबकी जिम्मेदारी । ममता का पावन आँचल गाता गीत पुकार हमारी ॥ मनमानी माथे बढी- चढी जनता की का लाचारी । सह लीजै अपमान शहर ज्यों -त्यों स्वेच्छाचारी ॥ नारी को का समझ बैठा स्वेच्छाचारी बलवान । दहल उठेगी माँ की ममता जबकैसे होगा कल्यान॥ कैसे होगा कल्यान जहां को कौन किसे बतावे । मर्यादा मिट! मरी मानवता! जहां को कौन सिखावे ॥ वही फलक वही झंकार वही शक्ति मां की प्यारी । दुश्मन को निज मात दिखाती शिव की है कल्याणी ॥ शिष्ट शराफतशान बढी-चढी कोलाहल का भारी । अनगिन अधिकार भोग का लोलुप अत्याचारी ॥ नाहक नारी पर जहाँ जब जो कोई हाथ उठायेगा । मा की ममता दहल -दहल कर मानव गिर जायेगा ॥sukhmangal singh 03:36, 7 दिसम्बर 2013 (UTC)
निरानन्द दृष्टिआलोक अप्सरा तन-मन-धन ,धरा धर नाहक ना मर जाओ ।
जन जीवन मानव मानवता ,मन से परिपूर्ण बनाओ ॥
विधु वदन खिले जीवन जीवन्त ,जनम नेकु ना इसे गवाओ ।
मिटि मिथ्या प्रगति प्रचार मादक ,न हत्या के परचम लहराओ ।।
उड़ते अंकुर अधखिली कली ,न कस्तूरी चितवन पर जाओ ।
मोहित महोत्सव मनभावन ,आवरण अकिन्चन न टकराओ ।।
धन काले कलकी कठिन कमा ई,जाच साल तीस पर न जाओ ।
कानूनी बदलाव बढ़ल बिगड़ी बहुरंगी बाजार बनाओ ॥
हम भी लुटते तुम भी लुटो ना अपने-अपने अंकुश लाओ ।
जो! हो! आसमान आँचल आँगन रबड़ी रेवड़ी बाँट-2 खाओ॥
ठेकेदारी ठगी ठठोली ,रहजन रहबर बन दिखलाओ ।
चिन्ता दूर करो तुम मनकी , जीवन का पथ सुगम बनाओ ॥
वारूदों पर नीव जो उनकी , तूफानो में उन्हे उड़ाओ ।
वक्त को भाँपो और बदलकर ,और संभलकर नींद उड़ादो ॥sukhmangal singh 05:07, 12 जनवरी 2014 (UTC)
नियम बदलते रोज?अफरा तफरी मची जहां में, जंग जन जन चली जुबानी। वे जो दिल आया कह जाते, जोखिम जो भी हो सह जाते। रोज बदलते नियम नयेपुराने। नई सभ्यता नये जमाने। मंत्री- संत्री मिल जुल नाचे। जा हिल जंग जेल खाचे। मिल बंदर वाटे धन खजाने। लूट मची ઙ तहखाने।।sukhmangal singh 08:56, 22 जून 2013 (UTC)
न्यारी भाभीअंग ना लगिहा भंग न हो, संग रहें सब होली में। विहुआ विछड़े नीरव पिछड़े, साथी साथ हो होली में॥ ૠतु वसंत को राग रंग हो,रति पति तीर चले होली में? रूठ चली अलवेली तनमन,खड़ी पड़ी अकेली होली में॥ नारि नवेली मधु ૠतु झेली अकेली खड़ी सहेली होली में। जीजा- साली फफती भरते, संगीत सहेली सुरीली होलीमें॥ देवर भाभी भौचक भाँपत, सूरमा-पुरखे- पुरवा होली में। दिनभर देवरानी की आँखें देखी,भाभी न्यारी लागे होली में॥ भाभी भक्त भाव भाँप बोली सुनो विहुआ नीरव सब होली में। लाल गुलाल की होली हो हो! सद्भभाव प्रेम फैलाओ होली में॥sukhmangal singh 05:07, 21 जून 2014 (UTC) शव्दार्थ:- विहुआ-साथ चलने वाले। रति-प्रेम, अनुराग। पति-दूल्हा,स्वामी,मर्यादा,प्रतिष्ठा,सूरमा-योद्धा,वीर।
परछाइयाँदे रही पलके प्रपन्चों से भरी तनहाइयाँ। आँख आसुओं से लबालब बन्धु परछाइयाँ। वह कौन कब समझेगा हृदय की गहराइयाँ। आग सी ज्वाला लिये मीत की तनहाइयाँ। पारखी हीरे जवाहर की रही परछाइयाँ। गीत बोया नही आकाश की गहराइयाँ काग चुगते चख्ते दाने शेर की तनहाइयाँ शानों शौकत में खड़े बेड़ा गड़क अमराइयाँ॥sukhmangal singh 04:04, 13 जून 2013 (UTC)
पावस पर्वतपो भूमि जो धरा विमल, वहीं कहीं अमृत धारा। किंचित कुछ कलुसित मानव, बहता नया किनारा। पतित पावनी तह, अनगिन ॠषि मुनि सारा। कर्म सुकर्म मुक्ति दिलाती,बड़बुद्धि सुबुद्धि सहारा। विद् विश्वविदित धरा धवल,ललित ललामसे लथपथ। लोक लाज लपझप आंगन,मन माँग मधुमय सत्पथ। सत् सास्वत संकल्प सजीव, साहित्य सरल सहारा। मुदित मनोहर मंगल छवि, कर कवि लेखन इसारा। पावस पर्व पुनीत पीयूष, हरिहर हरषि निहार। बौद्ध बंद सुखद सम्मोहन, पावस पियूष पुकार।।sukhmangal singh 16:38, 24 जून 2013 (UTC)
पीताम्बर बड़थ्वाल=क्यों देश इतना आज हलकान हो रहा है। एक छोड़ दूजे के वास्ते कुर्वान कर रहा॥ जिन्दगी तो एक सी सबकी हुआ करती। फिर भेद भाव ले क्यों मुल्तान हो रहा॥ संकीर्णता में हमने खुद खोया बहुत है। संत साहित्य का शिषर बीरान हो रहा॥
+ + + हिंदी का मान बढ़ाने,निकला संत पीताम्बर। विद्या प्राणायाम पारखी,तंत्र - मंत्र साधना कर॥ झेला झंझावातों को पर,हिंदी का मान बढ़ाया। विश्वम्भरड पीताम्बर अम्बर , साहित्य सुझाया॥ अंग्रेजी - अंग्रेज देश पर, नौकरी ना भरमाया॥ नहीं काम 'निर्गुण' पे होता,'सगुण' सबका सहारा। भारत अंग्रेजों की दासी,संत साहित्य में छाई उदासी॥ गढ़वाली आया ललकारा,अमर कोश का જ્ઞાन निखारा॥sukhmangal singh 16:49, 31 जुलाई 2014 (UTC)
पुकारउठो बहादुर उठो समर सुनशान पड़ा है। लुटते देखी माँ की लाज बलिदानी बलिदान खड़़ा है। उठो बहादुर उठो-------॥ कुर्बानी की जंग है लड़़नी दुश्मन तो ललकार रहा है। फौलादी जंगी बेड़़ा को तुम भी तो तैयार करो, अड़ा है। उठो बहादुर उठो------ ।। खड़ा शहीदी जत्था भी तुमको आज पुकार रहा है। त्याग तपस्या बलिदानोंं का यहीं रहा है केन्द्र बिन्दु? मंगल आज पुकार रहा है। उठो बहादुर उठो ------॥ चारो तरफ बिछी देख लाशों की जब ढे़र झुकने देना कभी ना अब भारत माँ का शीश। उठो बहादुर उठो -------॥ तपो भूमि हर ग्राम हमारे कवि की वाणी गाती है। लोरी गाती शाम को माता गाय हमारी प्यारी है। कहाँ सिंह बने खिलौने, बलिदानी बलिदान खड़ा है। उठो बहादुर उठो------- ।।sukhmangal singh 15:47, 20 अगस्त 2013 (UTC)
पाठक जीपाठक जी को हुआ शक, अपनी ही पत्नी पर, पत्नी हमारी है? गम हुआ,बी एच यू चले।। जाने क्यौ हम पहुच गये, मिलन हुआ हमारा सपरिवार, पाठक जी से॥ हमने कहा पाठक जी प्रणाम! पाठक जी सहमे बोले प्रणाम? हमने कहा हमे पता है,पाठक जी! डी एन ए कराने आप आये है ? पाठक जी झल्लाये मन ही मन मुस्कराये, का सारे बच्चे आप के हैं। पाठक जी को होश आया, मोह हुआ भंग, पाठक जी आए संग-संग ॥05:39, 12 जून 2013 (UTC)
पानखुद खाते हो पान- मसाला पान से होता है अभिमान पान में पड़ा केशर लाला पान जान सांसत में डाला॥ थुकता बारम्बार निराला ज्यों जीवन करता मतवाला। खुसी छिन रही ओ काला। सुर-सुर मागे हर दिन आला॥ पान बढ़ावत मान-शान जन-जन जानत अજ્ઞાन-જ્ઞાन रोश से शीश तन तन जाला करता है अभिमान नादानी॥ घर घर में जब सब फटकारें राही बटोही बृद्ध जब ललकारें आफिस-आफिस सब दुदकारें पीच पड़ी ऊपर तो पोछए काल बुलाते बुत का प्यारा, पान चबाता खुद को सारा मंगल कर लो थोड़ा ध्यान। वर्ना बच्चा होंगे बे जान॥sukhmangal singh 14:20, 18 जून 2014 (UTC)
पिचकारिहोली खेलै रघुबीरा अवध में, होली---॥2॥ होली खेलै रघुबीरा। केकरे हाथ कनक पिचकरी, केकरे हाथ अबीरा॥ अवध में होली खेलै रघुबीरा॥ होली खेलै रघुबीरा। राम के हाथ कनक पिचकारी , लछिमन के हाथ अबीरा । अवध में होली खेलै रघुबीरा॥ होली खेलै रघुबीरा ---॥2॥sukhmangal singh 23:41, 4 अगस्त 2014 (UTC)
पीपल की छाहंजानें कहाँ चला दिल,
खुले आसमान में । आना पड़ेगा एक दिन, पतझड़ की ठाँव में । लगता नहीं अब दिल, उजड़े बिरान में । मिलता जहां था दिल, पीपल की छाँव में ॥sukhmangal singh 02:47, 12 अप्रैल 2014 (UTC)
पुष्टि करताक्रिमि नाशक शिला पट्ट में जिसे इन्द्र की कहते हैं। चक्की में चना चूर होता क्रिमि का नाश करू वैसे।।-1 रक्त प्रभावित जाल समान अदृश्य दृश्य कृमि नाश करता।-2 सभी नष्ट हो सूख मंत्तौषधि ते क्रिमि कुप्रभावी।-3 आँत सिर पसलियों के क्रिमि मंगल मंत्रो के बल नष्ट।-4 जैसे भी प्रविष्ट कृमि पर्वत बन औषधि पशु में। पुष्टि रोग नष्ट किया मंगल मंत्रोषधि से।।-5{ कविता)sukhmangal singh 02:44, 17 जून 2013 (UTC)
प्रेमी माँ लीनजन्म जग में जगदीश्वर दीन्ह। भूल गये पूजा पाठ ज्यों मीन ॥ आशा त्यागें नेकु बन दीन । प्यार भटकि पथ हींन ।। प्रीयतम सेवा छोड़े प्रेमी मा लीन । आकुल-ब्याकुल उन्माद बाजे बीन ।। कानाफूसी नई नवेली कीन । चिन्ता निज चिता भला छेम हीन ।। कल्पना छन-छन छलकती જ્ઞાन दीन । आभा अधर पर मंद मुस्कान लीन ।।sukhmangal singh 15:44, 7 सितंबर 2013 (UTC)
प्रेमतू सुन्दर, तेरा दिल सुन्दर, तेरा मन सुन्दर हो जाये। तू कुछ कर जाये॥2॥ प्रेम मुहब्बत की, अबिरल धारा बरसाये, तू बरसाये, तो तू, कुछ कर जाये-2।।sukhmangal singh 14:56, 18 जून 2013 (UTC)
पैजनियाँमातु पिता व वन्धु सखा जब । मृत्यु लोक में रह नाम करें सब॥ लोक कर्म हेतु देह धरे जब। शक्ति रूप गायत्री पूजो तब॥ सूर्य श्रृष्टि सावित्री पूजो अब। ब्रह्म राघव भवभार मिटायेंगे॥ कमलनैन माँ को रिझायेंगे॥2॥ उद्धव जी को योग व्रज भावत ना जब। निर्गुण ब्रह्म की बतिया सुनावत न तब॥ प्रेम रस में भीगे तैयार योगिनियाँ सब। बाँध बाँधि पैजनियाँ बजाइबे ना अब॥sukhmangal singh 15:00, 19 अगस्त 2013 (UTC)
पोटली गिफ्ट की?घुला जहर जो जाति- पांति का समझाएगा कौन ? हो हो तो नाम विकाश का ठेगा दिखाएगा कौन । हवा हवाई बातें गर जो महगाई घटाएगा कौन ? हकीकत खूटी टंगी मुजिरमों को रिझाएगा कौन। आरક્ષण का लाभ किसको मिला बताएगा कौन ? आम खास होते हैं तो समझाएगा कौन । हो! भ्रष्टाचारी घोड़ा दौड़ा दौड़ कराएगा कौन ? आम का खजाना सारा गिफ्ट लुटाएगा कौन । बेकारी मुह बाए खड़ी बचपन खिलाएगा कौन ? मीडिया पर सब बरसते तो भान कराएगा कौन । भटके ना राजनीति राजनीतिજ્ઞ कोसिखाएगा कौन ? माई मना कइलीं भाषण सुनेके पाठ पढाएगा कौन ।sukhmangal singh 03:28, 4 मार्च 2014 (UTC)
पंडितपँडित वही जो જ્ઞાन को जाने।
જ્ઞાन जो जानि विधान को मानै॥
पॅडित वही जो धर्म कर्म को जानै।
व़ह्म जानि परमारथ ठानै॥ singh 03:57, 14 June 2013 (UTC)
प्रीति होता मितवाअरे! नृत्य होता रहा मितवा।
वह सोहर होता रहा मितवा॥
उस दौर में यह यकी मानो।
न छलका मदिरालयमितवा॥
नव गीत होता रहा मितवा।
वह प्रीत होता रहा मितवा॥sukhmangal singh 11:49, 20 जुलाई 2014 (UTC)
फूल का रंगआओ तन-मन से 'मंगल', मिल-जुल कुछ उपाय करें। बदबू दार गलियों में, ले फूल गुलजार करें। रंग रचें रच फूलों से, केमिकल किनार करें। फूल से ही प्यार करें, देश पर विचार करें। भाई-भाई मिल कर, होली में प्यार करें॥ आओ तन-मन से मंगल, मिल-जुल कुछ उपाय करें॥ sukhmangal singh 02:15, 19 मार्च 2014 (UTC)
फूस का महलफूस को महफिल अब गिनाते ना चल। वह झोपड़ी में आग लगाते चले गये॥ दिखाते रहे सदा आलीशान मकान जो। हवा वही ऐसी कि झोपड़ी उजड़ गये॥ पूछते फिरते जिसे अपना समझ उन्हें। समय से वह महफिल में चले गये॥ अंधड़ और आँधियाें में मूल उखड़ गये। जन्नते मशरूर जो हैरत में आ गये॥117.199.185.185 (वार्ता) 06:02, 16 अगस्त 2014 (UTC) शव्दार्थ;-जन्नत-स्वर्ग। मसरूर-लिप्त। महफि़ल-नज्ज़म,मजलिस,सभा,जलसा,नाचना गाना होने का स्थान।
बचपन में गाँवहम तेरा सम्मान करेंगे । ક્ષેत्र अयोध्या काज करेंगे॥ हे!हो! हम को जीने दो । आगे बढ़कर नाम करेंगे ॥
ग्राम हमारा कोटिया प्यारा । मिलजुल रहती जनता सारी॥ सरजू मेरी नदिया न्यारी । पुरखों का कल्यान करेगी ॥
वही माटी क महक महकती । पुरखों का सहारा बनती ॥ महुआ फूले आँगन सूंधति । छबि नैनबैन गदगद विहसति॥
चंडी माँ चाणीपुर रहतीं । सरजू पક્ષિमसेपूरब बहतीं ॥ वालीपुर एक ग्राम दुलारा । कोटिया करेला का सहारा ॥
पांण्डेय पुरवा पग पर है । सिकरौरा सीवान हमारा ॥ रानीमऊ रात भर जग कर । करता था गुणगान हमारा ॥
है बहती एक नदी दક્ષિण में । सरजू उत्तर कलकल करती ॥ साधु संत का धाम सदा से । कोटिया उत्तम ग्राम सदा से ।।
सेमरा में मिश्रा सब रहते । एक राय वे नहीं पनपते ॥ स्पताल और कन्या विद्यालय । मिडिल जहाँ से हम थे पढ़ते ॥
नहर का अंतिम छोर वहीं है । बिन पानी की डोर वही है ॥ फल फूल छबि छटा मनोरम। बन उपवन घनश्याम कहेंगे॥ हम तेरा सम्मान करेंगे । ક્ષેत्र अयोध्या धाम कहेंगे॥ sukhmangal singh 13:35, 14 अप्रैल 2014 (UTC)
बरसात करा के न जाइएवर्षों टूटी झोपड़ी,
सबेरे गुसैयाँ महल बना के न जा ।
मौसम गर न आवे,
कृत्रिम बरसात करवा के न जा ।
साधन सब संदूक में,
इन नयनों को सुखा के न जा ।
डग डूबा हृदय मरुस्थल,
आँसू नयन में ढ़रका के न जा ।
सखिया चढे़ पहाड़,
गुलगुले पंचर करा के न जा ।
मौसम सदाबहार बह,
रंग रोदन करा के न जा।
बे मौसम खिली कलियाँ ,
गलियाँ सँवार के न जा ।
जैसा दाम वैसा काम ,
जौहर दिखा-दिखा के न जा ।
अंधाधुंध उड़ान चढ़े,
टकसाल लुटा लुटा के न जा।
त्योरी चढ़ी चाँद,
मुखड़ा दिखा- दिखा के न जा ।
दागी गर जहाँ के,
सस्ता वेद थमा के न जा ।
महलेंं आलीशान बढ़े,
सर सड़क बना- बना के न जा ।
झोली में फकीर के दो आना,
उबला भात फैला के न जा ।
मूद रहीं पलकें तपन ,
मूसला धार बरसात बरपाके न जा।
कुछ खास अपने,
रेवड़ी पुनि थमा के न जा।
फारम हाउस भरा अन्न,
मुट्ठी भर दाना लुटा के न जा॥sukhmangal singh 12:00, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
शव्दार्थ:- बरसात-बर+सात,बर-किसी देवता या बड़े से माँगा हुआ मनोरथ,पति या दूल्हा।
सात- पाँच और दो,सात पाँच=चालाकी,सात राजाओं की साજ્ઞી देना,किसी बात की सत्यता- पर बहुत जोर देना।
बरात विदाई गीतदल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजयनी दुर्गा मइया,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजै न डिहबाबा,,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजयनी समय माई,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजै न ग्राम देवता,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजयनी काली माई,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजयनी सीतला माई,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! दलवा त साजै न परगहन बाबा,जेकर सेवक बियाहन जाई। दलवा त साजै न ग्राम देवता,जेकर सेवक बियाहन जाई। दल साजन-साजन होई रे! नोट:-अपने घर से दूल्हा शादी में जाते हुए देव स्थानों का दर्शन करता है।sukhmangal singh 23:33, 16 जून 2014 (UTC)
बारात परिछन- गीतराम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला। अरे! उपरही सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन॥ धावा तुहीं नउआ से बरिया अवध पुर के पण्डित। राम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला। अरे!उपरही सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन।2॥ पण्डित ૠषि आगे खबर जनावा कहाँ दल उतरी? ऊँच नगर पुर पाटन अउर बाँसे बा छाजन,अरे! झिर-झिर बहेले बयार वहीं दल उतरी। झिने झिने कपड़ा पहिनें सासु त राम के परिछन चलें। राम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला।अरे! उपरही सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन॥ झुन झुन झुमका सासु के झुनके त राम के परिछन चलें। अरे! मैं केकर आरती उतारूँ कवन बर सुन्दर! साँवरे बर न हउअय राम त पीला पीताम्बर ओढ़ले। अरे! मैं उनहीं के आरती उतारूँ उहै बर सुन्दर। राम जी चले न विवाहन रुन झुन बाजेला। अरे!ऊपर सगुन मड़राला हमहूँ जइबें व्याहन।2॥ शव्दार्थ:-उपराही- ऊपर, बढ़कर, श्रेष्ठ। ऊँच- ऊँचे स्थान में, ऊँचाई पर,श्रेष्ठ। परिछन-परछन,परिछे।
झिर झिर-मंद मंद, धीरे धीरे। बर- जिसका विवाह हो रहा हो। उहै- वही। केकरे-किसका।
नोट- दूल्हे की वारात दुल्हन के घर द्वारपूजा पर पहुँचने पर गीत।sukhmangal singh 01:49, 17 जून 2014 (UTC)
बारिशचम - चम चमके चाँदनी तारे। झिलमिल झिलमिल बदरा सारे॥ झलमल झलमल झकरी झगरी सारी। झमक झमक झमके झकझोरे क्यारी॥ अमराइयाँ मँहके रहि रहि पवन प्यारे। दम - दम दमके नाद नद नारे॥ जय जय नगाङे ढोल बजे तारे। फुदुक - फुदुक चहके मेढ़क सारे॥singh 04:17, 14 June 2013 (UTC)
बाजारू होलीदान-दક્ષિणा ले लेने दो,चंदन-टीका कर लेने दो। मन था फीका फट लेने दो,होलीबोली कह लेने दो॥ हल्ला-गुल्र्ला कर लेने दो,भला बुरा कह लेने दो। खुल्लम-खुल्ला कर लेने दो,होली बोली कह लेने दो॥ वदन ढका है खुलजाने दो,भरा पसीना ब।वह जाने दो। अल्लहड़ भोदु बन जाने दो,होली बोली कह लेने दो॥ सूनी संस्कृति सल जाने दो,दिल दर्दभरा वह जाने दो। नन्हीं संस्कृति पल जाने दो, होली बोली कह लेने दो॥sukhmangal singh 02:19, 27 जून 2013 (UTC)
इतिहास का पन्ना चौड़ा करलो'हम आप के स्वागत का कर रहे इंतजार नरेंद्र!' को दिया आँस्ट्रेलिया ने शुभ संदेश श्री टोनी एबाँट॥ जी20 शिखर सम्मेलन के एजेंडे र मेजवान संदेश! कितना मीठा-प्यारा शुभ न्यारा नारा इसे पहिचानो॥ भारत-आँस्ट्रेलिया मनोहर देश जहाँ को जहाँ जानो। धन्यवाद भी तुम्हें आँस्ट्रेलिया प्यार हमारा मानो॥ अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाऊँगा जहां-जहां जानो। चौड़ा कर इतिहास पन्ना सम्मेलन कामयाब मानो॥ कैनबरा बिस्बेन सिडनी औ मेलबोर्नका सारा दायरा। सद्भाव-प्रेम-विश्ववन्धुत्व बढ़ाएगा जन-जन में दौरा॥ मोदी के विजन को सहयोग बढ़ाने का एलान किया। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामाने सहयोग दिया॥ पाक समर्थक राजनयिक अमेरिका के घर छापामारी। हो चला भारत विरोधी एजेंट राबिन राफेल तकरारी॥ थी पाकिस्तान-अफगानिस्तान की बरिष्ठ सलाहकारी। मानवता का ज़ज्बा नहीं जिसमें वही होगा निठारी॥ आँधी बही विदेश के क्राँति उन्ही सी गाँधी छा गए। शिमोन पेरेज इजराइलबोले नरेन्द्र गाँधी सा आगए॥ पूर्व राष्ट्रपति नोबेल विजेताकहे नेहरू के गुणसमा गये। धन्य प्रेस फाउंडेशन और अनंतसेन्टर पेरेज कह गये॥ पहली क्राँति भारत के महात्मा गाँधी जी ने की बोले। दूसरी क्राँति जवाहरलाल नेहरू भारत स्थाई बना गये॥ बहुत अधिक समझ अनुभव मोदी में बोले खुलकर। और तीसरी क्राँति मैने की शिमोन पेरेज जी कह गए॥औरsukhmangal singh 04:23, 8 नवम्बर 2014 (UTC)
बहिनों की पुकारबढ़े न भ्रष्टाचार अत्याचार जग उबार । बुद्धि- बल बिलसित जन्म मनुज तुम्हार ॥ भाषा सिखा हृदय अद्भुत हो बढ़े निखार । कृपण बन सानन्द समेटे स्वयं करें सुधार ।। ज्वलित ज्वलंत दु:ख दावानल कहें विचार । सोते जगते खाते पीते रोते हंसते बढ़े निखार॥ त्राहि-त्राहि करता हाहाकार नारी दु:ख अपार। छल में क्रान्ति भीषण भ्रम भाषण में व्यापार॥ कुलषित कर कलयुग काँपता देख - दुराचार। मुक्के मार- मार कर दुराचार नीचे देहु गिरा॥ चिल्लात बिलबिलात अकुलात अति अत्याचार। पिछली पगडंडी पकड़ी न्याय करे जो गुहार ।। लखी लेखनी बढ़ी बजार भ्रष्टाचार निहार। एक-एक कर नव दुर्ग अनेकों बढे़ चढे़ विचार॥ साम- दाम अरु दंड भेद दुर्गम दु:ख दुधार । उन अंगरेजों का याद कराता भारी भार ॥ वीर बहादुर बाँकुरे हिंद के कर लेकर तलवार। त्राहि-त्राहि जहाँ में माँ ममता की चित्कार ॥ सबका साहस बढ़ा खुली साँस बही बयार। जीवन जीने की जतन जुगति भूमि हमार ॥ व्रह्म भोज तर्पण अर्पण नूतन दिखा निखार । गाँव शहर लहर बहिनों का मिला अधिकार ॥ कहा कही कहन बड़न की धोखा दिया निकार।। छेड़-छाड़ तलवार तान छोड़ शक्ति सघन संचार ॥ होश उड़े थे अच्छे-अच्छों के कवि का बन्द विचार। हक से हार जीत जन जीवन हक बहनों की पुकार ॥sukhmangal singh 16:22, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
बहिनों की पुकार-2कोलाहल कौतूहल कैसा,
सूनी सीमा संग्राम को कर॥
भवानी विश्राम न कर।
साधारण वाणी मन जैसा,
विद्वज्जन संग्राम न कर।
बीर विपुल सुताएँ बहना़,
बलिदानी विश्राम न कर।
अपने सपने टांगें खूँटी,
कोलाहल कौतूहल कैसा,
सूनी सीमा संग्राम को कर॥sukhmangal singh 01:00, 5 अगस्त 2014 (UTC)
बदरंगगुन गुन करते बहते शब्द ,कानो को हरदम। खाने को कब दोगे, मुट्ठी भर तू अन्न॥ तुम्ही बताओ बढ़कर क्यों जगमग राहे सन्न॥ युगों- युगों से होता कब शोषण होगा बंद॥15:15, 15 June 2013 (UTC)singh
भद्रभक्ति और कर। भक्ति और योग॥ भक्ति और राग । भक्ति और वाद ॥ भक्ति और सूत्र । भद्र और भद्र ॥ भद्र और क । भद्र और कपिल॥ भद्र और काय । भद्र और काली॥sukhmangal singh 03:55, 4 जून 2013 (UTC)
भारत हमारा प्यारादेवलोक सो सुन्दर, हो भारत वर्ष हमारा । रिमझिम-रिमझिम साधो, गीत बड़ा ही प्यारा। उठो सवेरे घड़ी प्रहर में, देव- दैव का दर्शन न्यारा। धन्य जनम हो जन-जन का, भारत वर्ष हमारा । अनगिन कलियां भारत मां की, जन-जन यहां दुलारा । भरी सपूतो की धरती जहां मानस-मानस प्यारा । बच्चे- बच्चे बूढी माता, साधो राष्ट्र दुलारा । ब्रह्मास काशी कौशल को, मंगल गीत पुकारा । विश्व गुरु विद् विश्व गुरु है, काशी प्यारा न्यारा । नई शक्ति व नव साधना, सदियों! रहा सहारा । एक से बड़कर एक यहां, वैજ્ઞાनिक प्यारा- प्यारा। सारा भाई सतीश धवन, सन् सत्तर इसरो! पुकारा। જ્ઞાन था ઉनका ध्यान रहा, सम्मान सभि को जाता सारा । पोलर पोल खोल दी सारी विश्व जगत उजियारा ए़-एल- वी-3 ली एस एल वी, पुनि जी एस एल वी सारा। रिद्धि-सिद्धि कल्पना अस्सी की, भारत वर्ष हमारा । यू आर राव कस्तूरी रंगन, नायाब तरीका सारा । प्रोद्योगिकी चरम पे भारत, जन-जन रहा सहारा । टाटा विक्रम वर्गिज कुरियन, कलाम को कला सारा । युग द्रष्टा मंगल प्यारा, भारत वर्ष हमारा प्यारा। उज्ज्वल जग- जग जाहिर, माहिर वैજ્ઞાनिक ઙसारा। महा शक्ति हो ला या भारत, है बच्चा-बच्चा प्यारा । જ્ઞાन शक्ति की जगत् जननी, जहां बच्चा सच्चा सारा। है सबको नमन हमारा, भारत वर्ष हमारा प्यारा ।sukhmangal singh 16:03, 19 अगस्त 2013 (UTC)
भारत महानभारत देश महान, गीता और कुरान, भारत का राष्ट्रगान, सब धर्मों से महान।भारत--॥ मानवता का मान, श्रेष्ठ है विજ્ઞાन, जीव-जीव समान, भारत देश महान।भारत--॥ गुरुनानक का જ્ઞાन, ईशू का प्रेम विજ્ઞાन, गीता का सम्मान, मानवता का उपदेश, गीता और कुरान, भारत देश महान।भारत--॥sukhmangal singh 16:10, 20 अगस्त 2014 (UTC)
भुतात्मायेंपंचतन्मात्राऐं, अहम से आई, अहंकर तो जन्मा, आत्मा-परमात्मा से। अहंकार जब आया,आत्मा के पास अपार, जन्मे तब संसार में, लाखों जीव-जार।। उस और इस का प्रयोग क्रमश यार: आत्मा परमात्मा के लिये करते सार, महा चरक की भाषा,भृतों को समझाता। सत्ता जिसकी बनी यार, वही भूत कहलाता॥ भूतों को सुसूक्ष्म इन्दिरियों से परे सुनाता, इन्दि॔यातीत समझाता और बतलाता॥sukhmangal singh 03:43, 12 जून 2013 (UTC)
भूलो बीती बातदे गये मेरा राज। साहबान सजी बारात। बहुत-बहुत धन्यबाद।। कृतग्य हों उनके आज। सधे साज सुसम्बाद। संसकृति समता साध। भूलो बीती अब बात।।।00:58, 18 जून 2013 (UTC)
भ्रष्टाचार एटम बम हो गइल?दु;ख की घनघोर धटा कारी छा गई तो। कहाँ भला होगे नसीब शून्य स्वर्ग भाई हो॥ नहीं डरो इससे केवल मंगल बुद्धि भ्रम हौं। सोचो भ्रष्टाचार कहलाता एटम बम हौं॥
यह वाकाआउट अथवा सद्भाव का कल हौ । हा! इन्टरनेट व्यथित यह नहीं फल हौ ॥ क्रिया समझने और देखने की भी पहचानें। का पક્ષ-विपક્ષ विकट देखकर इसे गरम हौ।।
सोच समझ उद्देश्य उचित जरा विचारो। पूर्व इतिहास को बाँच कर मरम निकालो॥ यूरोपी- इंगलिश शिક્ષા की तुलनाकर डालो। हिंदवासियों तम मिथ्या कुंठित भरम निकालो॥
अत्याचार महीप महा जब करते मानो। हा! दु:खी प्रजा तभी डरती चिल्लाती जानो॥ दीन दुखियों की जब सुनवायी नहीं होती। इतिहास की बातें सब सत्य सदा होती॥
जो हुआ जुल्म माँ बहनों के ऊपर जानों। उससे निकला का लोकपाल बनकर जानो॥ सर्वनाश की ज्वाला उसमें!कमी करम है। हा! निश्चय जानो भ्रष्टाचार एटम बम है॥
भ्रष्टाचार एटम बम हो गइल?(-2)अत्याचार महीप महा जब करते मानो । हा! दु:खी प्रजा तभी डरती चिल्लाती जानो ॥ दीन दुखियों की जब सुनवाई नहीं होती । इतिहासों की बातें सत्य सदा होतीजानो ॥
जो हुआ जुल्म माँ बहनों के ऊपर जानो । उससे निकला का लोकपाल बनकर मानो ॥ सर्वनाश की ज्वाला उसमें ! कमी करम है । हा! निश्चय जानो भ्रष्टाचार एटम वम है?॥
था शुभ सरल देश सुसज्जित सभ्यता सुख देता । जब बन्धु पिता प्रतिकूल सहोदर भी दु:ख देता ॥ प्रथा दहेज का खुला मुख अति मुहफट दबते तो । ले स्वाभिमान खड़े जहाँ शून्य हृदय रोते हो ॥
हो हृदय धीरता नहीं मति में चतुराई। कौन कुबुद्धि अनभिજ્ઞ आपकी करे विदाई॥ हाय सुबुद्धि - शान्ति में बढी-चढी लड़ाई। का संसद का गलियारे को दंगल हो जाई॥sukhmangal singh 05:24, 5 जनवरी 2014 (UTC)
मनरे लगनकरधरम पर चलकर,
करो सत् करम।
प्रभु से लगाओ,
तू अपनी लगन।
लख चौरासी में,
तू खो रहा है।
धरम पर चलो,
करो सत् करम।
तुम्हारे करम,
तारे तुम्हें हैं।
लगाओ सुलगन,
तूकर सत्यकरम।
सत्त् सद्गुण सुनो,
सद्व्रत तारते हैं।
मूल मंत्र'राम'में,
लगाओ ऽ लगन।
तू लगाओ लगन,
करो सत् करम।
माता-पिता गुरु व,
वेद तारते हैं।
भागवत पुराण औ,
तारे उपनिषद हैं।
सीता भजन कर ,
मन अब लगन कर।
प्रभु से लगाओ,
तू अपनी लगन।
धरम पर चलकर,
करो सत् करम।sukhmangal singh 16:01, 20 सितंबर 2014 (UTC)
शव्दार्थ:- सत्-सत,सत्यता पूर्ण धर्म। सुलगन-सुन्दर समर्पण भाव से लग जाना। सद्व्रत-सत्यविचार।
सत्त्-तत्व। सत्य-सच्चा।
माँ की ममताममतामयि माता का,
हम मनन करने आए।
हृदय में भाव भरा,
अभिनन्दन करने आए।
दरस देख मन ही मन,
माँ बंदन करने आए।
करुणा सागर का,
अभिनन्दन करने आए॥
दरस देख तन मन से,
धरणी पर माँ का।
क्रन्दन करने आये,
बंदन करने आए॥ + + +
माँ के चरणों में,
अवगुन अर्पण करता हूँ।
सोमवती सोमवार को,
अभिनन्दन करता हूँ॥
माँ तेरे भक्तों का,
नव नूतन दर्शन करता हूँ।
सुखमंगलઽदर्शन नव माँ,
अभिनन्दन करता हूँ॥sukhmangal singh 02:04, 26 जुलाई 2014 (UTC)
माँता-पितानिर्गुण पिता - सगुण हैं माता। वन्दनीय हैं दोनों - दोनो दाता॥ निर्गुण सगुण व्यक्ति को दाता। मंत्र लिए बिनु पार न कोई पाता॥ परमहंस जी वैष्णव शास्त्र हैं गाते। काली रूप में जो कृष्ण को पाते॥ ओ! ही जो वेदों को पढ़ने ડ जाते। जो "ॐ" सचिदानन्द: व्रह्म: को पाते॥ तन्त्र -शास्त्र में जो- जो ध्यान लगाता। "ॐ"सचिदानन्द:शिव:को वह ही भाता॥ पुराणों का सुगम पाठ जिसे जब भाता। "ॐ" सचिदानन्द: कृष्ण: को वह पाता। त्याग तपस्या तार में जो ध्यान लगाता। अति व्याकुलता में ही प्रभु मिल जाता॥ चन्दा सी सीतल माता पिता सूरज आभा। सदा विचारों की स्वतन्त्रता आँचल में आता॥sukhmangal singh 06:55, 22 जून 2014 (UTC)
मर्यादा(सन्1994) लोकतन्त्र पहुच चुका, शून्य के शिखर पर? अब देखना है आज, शांति का विद्भवत्स्वरूप, मर्यादा की सीमा, जीवन में जीना, मानव का जनाधार, वातावरण का उपहास , जन-जन प्रकाश, प्रदूषित समाज, ना होगा आज, कहता सुनता, सारा राज्य? भारत आज?sukhmangal singh 16:12, 18 जून 2014 (UTC)
मिशन के ठीकेदारऐ वतन के रखवालों, सुनो मिशन के ठीकेदार। यहाँ हो रहा कैसा आज, संसकृति बचाने की लगी, खुल्लम खुल्ला वाजार॥ हर व्यक्ति चाहता बस, एक मिशन हो पास। समाज में कुरीतिया भला, लोग फैला रहे है आज? जरा सोचो! कब सोचोगे, सुधरो कब सुधरोगे। बसुन्धरा पर जब चारो तरफ । विखरी देखोगे लाश?sukhmangal singh 16:18, 18 जून 2014 (UTC)
मुखड़ा नीक लागेपग नूपुर की झंकार रसिया। हो! घूँघट में मुखड़ा नीक लागे॥ जल भरहु झकोरि-झकोरि रसिया। अंखियन में कजरा जब नीक लागे॥ पतरी सी गोरी वा गदराया रसिया। सोने का कलशा जब नीक लागे॥ छोटी सी विंदिया सैयाँ से पिरितिया। घूँघट में मुखड़ा जब नीक लागे॥ रेशम की रसरी सखियन के गितिया। घूँघट में मुखड़ा जब नीक लागे॥sukhmangal singh 23:49, 21 मई 2014 (UTC)
मौसमी मनथी चाहत फूल की हेलया टा टा काँटा मिला । गया पकड़ा पगडंडी पर चटाचट चाटा मिला ॥ हिमाकत हुस्न छूने की दर्दे दिल खाटा मिला । पावडर प्रेम के बदले चमकता साटा मिला ॥ अच्छा हुआ था कतई उससे सगाई ना किया । रूप क पुजारी पुजारन नूर जिसे देख लिया ॥ फिरा जिसके खातिर गलियन मर्म हमने देख लिया। आशिकों को उसका हमने निशाना ना बनने दिया ॥ सारी दुनियाँ गलती मेरी जब तलक न मान लिया । मैं छेड़ता रहा फेस बुक पर तब तलक गिला । सरे बाजार जब तलक मेरी पिटाई ना किया ॥sukhmangal singh 00:47, 11 मार्च 2014 (UTC) शव्दार्थ:-हेलया-खिलवाड में।
मंडप-गारीहरियाली!बन्ने कच्ची कली दिलवाली। मालिन भी देगी तुम्हें गारी हरियाली॥ हरियाली! हरियाली!बड़ी दिल वाली। बन्ने का जूत वा लाहौरी? बन्ने का जामा--- --। बन्ने तम्हारी दादी महलों की रानी। बन्ने तुम्हार दादा बुश सा शानी? बन्ने तुम्हार चाचा मनमानी। बन्ने तुम्हार चाची चौधरानी। बन्ने तेरा भैया कम्पनी वाला। बन्ने तेरी भाभी भागल पुर वाली। बन्ने तेरा मामा दिल्ली के राजा। बन्ने तेरी मामी मुजफ्रपुर वाली। हरिवाले तेरा पापा दिलवाला। बन्ने तेरी माँता फैसन वाली। हरियाली! हरियाली!बड़ी दिल वाली॥ हरियाली!बन्ने कच्ची कली दिलवाली। मालिन भी देगी तुम्हें गारी हरियाली॥sukhmangal singh 02:20, 17 जून 2014 (UTC)
यक्षमा निवारनपृथक यक्षमा मनुज किया,चिवुक नेत्र कर्ण जिहवा से तेरा। पृथक नाड़ी ते चवौदह यक्षमा रोग से आज अब, नाड़ी कष्ट वक्ष कन्धे, भुजाओं की उष्णिह ॥१-२ हृदय हलीक्ष्ण,प्लीहा-पार्श्व उदर यकृत यक्षमा जो॥१-३ कुक्षियों नेत्र उदर से यक्ष्मा रहा भगाय।-४ कटि के निम्न पट के उच्च गुह्य भाग और नेत्र से ।-५ उगली नखो अस्थि मज्जा स्थूल सूक्ष्मते।-६ त्वच्चा जड़ों अंगों कूपों से,यक्षमा रोग हटाता रोगिन। महर्षै विवाह मत्र ते, कश्यप के आज हटाता रोग।-७sukhmangal singh 16:37, 18 जून 2014 (UTC)
रजनीतरुण!आम्र मंजरि मनोहर, निरखि-निरखि शर्मात। काव्य लिख रहा मंगल,मतंग मंद-मंद घबरात।। साथ!ग्राम गुन गान लेख,गिरि गिरिराज खिसियात। कंचन-कंचन जडि़त मुकुट,मानो रेख-लेख पिशाच! रमणीक रमणी रमती ,रजनी शान सुहाग। ललकित लली ललाट,लखि कोकिल राग बिहाग।।sukhmangal singh 03:17, 18 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:-तरुण-युवा,जवान,नया। मंजरि-गुच्छे। लेख-देव देवता लेखा। रेख-लकीर। पिशाच-पिसाच। रजनी-रात्रि।
सुहाग-सुहाना सुन्दर हौ। ललकित- गहरी चाह से भरा हुआ। बिहाग- एक प्रकार का राग।
राखो चुंदरिया संवारि भीगल जाले मोर चुंदरिया, छिपाये छिपे नाँ द्युति दागरी। चूक चटक चंदा जो छिपा था,चुंदरी तो चटकार री॥ भींगल चुदरी निखिल निचोड़ा, मोहन ज्यों सपने साथ री। घट-घट खोजत नीक चुंदतिया,पायो अपने पास री॥ इहै चुंदरिया नाहिंं चुम्हारी, प्यारी-प्यारी यारी दुलारी। जेते सुन्दर चुंदरी पायो, तेते જ્ઞાन, मान,गान अगाध री॥ जाबुन लायो मोहन मोरे, मौन ज्यों महा भंडार री। चुनरी चुर चारो चौकछु रे, सूर्य चन्द्रमा चुन्यो संसार री॥ आंगन लाये पिया चुदरिया भीगी- भीगी झीनी सारी। गणपति गावत बीच बजारे नीक चुदरिया नीक किनारी॥ रंगी चुदरिया को रंग निराला, मागत मधुबन मां नन्दलाला। मंगल मंदिर बूझत न्यारी देखत बारी-बारी- सारी॥ सोलह सी बंद चुदरी चोखा, चार चौपटा नाग पास री। रंग धूमिल चुंदरी चटकीली, राखो राजे इसे संवारि री॥sukhmangal singh 14:47, 19 अगस्त 2013 (UTC)
"राधा- राधा"नव गीत सुनाऊँ , राधा- राधा । बहु भाँति रिझाऊँ, राधा- राधा । प्यारी बरसानेડ न्यारी, राधा-राधा । हौ चौकस चेरी ,राधा- राधा । सबकी प्यारी ,राधा- राधा । दिल से न्यारी ,राधा- राधा । मन को भाती , राधा- राधा । बीन बजाती , राधा-राधा । कृष्ण मुरारी की , राधा- राधा । छबि छैल छबीली , राधा-राधा । भली भोली भाली , राधा- राधा । सरल सुरीली है , राधा- राधा । रंग रंगीली है , राधा- राधा । सुन्दर आनन की , राधा- राधा । छवि मन भावन की, राधा- राधा ॥sukhmangal singh 23:50, 27 अप्रैल 2014 (UTC)
राम जन्मअयोध्या में राम कै जनम भइलै, भरथ कुण्ड यज्ञ भइलै! अरी हो? सगरी अयोध्या आनंद भइलै, राम मोरे जनम गइलै! एक तो गोर च माँ ढगरिन, दुसरे गरभ से? आ हो? तीसरे माँगलै सुख पालन, पैदल नहीं आवैले? माँगलै सोने क हँसियवा, रुपेह केरो खापड़! ढगरिन माँगै राजा दशरथ कै घोड़वा, देवी कौशल्या सुखपालन! पावैले सोने कै हँसियवा, रुपेह केरो खापड़! ढगरिन पावै राजा दशरथ कै घोड़वा, देवी कौशल्या सुखपालन! पहिर ओढ़ ढगरिन ठाढ़ भईनी, सूरज मनावेनी ! सूरज? बढ़े राजा दशरथ के वंश , बरिश रोज फिर आई॥sukhmangal singh 16:55, 18 जून 2014 (UTC)
राम आइलैं बन से?राम आइलै बन से, मगन भइली माई। मातु कौशल्या, आरती उतारैं, मगन भइली माई। राम आइलै बन से॥ राम- लखन, महलों में आइलै। केकई कोन लुकाई, हाथ जोरिके, रामजी बिनवै, तोहरे पुन्नि से, माता सुख बन में। राम आईले बन से, मगन भइली माई॥ हाथ जोरि के, केकई विनवे, द्वापर में जन्म, जब लेबैं हम, हम होवै देवकी, तुम कृष्ण कन्हाई। राम आइलै बन से। मगन भइली माई॥sukhmangal singh 13:32, 11 सितंबर 2013 (UTC)
रातआज की रात जख्म भर दो तो कुछ बात बने। वर्ना कल हम भी कटार ले निकलेंगे तो ? जुरर्त करना नहीं पता हमें तेरी कूबत की । देखा था कल आप भी तलुए चाटते मिले॥sukhmangal singh 13:21, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
राष्ट्र भक्त झाँक रहा?आने का आमंत्रण सुनकर, जन-मन को जो जगा दिया है । बौद्धिक नगरी रजधानी बन, शिव शंकर को हिला दिया है । तूफानो सा देश में हलचल, हलचल विश्व में मचा दिया है । उड़-उड़ डाली-डाली पर, चिड़िया गीत सुना दिया है ॥
काशी शिव की नगरी प्यारी, "मंगल" खुद को सुना दिया है । चाम का बेरा प्रहरी अस्थिर, भौचक कुत्ते भौक उठे हैं । गंगा की धारा थी अविरल, पाषाणों ने बाँध लिया है । भारतीय परिधान लकालक, जीवन सारा साध लिया है । पंडित मौलवी मीटिंग करते, रात घर कोईझाँक लिया है ॥
सड़क गली पानी सुधरे जब, गुजराती कब दौड़ किया है । रंगदारी वह कौन माँगता, नाम और का बता दिया है । का सत्ता झडा लेकर को कर, जो खादी पहन छुपा लिया है । धरती की लाज रखो नटवर, हथियारों ने हिला दिया है ॥
लाखों बिटिया बेबस चलती, मुख अपना जो छुपा लिया है । शासन में चुस्ती कुछ दिखती, कोलाहल को मिटा दया है। हथियारों का होड़ का काशी, भौचक सबको बना दिया है । रेप छिनैती का समाज जो, पारा सारा चढ़ा दिया है ॥
उद्योगों की कमर कसेगी? नव जवान जन ताक रहा है । हिंदी होगी राष्ट्र की भाषा? सभी सत्य को भाँप रहा है । खुदा-ईश्वर एक सदा से, राष्ट्र भक्त फिर झाँक रहा है ॥sukhmangal singh 00:19, 23 अप्रैल 2014 (UTC)
धर्म सतपथ पर चलना सिखाता है"रीढ़ मानें"सत्य अहिंसा दया जो जाने।
क्रोध लोलुपता मन से भागे॥
पंथ- पथ-पथिक धैर्य प्रकाश।
भटका राही रहि-2 उड़े अकाश॥
सामवेद ब्रह्म का पूर्ण केश जानें।
ૠग्वेद ब्रह्म की पूर्ण रीढ़ मानें॥
वेद गीत संगीत छन्द जो जाने।
જ્ઞાन सत्य प्रेम भक्ति को माने॥sukhmangal singh 00:14, 26 अप्रैल 2014 (UTC)
रंग जमादे?काम कितना भी कठिन हो, मनुज जो चाह दे । पथ पर पड़े काटे जटिल, ક્ષण भर में ढाह दे । दुनिया दागी गमगीन, जिन्दा दिलवर ला दे । है कोई इन्सा जहाँ मे, मुहब्बत की गीत सुना दे । दिल पर पत्थर रख बैठे जहाँ , महौल खुशनुमा बना दे । शहर आइना निहार बैठा, कोई तो चिराग जला दे । शान्ति बीरान हुई जुल्म बहुत, यारी पक्की करा दे । सुख गई स्याह गुलशन की, महफिल का रंग जमा दे ॥sukhmangal singh 03:40, 14 अगस्त 2013 (UTC)
लाज मोरी राखालाज मोरी राखा हे बनवारी| गलियाँ गलियाँ घुमें सुदामा| छुधा पीर भय भारी | मर्जी भई दीनानाथ की | बन गयी कनक अटारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी | बिच सभा में बैठि द्रोपदी | त्राहि गोविन्द पुकारी | खैचत चीर भुजा दोनों फाटत | बढ़ गयी पीताम्बर सारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी | छप्पन कोटि जल मेघ बरसे | इंद्र कोप भय भारी | डूबत बृज को बचा लिए तुम | नख पर धरै गिरधारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी | भारत में भर दूल का अण्डा | पक्षी रहत पुकारी | अब तो प्राण हिय तुम | कटला संकट भारी | सुख मंगल सुख कय पालक | निस दिन आस तुम्हारी | लाज मोरी राखा हे बनवारी ||sukhmangal singh 14:39, 31 अक्टूबर 2013 (UTC)
ला गाओ जीशिव के डमरू की वान, मुरली वाले की तान। रहि-रहि गायेंगे गान, तो'ॐ' करते हैं ध्यान॥ ओ! गावो जी गुनगान। नाचो मुरली की तान, आओ राधा माँ प्रान, लाओ लाला नव गान॥।sukhmangal singh 03:09, 13 जून 2013 (UTC)
वक्तवक्त! वक्त छोड़ता नहीं किसी को! मोड़ देता है शालार, जी रहे जवानोंं को। तोड़ देता मै भंग भरे इन्सानों को। फोड़ देता अहम् लिये हैवानों को।। वक्त का सत्य सीता हुईं बेहाल थीं। अशोक में रहीं उनकी ही चाल थी। वक्त की निर्दयता पार्वती हुईं विह्वल। वक्त का दबाव विश्वामित्र हुए चंचल।। कल तक रहे जो देव हैवान बन जीते सगरी। माया रूपी नगरी, शैतान बन जीते डगरी।। अपनां सब सपना यहांँ वक्त सब को है मारा। मत कहो वक्त ने मुझे मारा, वक्त भूखे दिलों का पुच्छल तारा।। हे वक्त! तू बता यहाँ मंजिल हमारी तू कहांँ। पुष्पों से सारी साया सजा सेज तू सजा सजग हो यहांँ बारात बहु लगी जहांँ बारात तू दिखा हमें भी वहाँ। कल कहाँ रहेंंगे, हम सभी जहाँ जी से बता हमें तू समा समा ।। विष पिया था शम्भु ने अमृत हुआ था वक्त से। वक्त!ऋषि मुनियों को, नहींं कभी भी छोड़ा। वक्त ने व्रह्मा को प्रभु की तरफ मोड़ा। वक्त ने अर्जुन के मय को है तोड़ा। वक्त ने कंस का, विनाश कर ही छोड़ा। वक्त ने सपरिजन रावण को ना छोड़ा। वक्त ही तो है जो परिवेष को निचोड़ा वक्त ही है आज जो शाश्वत कर वेद से जोड़ा। वक्त ने कागा को भी मोड़ा शंक युक्त जो थोड़ा-थोड़ा।। गरुण पड़े विषमय में वक्त ने अंडे को छोड़ा कागा ने सुन लिया वक्त का चमत्कार पार्वती सो गयीं, मिला नहीं अमरत्व। नहींं लोभ है सुनो वक्त अब! जीवन जग मेंं जीने को। शिष से सनकी कूट रहा वक्त सुनो वही अब चलने को सन्तप्त॥ + + + चक्की मे पिसवा दो ऐसे जैसे गेहूँ पिसता वैसे चक्की मे दरवा दो वैसे दाल अरहर की दरती जैसे॥ व्याघ्र से चबवाओ वैसे बेर चबा कर खाते जैसे। निर्दय बनकर वक्त तू ऐसे वल्लमं-वल्लमं चुभवाओ भय से। नाला नाली कीचड़ वैसे जैसे चाहो ले चलो वक्त! लाठी डन्डा बातोंं मे हमें ना भरमाओ वक्त! मृत्यु लोक से ऊब चुका चुभन बहुत भरमाया संशय। सुख दु:ख तूने दिया सक्त हमने सहा बन भक्त। + + + शाश्त्र में कहते क्यूँ हो सब कोई अपना है यहांँ अपने सपने बनकर, दावानल दहते हैं जहां।sukhmangal singh 19:05, 24 जून 2013 (UTC) शव्दार्थ:-शालार- सोपान,सीढ़ी। भंग-तरंग,लहर,खंड,विनाश,भांग।
"वासंतक गुलाल"जूही चम्पा चमेली की गंध गूजत भोरे नव पराग ले- आयो है। लाल गुलाल औ मोती की माल, छलकत छबीले ढ़ोल- पोछ लायो है। वाल गोपाल भले आयो नन्दलाल लाल ही लाल गुलाल- ले आयो है। छोरी गोरी किसोरी झोरी माँ केश रंग में घोरि-घोरि- लायो कै। 'मंगल'पद्माकर घाली घली घनश्याम लली को लाली- लायो है। गोरी के रंग में भीगो सावरो, पिच-पिच पिचकारी - पुकारो है। सोने को पलंग बसन बसंती साज, सरसो खेत खलावत आयो है। लाग बाग राग में वसंत फूल्यो, मान डाल हाल हुलसंत पुकारो है। पिय को दर्द दु:ख देत आवाज, परदेश पिया हिया पिरात आयो है। मोहि मगन जिया लागी लगन,होरी बोरी झकझोरी पिय पुकारत है।sukhmangal singh 23:37, 18 जून 2014 (UTC)
विकाशहवा बही सीधी सुगन्ध । जन-मन विश्वास उमंग ॥ अधखिली कलियाँ खिसी ! ठंढ़ई मोहक सुगन्ध ॥ मनेगी ईद-होली । सुलझे मिनट चन्द ढ़ंग॥ मन मंगल ललकारा ? विकाश देश का नारा ॥ सोमनाथ से चलकर आया । विश्वनाथ शिवशंकर धाम ॥ पुरी द्वारिका परमेश्वर पुनि । को शिवशंकर जी किया प्रणाम॥sukhmangal singh 03:20, 17 मार्च 2014 (UTC)
विकाश पुरुष-शास्त्र सम्मत मोदीजागरण नव जुग दिया! मौन रख सब कुछ पिया॥ जैसा वैसा वह काम दिया। बापू पटेल को याद किया॥ बन्देमातरम को सुुनाया।जन मन को खूब भाया॥ अद्भुत बंधन से मुक्त कराया। विश्व में गुरु परचम लहराया॥
+ + + रूप सुन्दर बहुत तुम्हारा। सुन्दरतम् वाणी सुधा लुटाया॥ अક્ષय उर्जा भरकर लाया। कण कण व्याकुल मन भाया॥ शौर्य गाथा लिखने आया। देश प्रहरी हिमगिरि ज्यों पाया॥ आशीर्वाद वह मानो पाया। अंध ક્ષિतिज पर गरजते आया॥ + + +
उसने दिब्य हृदय जो पाया। कर्म खूब-खूब लिखवाया॥ राजनीति स्वच्छ छवि पाया। धर्म - नगर ડ परचम लहराया॥ हिंदी संस्कृति जेहन में पाया। 'मंगल' बनारसी बाबू कहलाया॥ शान बान भाषा साहित्य का देश हमारा। दिव्य જ્ઞાन का दिया जलाने वाला आया॥
+ + + वर्षों की वह रही तपस्या 'मंगल' ડ पाया। खिंची हुई हैं सरहदें -सरहदी जानो आया॥ सेकुलर-गैर सेकुलर का जनमत भेद मिटाया। जानो धरती पर गाँधी पटेल फिर आया। + + + विकाश पुरुष बन कलियुग में गरीबी में जन्म पाया। नारायण दि0 पं0गंगाधर सा ज्यों मोदी काशी को भाया॥ खर्च भयानक आमद सीमित सीना तान परचम लहराया। दिव्य જ્ઞાन का दिया जलाने वाला ज्यों 'मंगल'आया॥ + + +
अद्भुत बंधन मुक्त कराने वाला आया? देश को सोने की चिड़िया का मान दिलाने आया॥ बोझिल गंगा माँ को निर्मल मुक्ति कराने आया। छम छमाछम छम बादल बरसाने वाला आया॥ उलट वासियों मत उछालिये हलनिकालिए! आया। बेठन से बधे लेखन संस्कृत संस्कृति संस्कार निखारने आया॥ विविध धर्म भाषा में बढ़कर मेल कराने वाला आया। संध्या थी विश्व ક્ષિतिज पर गरजते 'विकाश पुरुष' आया॥
+ + + तन्त्र -मन्त्र साध -साधना राम- रहीम कहने आया। ठाकुर और विवेकानन्द से आशीश ले काशी में आया॥ सवाल-जवाब पास हो जिसके पुरुष ऐसा भारत ने पाया। विश्व पटल पर विश्व गुरु बने शान्ति संदेश सुनाया॥ जन-जन गूँजे वन्देमातरम् - जनगणमन की गाथा गाया। प्रगति और शान्ति के पथ चल अत्याचार भगाने आया? बापू पटेल ज्यों जुगांत पुरुष विकाश! मानो धरती पर आया। विकाश पुरुष शास्त्र रક્ષक? कलियुग के गरीबी में जन्म पाया॥
नोट-उक्त रचना 'गुरु घासी दास विश्वविद्यालय' छत्तीसगढ़ में दिनांक05/26/2014 को हमनें रची थी। पाठकों से त्रृटि हो, के लिये ક્ષमा।sukhmangal singh 00:41, 27 मई 2014 (UTC)
वोटऱजब चारो तरफ प्रत्यासियों की लगी बाजार। जनता सोच समझ ले वोट दे होशियार॥ वोट देना वोटरों अपना अधिकार मानो। मुल्क मुकम्मल प्रत्यासियों से अविकार मांगो॥ दागी दामन दाग लगाये उन्हें हटाआ॓। मूल्यवान मत वोटर सारे गौरव गाऒ॥ अभी उनकी बोलियों में वही तीर कमान। जीत की कटारी पास होगी हर एक म्यान॥ देश की देने वाले हो जिनको तू कमान। कहीं वे तुम्हारा चुनकर करें ना अपमान॥ आयोग से कहो निकाले अपना फरमान। कोई नहींं - कोई नहींं मंगल करेंं गान॥singh 04:05, 14 June 2013 (UTC)
॥==शहर में अंधेरा है?== सूरज बिखेरता उजाला मगर,
धरा को अंधेरे नें घेरा है ।
उजाले को चुराया अंधेरों नें,
उन अंधेरों में मेरा घर बसेरा है ।
अपना घर फूंक ओ ढूढते रोशनी,
अपना शहर कहे ठांव में अंधेरा है ।
जब कभी धरोहर के चिराग जले,
आस्था की बस्ती में उजाला है ।
जब चारो तरफ घना अंधियारा तो,
इक टिमटिमाते दीपक का सहारा है ।
मिल जलाओ सारे दिये साथ में,
एक दीया कोई अलग जलाया है ।
यूँ तो मंदिरों मेंं देवी-देवता चुप बैठे,
युगों-युगों से शहर में अंधेरा है ।
सब भागते हैं छाँव की तलाश में,
हर डाल देखा बाज का बसेरा है ॥sukhmangal singh 17:50, 8 दिसम्बर 2013 (UTC)
शिव-शंकरभाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥ सभी मतों के इश्वर हैं एक। स्वरूप का प्रतिविम्ब दिखा दो॥ तू आदि दम्पति कहलाते हो। हिन्दू-मुस्लिम में माने जाते हो॥ परशुराम को परशु दिया है। मुझमें शिव शंकर भक्ति दे दो॥ सत्य स्वरूप मुझको दिखा दो। नित्य वह रूप अपना बता दो॥भाव भक्ति--॥
सारे लोक के पालन हारी। शिव-शंकर सुनलो त्रिपुरारी॥ रे!श्वास औ प्रश्वास वेद हौ। विद्याओं में मूल बतला दो॥ दर्शन से छुमंतर हो जाते। काल दोष- भगवन भगाते॥ महादेव -कहलाने- वाले! नाथ महिमा अपनी बता दो॥ भाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥सभी मतों--॥
विल्व पत्र का पान तू करते। रुद्राક્ષોં ने मंत्र महिमा जपते॥ विभीति से शिवजी शुभदायक। हैं सत्य सदा सबही कहते॥ शिव साક્ષાत्कार करे जो भी। परमानन्द प्राप्त करे ओ ही॥ आदि देव हो परम पुरुष हो। सत्य स्वरूप मुझको दिखा दो॥ भाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥सभी मतों--॥
गुरुओं के भी गुरू तुम्हीं हो। हृदय में निज જ્ઞાन जगा दो॥ सुलभ साध्य शिवदेव तुम्हीं हो। गौतम महर्षि को पूज्य तुम्ही हो॥ सालिग्राम शिव में विष्णु पूजा। बरदान महादेव हमे भी दे दो॥ शिव-शंकर ही सर्वश्रेष्ठ नाम हौ। प्रणव- पंचाક્ષरी- मंत्र बता दो॥ भाव भक्ति भी मुझमें जगा दो। नाथ- महिमा अपनी बता दो॥सभी मतों--॥sukhmangal singh 00:59, 7 नवम्बर 2014 (UTC)
शंख बजेमहल खड़ा जीर्ण-शीर्ण अब , कई दरारें दरक रहीं जब। जहां सघन आनंद भरा तब , वहीं अस्त्र-शस्त्र घटा अब । यहीं प्रेम की नदियां थीं तब , वहीं नफरत का जल जंगल अब। महल महकता मन मोहक तब , दस्खत दे देता दुर्दिन अब । लोक नीति बाधा छाया जब, मिल जुल कालिख दूर करें अब । जाति पाँति का जहर जहाँ सब, रोटी छिन-छिन खा जाते सब । चिड़चिड़े बूढे वंसी बजाते सब, मित्र मंडली शंख बजायेगा कब ॥sukhmangal singh 11:28, 20 जुलाई 2013 (UTC)
स्नान गीतनहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो। केकरे पोखरिया में छिछली बहुत है, केकरे पोखरिया गहिर पानी, नहला दो बन्ने को गुलाब जल से॥ बाबा के पोखरिया में छिछली बहुत है, ससुर पोखरिया गहिर पानी, नहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो। जोड़ा पहिना दो जमा पहिना दो, पगड़ी पहिना दो गजब ढ़ंग से, नहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो। राई उइछहू जवाइन उइछहू, मुँह जुठला दो अमत फल से। नहला दो बन्ने को गुलाब जल से, नहला दो॥ (यह रस्म बरात विदाई से एक दिन पहले किया जाता है) शब्दार्थ:- केकरे-किसके। गहिर-गहरा। पहिना- पहनाना।राई-सरसो। उइछहू-उतारा करना(प्रेतबाधासे)। जुठला-जुठारना॥sukhmangal singh 00:38, 15 जून 2014 (UTC)
सरस्वती वन्दनावीणावादिनी बुद्धि की दाता
वीणावादिनी,स्वरदायिनी माँ। नारायणी स्वर दो॥
सिद्धिदायिनी वीणाधारिणी
कर करतब करि कारिणी माँ। स्वरदायिनी स्वर दो॥
ब्रह्माणी,शिव पूजनी
दिन रात सदा मनभावनी माँ। वीणावादिनी स्वर दो॥
जय-जय-जय माँ दाता
जय-जय-जय जयकारिणी। वीणा वादिनी स्वर दो॥
जिह्वा पर नित वास करो
हिय में माँ उल्लास भरो। वीणावादिनी स्वर दो॥
परमारथ हो हृदय में माँ
मेरा निर्मल मन कर दो। वीणावादिनी स्वर दो॥
काया कल्प करो तन का
पल प्रति पल तू वर दो। वीणावादिनी स्वर दो॥
करुणा तेज भरो मन में
सागर सा वाणी मन दो। वीणावादिनी स्वर दो॥ukhmangal singh 16:56, 17 जुलाई 2014 (UTC)
सजलहो! हमेंसा जश्म हो,शिरकत सदा बाजार में। हाँ! हमारा कुछ भी नहीं,गीत गाओ प्यार में॥ जहाँ हर लोग थे, चौकस चौरंगी धधक भी। चुन-चुन सजाया था वहाँ, मोतियों सी चमक थी॥ चारो तरफ छाया घनेरा ,मंगल मौन मन अचल? बादलों में काली घटा,जहाँ वहाँ रहो सजल॥–sukhmangal singh|sukhmangal singh 23:59, 18 जून 2014 (UTC)
सावन की फुहारसावन की फुहार थी । क़लियाँ बेकरार थी ॥ आलिंगन के तरस रही। आँखें देखो चार थी ॥ चह-चह चिड़िया बोली। घनघोर धटाएं पुकारती ॥ पात-पात सब झूम रहे । डाली-लाली बेसुमार थी ॥sukhmangal singh 15:30, 6 सितंबर 2013 (UTC)
सितारे सारे रूठे?ढ़ूँढ़ रहा हूँ पन्ने सारे। का हे रूठे सभी सितारे ॥
खेत जहाँ तक अपना फैला। रहता कोई नहीं था मैला ॥
आँखों का अरमान था सुन्दर। प्यारी प्यारी मुस्कान फैली ॥
दर्द ले दुनियाँ ढ़ँकी हुई पर। वक्त इतना हैवान न फैला ॥
माँ का प्यार लिए दिल सारे । समता में वीरान न फैला ॥
रक्त रन्जित सैलाब नहीं पर। गणित और विજ્ઞાन था फैला॥
मिलजुल जन सब डगर संवारें । खेती व खलिहान तक फैला ॥sukhmangal singh 12:47, 14 अप्रैल 2014 (UTC)
सिवार मोच्छ द्वार काया मिलो, हिय मे दियो परकाश। भक्ति भजन को जिह्वा, इंद्रिय જ્ઞાन अगाध॥ निरालम्ब सगुन अमित, भावैं तोष निहार। गहे गा्राह अनंग , फसो सहसा सिवार॥sukhmangal singh 02:56, 12 जून 2013 (UTC)
सुधाकरसुधाकर जी शानी महान कल्यानी। जीवन जन का मानी જ્ઞાन विજ્ઞાनी। उपकारी तन मन में थी दीवानी । सुनते सबकी वे जिहवा रही पुरानी। जन-जन करता रहता पंडित का गुणगान। सुन इधर उधर की बातें गुनते नीद हराम। बड़ी चतुरता से पंडितजी करते हरि का गान। बिखरी बड़ी सभा संवार बढाया हिंदी का मान। सहज शब्द જ્ઞાन बद्ध थे जीवट के थे वे जवान। चन्दौली से दौड़ लगाकर पहुचे दिल्ली दर मान। दिल्ली दर दरबार दौड़़ कर बढाया काशी का नाम। ग्रंथ लेख और कविता लिख गाया गौरव गुण गान। सभा रही है महान बड़े-बड़ों के छक्के पक्के छूटे। जो-जो जब-जब ललकारा उनके दांत किया खट्टे। आवा जाही तो लगी रही सत्ताधारी सब बहुत जुटे। जब तक रहे सुधाकर पण्डित जन अरमान नहीं टूटे। मंगल रहा पुकार सुनो सुमंगल જ્ઞાनी और विજ્ઞાनी। जहां छाई रहे बहार सुधाकर पंडित होवें ना वे पानी ॥sukhmangal singh 14:54, 7 दिसम्बर 2013 (UTC)
सूरज के मनाय लिया जायतनिक आवा चला सूर्य के मनाय लिया जाय ।
शुभ तांबे के लोटा में जल ले चढ़ाय दिया जाय ॥
ले लाल चन्दन अક્ષत गुण खिलाय लिया जाय ।
रोग से मुक्ती बदे दुर्वांकुर चढ़ाय दिया जाय ॥
हव्य होम यજ્ઞ लाल कनेर दे मनाय दिया जाय ।
त्रिलोक साક્ષી मन से हियतम् हटाय लिया जाय ॥
लागल पौष मास ब्राह्मण भोज कराय दिया जाय।
अंजुली दान अंजलि कामना ले कराय लिया जाय ॥sukhmangal singh 05:25, 12 जनवरी 2014 (UTC)
सूनी लागे नगरी(कजरी)तुहरे बिना सूनी लागे हमरी नगरी? खेले जाइब हम सावन में कजरी॥ घेरि आइल गोरी अब देखा बदरी। खेले जाइब हम सावन में कजरी॥ गोरी चलेलू तू त काहें अकेली? बनल बाड़ू जैसे नई अलवेली॥ तोहरे संग नाहि कोई मिलल सहेली। घेरि लिहें गुण्डा तोहि इहे नगरी॥ तुहरे बिना सूनी लागे हमरी नगरी? खेले जाइब हम सावन में कजरी॥ कतना जना पीटल जइहें डगरी? कतना के लगी गोरी! फसरी॥ कतना जना पिसिहें चाकी? जेल खाना में नाहीं! चकरी॥ खेले जाइब हम सावन में कजरी। तुहरे बिना सूनी लागे हमरी नगरी॥sukhmangal singh 22:58, 19 मई 2014 (UTC)
सेहराबँधवा लो शहजा़दे तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। बन्ने जरा तूँ पास आ तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। दादा तेरे पास खड़े बँधवा लो शहज़ादे सेहरा। दादी रानी कुसुम कलेजे से लगाया सेहरा। बँधवा लो शहजा़दे, तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा।2॥ चाचा चाव से खड़ेहोकर मालिनि से गुँथाया सेहरा। चाची रानी प्यारसे चाँदनी रात कलेजे लगाया सेहरा। रातों में रौनक महफिल का बढ़ायेगा यह प्यारा सेहरा। बँधवा लो शहजा़दे तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा।2॥ महफिल खुसनुमां सुहाना वारात का बनायेगा सेहरा। बन्ने जरा तूँ पास आ तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। बँधवा लो शहजा़दे तेरी ससुराल ने भेजा सेहरा। शब्दार्थ:- सेहरा- मौर। शहजादे- दूल्हा। कुसुम-फूल, पुष्प।sukhmangal singh 00:12, 17 जून 2014 (UTC)
स्वप्नदलअगर राज हो मेरे दल को? सभी लोग आराम करेंगे । सदा नशे में बुत्त पड़ा हो ? अपना नया समाज रहेगा ॥
फेकेगें पासा पुनि शकुनी ? बहुमत प्रबल पगार रहेगा । गाजा भाँग शराब चरस औ, राजकीय बहु व्यापार रहेगा ॥
देश-देश भीख माँगनें, भेजे भिखमंगे जायेंगे ? अफसर सारे आराम करेंगे, डट सब चारो धाम करेंगे ॥ जा विदेश धन लाएंगे , मिल जुल उसे सभी खाएंगे ॥
तिव्वत से दुशाला लाऊँगा? मेवाड़ मखमल पहिनाऊँगा । समलैंगिक सरकार बनेगी ? फिल्मी शिક્ષા मुक्त मिलेगी । अगर युवक सब माँग करेंगे, डिग्री सारी मुक्त मिलेगी ॥
मंत्री कोई मतिमंद न होगा ? लेना रिश्वत बन्द न होगा? रिश्वत ते चन्दा आयेगा? बन्दा बैठ-बैठ खाएगा ॥
महामूर्ख को जनता जाने, मूँछ मुड़ाए सूट पहिचाने। उनकी महिमा पुलिस बखाने? कलियुग संत समाज भी माने। नव युग मंत्री को पहिचाने, प्रजातन्त्र हौ खुद को जानें॥sukhmangal singh 01:29, 11 मार्च 2014 (UTC)
हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारीहमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! पाँव धरे अहिल्या तारे, ॠषि गौतम की नारी, दुख दारिद्र सुदामा तारे, मड़ई से हो गई अटारी। हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! अग्नि जलत प्रह्ललाद उबारे , हरिण्याकश्यप को तू तारे, दसकंधक रावण को मारे, राज विभिषण को दे डारे । हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! अर्जुन भीम नकुल सहदेवा, गए महलों में हारी दु:शासन को चीर ग्रहण दुर्योधन को तूने ललकारी । हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! तुम यश मरनी मरम नाहीं जानत चितै-चितै हमारी । हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! सूर श्याम निकट तब अइबा जब हम होइबै उधारी॥ हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी! मंगल गावत गीत बाजारी सखा पति श्याम तू हमारी॥ हमरी दइयां निष्ठुर भइला हो बनवारी!sukhmangal singh 04:06, 13 मई 2014 (UTC)
हरिबानावावन रूप धरलै हरि बाना। बाजूबंद अंग में सोहै॥ छङ़ा - छाप - मुलताना। मुख मा पान नयन मा सुरमा॥ लेई दरपन मन मुसकाना। वावन रूप धरलै हरि बाना॥ हंसि का बाति जसोमति पूछै। काहे हरि बनला ડ जनाना॥ उनके ठगन हम जइबै वरसाना। वावन रूप धरलै हरि बाना॥ वृन्दावन की कुंज गलिन मा, काँधा फिरत भुलाना॥ मुख पर चादर तानि चलतु। राह चलत मानो गज मसताना॥ वावन रूप धरलैं हरि बाना। सब सखियन मा चतुर राधिका॥ सो कान्हा पहिचाना॥ जनानां नाहिं तू मरदाना। वावन रूप धरलैं हरि बाना॥sukhmangal singh 13:08, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
‘हरे राम-हरे कृष्ण’आज भगवान मेरे मंदिर में बसना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥ राम के प्रेम में सीता दिवानी। सीता के हाथों में गजरा निशानी॥ गजरा पहिरा सीता कर लिया अपना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥
राम के प्रेम में मीरा दिवानी। मीरा के हाथों में वीणा निशानी॥ वीणा बजा मीरा कर लिया अपना। आज भगवान मेरे मंदिर में बसना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥
राम के प्रेम में शबरी दिवानी। शबरी के हाथों में बेर निशानी॥ बेर खिलाके सबरी कर लिया अपना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥ आज भगवान मेरे मंदिर में बसना। हरे राम हरे कृष्ण बोल मन रटना॥sukhmangal singh 03:51, 18 अक्टूबर 2014 (UTC) शव्दार्थ:-शबरी-एक तपस्वनी,जो जाति की भीलनी थी। राम जब सीता के वियोग मेंव्यथित हो शबरी की कुटिया पर पहुचे तो स्वयं चख- चख खृ उसने जूठे मीठे बेर राम को खिलाया था। राम ने इसे नवधा भक्ति का उपदेश दिया था।(विनय-पत्रिकापृ0256टिप्पणी-2)। बेर-एक कटीला वृક્ષ जिसके फल को खाया जाता है। इसके कई भेद होते हैं।
हम जानिला (निर्गुण)मन हो तू जइबा हम जानी। पाँच परग को बना है पिंजरा। उसमें वस्त्र पुरानी॥ एक जइहै प्रेम लहरिया। डूब मरिबा बिन पानी॥ काल कलंदर राजा जइहै? रूप निरखत रानी॥ वेद पढ़त पण्डित जइहै? जइहै मुरख ज्ञानी॥ मन हो तू जइबा हम जानी॥ चार सखी मिल चलै बजारे? एक से एक सयाने। राम नाम कै टेर लगवनी। पुण्य पाप दरवानी॥ मन हो तू जइबा हम जानी॥2॥ चाँद सूरज दोनों चल जइहै? जइहैं पवन अ पानी॥ कहै कबीर सुना भई साधौ। रह जइहैं मंगल क निशानी॥ मन हो तू जइबा हम जानी॥2 ।।sukhmangal singh 13:20, 14 दिसम्बर 2013 (UTC)
हल्दी का गीत(हरिद्रा)लगाव लगाव प्यारी सखिया? बन्ने को हल्दी लगाव। बन्ने के कानों में कुण्डल नहीं है। पेन्हाव पेन्हाव प्यारी सखियाँ? बन्ने को कुण्डल पेन्हाव। बन्ने के हाथों में घड़िया नहीं है। बन्ने को गड़िया पेन्हाव॥ लगाव लगाव पण्डित हल्दी? बन्ने को हल्दी लगाव। पहली हल्दी पण्डित उठावैं, पीछे सकल परिवार। बन्ने को हल्दी लगाव, लगाव लगाव प्यारी सखियाँ॥ शब्दार्थ:-हल्दी-हरिद्रा,अंग्रेजी में- टेर्मेरिक,।बन्ने-दूल्हा,। पेन्हाव-पहनाव, पहिनाना । कुंडल -कान का कुण्डल।पहिले-पहले। (यह रस्म शादी के एक दिन पहिले होता है।sukhmangal singh 15:48, 14 जून 2014 (UTC)
हरिद्रा गीतकीजै कीजै यह ॠतु व्यवहार, हल्दी मंगल की।-2॥ बन्ने के पापा हल्दी लगावैं, मम्मी रानी हरिस धइले ठाढ़। हल्दी मंगल की॥ कीजै कीजै यह ॠतु व्यवहार, हल्दी मंगल की।-2॥ बन्ने के चाचा हल्दी लगावैं' चाची देवी हरिस धइले ठाढ़। हल्दी मंगल की।-2॥ बन्ने का भाई हल्दी लगावैं, भाभी रानी हरिस धइले ठाढ़। हल्दी मंगल की।-2॥ कीजै कीजै यह ॠतु व्यवहार, हल्दी मंगल की।-2॥ पहली हल्दीय् पण्डित लगावैं, पीछे सकल परिवार। हल्दी मंगल की॥ (परिवार से सम्बन्धित बहना,बूआ,मौसा- मौसी,आदि का नाम लेकर गीत गाया जाता है। शब्दार्थ:-हरिद्रा- हल्दी,टर्मेरिक,मंगल,। बन्ने-दूल्हा,दुलह,दुलहा,नौशा। हरिस-हल की लकड़ी जिसके दूसरे छोर पर जुवा रहताहै,ईषा। कीजै-करना।sukhmangal singh 16:26, 14 जून 2014 (UTC)
हुँकार करकाधा राधा नगरी में ललकारे के होई ? अपनी ही धरती से पुकारे के होई ॥ लरिकन के लड़ाई से निकारे के होई। मनवालो को सेना ने उतारे के होई ॥ आजाद भगत कामिल पुकारे के होई । अब्दुल हमीद वीरता संवारे के होई ॥ जी पटेल को फिर से निहारे के होई । राजा कंश को रण में ललकारे के होई ॥sukhmangal singh 01:45, 11 मार्च 2014 (UTC)
हंसि देहै बीराबीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई । एक सासाढ पात कै लगाहै बीड़ा? लवंग न ढाढी लो भाई । ई बीड़ा खइहै वीर हनुमान, जिन लंका में निज उठि, करिहै लड़ाई । बीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई । लंका से जब निकरै निशाचर, देखत जाँघ थहराई? जो कोई बीर राम के दल में, सनमुख लेत लराई। बीरा मति खाया -----भाई । हनुमान जब गदा उठावें, लક્ષિमन वाँण चलाई । वाण गिरे भुजा गिरे? शीष कटि गिरे, जहाँ बैठे रघुराई। बीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई । दोनों कर जोरि रोवैं मनदोदरि, नैनन नीर भरि आई । बीरा मति खाया लક્ષિमन मोरे भाई ॥sukhmangal singh 15:00, 27 नवम्ब
हुँकार भरो हिंदीहिन्दी तुमको तरस ना हो जी कागज में तू ही रहती हो। श्रद्धा सहित नम्र वाणी बन साधु सन्त मन हरती रहती हो।। राजाओं के घर की शोभा, मधुर गीत से रंग भरती हो। सूर श्याम बन सावन भादो, मथुरा में जा रमती रहती हो।। ग्वाल-मंडली मध्य विराजत, किलकारी भरती कहती हो। भरि-भरि उदर विषय दु:ख खचियन हिंदी ક્ષत्रिय बन सहती हो॥ धन्य सपूत अवनि तल हिन्दी ला छाये आद्य शंकराचार्य। आठ वर्ष में वेद उचारे बारह छ: शास्त्र धन्य हिन्दी आर्य॥ सूर चन्द्रमा चेहरे चमके बिंदी गंगा माँ सी बहती रहती। साये में साहित्य है अनगिन भाषा हिन्दी तुलसी सी बहति॥ रति बिहार तू-प्रेम राग हो कुमुद कली रजनी गंधा हो । विकल विमल निर्मल रस-रंग-गंध में हिन्दी तू गंगा हो॥ लहर तुम्हीं हो कहर तुम्ही हो करुणा भरी भावना हो । गंगा सरजू सरस्वती बहना, फाग भरी साधना तू हो ।। अम्बर हिन्दी तम् हिन्दी जन-मन हिन्दी ही आराधना हो । सूर कबीर शारदा मीरा तुमसे तुलसी की साधना हो ।। ॐ नाम प्रतिबंध लगा जब भारत में था अंधेरा हिन्दी। चिंतित रहते भाई बहना, राखी कर बंधवाने बिंदी।। हिन्दी हिन्दू बौध्य जैन औ मौलवी करने को उपकार । परमारथ उद्धारक हिन्दी करते वे राम शिव भी प्यार।। हिन्दी मंत्रों में मूल मंत्र हो मानो काशी मथुरा राग । हिन्दी शिव सिद्ध साधू सम मानव हो मानव घनश्याम।। हिन्दी हिन्द हिन्दुस्तान समाहित विश्व गुरु कहलाता धाम। काशी में हो रची पची जिसको जपता सारा जहान॥ हिन्दी में रस इतना साधो सागर जाता समाय मान। हिन्दी हिन्द विरोधी आदिल औ मुसलमान पढ़ैं सब हिन्दी॥ सिद्दी जिद्दी मुगल पुर्तगाली अंगरेजों की हिन्दी। अन्तस में अनहद नाद भरे रस नव रस वर्षा करती हिन्दी॥ विरही घायल कर देती मनु ॠतु तरसा करती हिन्दी। गरिका मय इतिकास तुम्हारा तू हिन्दी माथे की बिन्दी॥ कुटिया कोटिया लगोटिया हिन्दी कहता कही कहानी। मंदिर हिन्दी मस्जिद हिन्दी गुरुद्वारा हिन्दी शिક્ષા स्वाभिमानी॥ आजाद भगत सिंह बिस्मिल कामिल हिन्दी के दीवाने। कर्म ક્ષૅत्र की मर्म कहानी सूखे पत्ते कहीं था पानी॥ सदियों शोभित साहित्य सलिल हिन्दी बेहिचक जुबाबी। युग -युग से युग पुरुष पुकारे हिन्दी सुर सुरीली बानी॥ व्यास महर्षि परासर मुनि हिन्दी हिन्दुस्तान समान। हिन्दी सोचो? शंकर विद्यार्थी था भारत संतान॥ वेद मंत्र हो या कि भागवत् गीता वा कुरान। भाई चारा प्रेम पयोनिधि हिन्दी की है शान॥ हिन्दी मूल मंत्र जिह्ववा की गाता जग गुण गान। जो- जो जब- जब जिसने साधा हिन्दी हुई महान॥ गाये ब्रह्मा विष्णु शिव सिय हिन्दी सकल जहान। सूफी मीरा सु; साधे सुमंगल हिन्दी महान॥sukhmangal singh 00:29, 7 अक्टूबर 2013 (UTC)
हिंदीदुष्शासन अपने घर आँगन,बढ खीचा जब चीर। यू॰एन॰ओ॰ बहता देखा झरझर- झरझर नीर॥ देखा उनकी बोली भाषा मेंं वही कमान व तीर। बङे-बङे दढि़यल -मुच्छे गाते अपने-अपने गीत॥ सह सकी सिसकती हिंदी ना अपनो का दुःख का गायें। जाति- पाति जगह जगह को भाषा अपना राग सुनाये॥ मौन मीन की गाथा गाते दिखती सकल सभाएँ। चिंतित चिन्त खङी बिंदी लेकर जन की अभिलाषाएँ॥ यू॰एन॰ओ॰ बहता देखा झरझर - झरझर नीर। मगन गगन गनगना उठा सजी धजी हिंदी की छङि़काएँ ||singh 04:09, 14 June 2013 (UTC)
हिंदी विश्व गुरुहिन्दी हिन्द हिन्दुस्तान सहित विश्व गुरु कहलाती धाम। काशी में हो रची-पची जिसको जपता सारा जहान॥ हिन्दी में रस इतना साधो सागर जाता समाय मान । हिन्दी हिंद विरोधी आदिल व मुसलमान पढैं सब हिन्दी।। सिद्दी- जिद्दी- मुगल -पुर्तगाली ,अंगरेजों की हिंदी। अन्तस में अनहद नाद भरे नव रस वर्षा करती हिंदी॥ विरही घायल कर देती मनु ॠतु तरसा करती हिंदी। गरिमा मय इतिहास तुम्हारा तू हिन्दी माथे की बिन्दी॥ कुटिया कोटिया लंगोटिया हिन्दी कहता कही कहानी। मंदिर हिन्दी मस्जिद- गुरुद्वारा हिन्दी शिક્ષા स्वाभिमानी॥ आजाद भगतसिंह बिस्मिल कामिल हिन्दी के दिवानें । कर्म ક્ષેत्र की मर्म कहानी सूखे पत्ते कहीं था पानी॥ सदियों शोभित साहित्य सलिल हिन्दी बेहिचक जुबानी। युगों - युगों पुरुष पुकारे हिन्दी सुर सुरीली बानी॥ व्यास महर्षि परासर मुनिहिन्दी हिन्दुस्तान समान । हिन्दी सोच? शंकर विद्यार्थी, था भारत संतान॥ वेद मंत्र हो या कि भागवत् गीता वा कुरान । भाई चारा प्रेम पयोनिधि हिन्दी की है शान ॥ हिन्दी मूलमंत्र जिह्वा की,गाते सब जग गुणगान। जो-जो जब-जब जिसने साधा, हिन्दी हुई महान॥ गाये ब्रह्मा विष्णु सिव सिय, हिन्दी सकल जहान। सूफी मीरा सु: साधें, सुमंगल हिन्दी महान॥sukhmangal singh 01:22, 7 अक्टूबर 2013 (UTC)
होली-बोलीकाँट की बाड़ी झाड़ झखर,कमल दल की कुल्हाड़ी। राम नम सद्गुरु साचा, झारै कते झाड़ विचारि॥ दग्ध सलिल-विश्व अखिल अग्यात,साधु प्र्र्बीन निहारी। सन्ध्या वन्दन ईश्वर क्रन्दन, झिझकत झुमत निठारी॥ चहल-पहल आत्मबल विचारि, को बरजै हन्कारी । भेदकमल छेद के निकला,कोटि कलासिधारी॥ ग्यान की ज्योति जगमग जग-जग,अंगमा अंग निवारी। भाव भ्क्ति शक्ति ध्ररा नवल धवल,भरमावत वेगारी॥
तनिक-तनिक बतियन मा तनकत,हिरदे लीजै विचारी। सरग नर्क़क निरखि-निरखि आकत,आंनद परेम पुकारी। दिश पश्चिम मन - मंगल साधत,साधन सान्द्य कियारी॥sukhmangal singh 05:17, 13 जून 2013 (UTC)
होली की बोलीहोली आई कह लेने दो, भरी जवानी सी जीने दो।
जख्म बहुत है भर लेने दो, होली आई कह लेने दो। नव वर्ष हमे जी लेने दो, सपना-अपना सह लेने दो। अपना- अपना कर लेने दो,होली आई-----।। जितना चाहूं लिख लेने दो, घृणा तृष्णा कर लेने दो। नयी जवानी वह लेने दो,होली आई-------।। उलटा सीधा कर लेने दो,अभी समय है सह लेने दो। चहना बहना कर लेने दो,परहित करता कर लेने दो।
कूड़ा कचरा ढह लेने दो,गारी मारी कर लेने दो। होली आई सह लेने दो,फूहर पातर कह लेने दो।
भांग धतूरा पी लेने दो, भरा मैल मन ढह लेने दो। होली आई--------।। मन की तन की कर लेने दो,गले-गले अब मिल लेने दो। अभी समय रंग लेने दो,होली आई कर लेने दो।।सुखमंगल01:41, 27 जून 2013 (UTC)
होली की बजारनया जमाना राग नया था, होली आई फाग नया था। ढोल मजीरा साज सजा था, फाग राग अनुराग जगा था । धोती कुर्ता आग लगा था, चुनरी चादर चांद चढा था। लाल गुलाल सबाब सजा था , मोहन मंगल प्यार भरा था। sukhmangal singh 01:57, 27 जून 2013 (UTC)
ॠषिनारद द्वारा नारायण स्तुतिसनक सनन्दन सनत्कुमार, और सनातन चारो भाई। व्रहमा जी के पुत्र हैंवे सब, नारद जी के हैं बड़ भैया। कहे सूत जी सत्यब्रती ये, गंगा दर्शन सीता धारा में, मधु सूदन के हृदय बसे वे, चारो जगदीश्वर सुखेवैया। नित्यकर्मका वे पालन करते, पितरों का भी तर्पण करते, ॠषिनारद ने कथा सुनाया, नारायण का सब गुण गाया। नारद जी बोले मुनि सुनाय, प्रभु का लક્ષण मुझेदेहु बताय, कर्म कैसे सफल होता सुनाएँ, જ્ઞાन तप ध्यान भेद बतायें। मन वाणी व शरीर बताएँ, लક્ષण बतलाये प्रभु! अभेद्य, अतिथि पूजा महत्व नरेन्द्र, प्रसन्नता समझो इसे सुरेन्द्र। गुह्य सत्कर्म अनुग्रह समझाए, नारद मुनि प्रभुઽ कृपा हर्षाइये, फिर वे गुणगान करने लगे, परमात्मा ॐ्गान करने लगे।sukhmangal singh 00:32, 10 सितंबर 2014 (UTC) संदर्भ-(नारद पुराण भाग2 अं0 काव्य रूपमें)
श्रीपति स्वामीहौले - हौले श्रीपति आवत । अरबराइ मन मंगल पावत ।। सारंगपानि को गीत सुनावत। कमल नयन सो गारि गावत ।। श्रीपति स्वामी गुन गान सुनावत। रस रसिक पतित पावन को भावत ।। मूरख रहि-रहि नाच नचावत । ग्यानी सुधि बिधि वेद पढ़ावत।। सावन मा संत-चिंतन धावत । विषय विकार निसाचर छाड़त ।।sukhmangal singh 13:28, 6 जुलाई 2013 (UTC)